12 Aditya Ke Naam – जानिए 33 कोटि देवताओं में शामिल अदिति के 12 पुत्रों के बारे में

12 Aditya Ke Naam: हिंदू धर्म ग्रंथों में 33 कोटि देवताओं अर्थात 33 देवताओं का जिक्र आता है। जिनमें 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य, एक इंद्र और एक प्रजापति को सम्मिलित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि प्रजापति ही जगत संचालक ब्रह्मा हैं। कुछ विद्वानों द्वारा इंद्र और प्रजापति की जगह है दो अश्विनी कुमारों को भी गिना जाता है। 33 कोटि देवताओं में 12 आदित्य प्रमुख देवता माने गए हैं जो देव माता अदिति के पुत्र हैं। 

12 Aditya Ke Naam
12 Aditya Ke Naam

हमारे आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि 12 Aditya Ke Naam और  जानेंगे 12 आदित्य से जुड़े सभी प्रमुख तथ्य। और साथ ही जानेंगे कि हिंदू धर्म में 12 आदित्य इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं और उनके कार्य क्या हैं? अतः हमारे इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ना ना भूलें।

12 आदित्य कौन-कौन से हैं | 12 Aditya ke Naam in Hindi

हिन्दू धर्म में 12 आदित्य (12 Aditya) को ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी देवमाता अदिति का पुत्र बताया गया है। 12 Aditya Ke Naam इस प्रकार हैं – 

  1. भग
  2. सवित्र
  3. त्वष्टा
  4. विवस्वान (सूर्य)
  5. आर्यमन
  6. मित्र
  7. धाता
  8. अम्शा या अंश
  9. वरुण
  10.  इंद्र
  11. पूषन
  12. विष्णु 

हम आपको बता दें कि ऋग्वेद में भी 12 Aditya Ke Naam और इनकी महिमा का जिक्र है। ऋग्वेद में आदित्य की संख्या 6-8 बताई गई है, वहीं ब्राह्मण पुराणों में इनकी संख्या 12 बताई गई है। महाभारत में भी 12 आदित्य का वर्णन मिलता है जिसमें ऋषि कश्यप के उनके पिता होने की पुष्टि की गई है। पुराणों के अनुसार प्रत्येक महीने में एक आदित्य चमकता है अर्थात साल का हर एक महीना एक-एक आदित्य से संबंधित है। इसीलिए साल के 12 महीनों का निर्धारण भी इन्हीं आदित्य की संख्या के अनुरूप हुआ है।

12 आदित्यों के महत्व व उनके कार्य| Importance of 12 Aditya in Hindi

12 आदित्य हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व रखते हैं। ये इसलिए खास हैं क्योंकि ये प्रकृति और मानव जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के स्वामी और संरक्षक हैं। यह प्रकृति और जीव के बीच सामंजस्य स्थापित करने की भूमिका निभाते हैं। आईए हम इन सभी 12 Aditya Ke Naam और इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।-

भग(Bhaga)

भग (Bhaga) आदित्य को वेदों में धन के देवता के रूप में निरूपित किया गया है। ये समृद्धि देने वाले व उसके संरक्षक भी हैं। वेदों के अनुसार भग को प्राणियों को सभी वस्तुएँ जो समृद्धि की प्रतीक हैं, जैसे- पुत्र, संपदा, धन, संपत्ति, पशु इत्यादि की प्राप्ति सुनिश्चित कराने का दायित्व सौंपा गया है। वही इन्हें सफल वैवाहिक जीवन का देवता भी माना जाता है। ऋग्वेद में इनकी व्याख्या धन का देवता, संसार का पालन करने वाला, संस्कारों का प्रमुख देवता, ऐश्वर्य और वैभव के स्वामी के रूप में गई है ।

सवित्र (Savitra)

सवित्र को वैदिक ग्रन्थों में सवितुर (Savitur) भी कहा जाता है। वैदिक ग्रन्थों में उनके नाम का अर्थ प्रेरित करने वाला, चेतना देने वाला, जीवंतता प्रदान करने वाला बताया गया है। इस प्रकार सवित्र चेतना व बुद्धिमत्ता के देव माने जाते हैं। सवित्र का उल्लेख ऋग्वेद के साथ-साथ गायत्री मंत्र में भी मिलता है।

ऋग्वेद की 35वी ऋचा पूरी तरह से सवित्र को ही समर्पित है और यह सवित्र ऋचा (Savitra Hyme) कहलाती है। इस ऋचा में सवित्र को संरक्षक के रूप में प्रदर्शित किया गया है। ऋग्वेद की 11 ऋचाओं के साथ-साथ कुछ अन्य वैदिक ग्रन्थों में लगभग 170 बार सवित्र का उल्लेख मिलता है।

सवित्र को चल और अचल का स्वामी माना गया है। इनका उत्तरदायित्व सभी प्राणियों का संरक्षण करना है। वे आत्माओं की दुनिया के रक्षक और भविष्य के ज्ञाता हैं। दिवंगत आत्मा को धर्म के लोक में पहुँचाना उनका दायित्व है। यह देवताओं को अमरता और मनुष्य को लंबी उम्र प्रदान करते हैं।

त्वष्टा (Tvashta)

त्वष्टा आदित्य वैदिक ग्रन्थों में देवताओं के कारीगर या शिल्पकार माने गए हैं। इन्हें भगवान विश्वकर्मा के समकक्ष माना जाता है जो कि शिल्प के देवता हैं। ऋग्वेद में त्वष्टा (Tvashta) का उल्लेख एक कुशल कारीगर के रूप में किया गया है जिन्होंने इंद्र का वज्र, बृहस्पति की कुल्हाड़ी, भोजन व पेय के लिए बर्तनों सहित कई महत्वपूर्ण उपकरणों व शस्त्रों का निर्माण किया है। वे रूप के निर्माता और गर्भ के शिल्पकार भी कहलाते हैं।

विवस्वान या सूर्य (Vivaswan)

सूर्य हिंदू वैदिक साहित्य में महत्वपूर्ण देवता माना गया है। जिसे ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है। इसे आस्था को साकार करने वाला, अंधेरे को हरने वाला, ज्ञान और जीवन को शक्ति प्रदान करने वाले देवता के रूप में उल्लेखित किया गया है। ऋग्वेद की 1.115 ऋचा में सूर्य (Surya) का वर्णन मिलता है

आर्यमन (Aryaman)

आर्यमन आदित्य प्रारंभिक वैदिक हिंदू देवताओं में से एक गिने जाते हैं जो दाम्पत्य प्रेम, मित्र प्रेम, साथ व संगत के देवता माने जाते हैं। यह ऋषि कश्यप और अदिति के तृतीय पुत्र माने गए हैं। इन्हें वैदिक साहित्य में रिवाज और परंपराओं का देवता भी कहा गया है। ऋग्वेद में आर्यमान (Aryaman) का उल्लेख घोड़े के संरक्षक के रूप में किया गया है और आकाशगंगा को इनका मार्ग बताया गया है।

मित्र (Mitra)

मित्र आदित्य वैदिक हिंदू देवता हैं जिन्हें संधियों के संरक्षक के रूप में जाना जाता है। उत्तर वैदिक ग्रन्थों और ब्राह्मणों में उनका उल्लेख ‘भोर की रोशनी: और ‘सुबह के सूरज’ के रूप में किया जाता है। अथर्ववेद के अनुसार हिंदू धर्म में सुबह की सूर्य की प्रार्थनाओं में मित्र की पूजा की जाती है। यह मित्रता के संरक्षक देव माने जाते हैं और सभी प्रकार की हिंसा से घृणा करते हैं। 

धाता (Dhata)

इस आदित्य को धात्री (Dhatri) भी कहा जाता है। यह स्वास्थ्य व तंत्र-मंत्र के देवता माने गए हैं और इनका आह्वान मंत्रों और वैदिक ऋचाओं का जाप करके किया जाता है। अश्वमेध यज्ञ में इन्हें विशेष रूप से पूजे जाने का उल्लेख वैदिक ग्रन्थों में मिलता है। भागवत पुराण में इन्हें कश्यप ऋषि और अदिति के सातवें पुत्र की संज्ञा दी गई है वहीं अग्नि पुराण में इनका संबंध पीले रंग से बताया गया है।

अम्शा (Amsha)

अम्शा या अंश को वैदिक ग्रन्थों में सौर देवता माना गया है। अंश का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। वहीं वैष्णो वाद के अनुसार अम्शा उन अवतारों को कहते हैं जिनमे विष्णु का अंश है। देवताओं को अर्पित किए जाने वाले वैदिक दान या चढ़ावों (Sacred Sacrifices) को भी अम्शा कहा जाता है।

वरुण (Varun)

वरुण को हिंदू धर्म में आकाश, पानी और महासागरों के देवता का दर्जा प्राप्त है। वैदिक  साहित्य में उन्हें भगवान मित्र का साथी और सत्य का देवता माना गया है। पुराणों में वरुण को पश्चिम दिशा के संरक्षक की उपाधि प्राप्त है और उन्हें दिक्पाल कहा जाता है। वहीं ऋग्वेद में इन्हें नैतिक कानून का संरक्षक माना गया है जो अपने पापों का पश्चाताप न करने वालों को दंड देते हैं और पश्चाताप करने वालों को क्षमा कर देते हैं। ऋग्वेद की कई ऋचाओं में वरुण का वर्णन है जिनमें इन्हें नदी, जल व महासागरों का स्वामी कहा गया है।

इंद्र (Indra)

इंद्र को हिंदू धर्म ग्रंथों में देवताओं के राजा के रूप में प्रस्तुत किया गया है।  वह वर्षा, बिजली, आकाश, नदी के बहाव और युद्ध से संबंधित है। ऋग्वेद में इंद्र को सबसे प्रमुख देवता माना गया है। ऋग्वेद की लगभग 250 ऋचाएँ इंद्र से संबंधित हैं। कई वैदिक कथाओं में उपासकों द्वारा वर्षा के लिए इंद्र की पूजा किए जाने का उल्लेख किया गया है। इंद्र स्वर्ग में निवास करते हैं और उनकी पत्नी शची है। वह सभी देवताओं की रक्षा के लिए उत्तरदाई हैं।

पूषन (Pooshan)

पूषन एक सौर देवता हैं जिन्हें मिलन का देवता कहा जाता है। वे विवाह, यात्रा और सड़क के देवता तो हैं ही साथ ही वह मवेशियों का भरण पोषण भी करते हैं। ऋग्वेद में भी इनका वर्णन मिलता है। ऋग्वेद की लगभग 10 ऋचाएँ पोषण को समर्पित हैं।

विष्णु (Vishnu)

विष्णु हिंदू धर्म के बहुत ही महत्वपूर्ण देवता हैं। यह हिंदू आस्था में सर्वोच्च स्थान प्राप्त त्रिदेवों में से एक हैं, जिनमें शिव और ब्रह्मा भी प्रमुख हैं। इन्हें हिंदू वैदिक साहित्य में सृष्टि के संचालन करता है की उपाधि प्राप्त है। इन्हें नारायण और हरि कहकर भी पुकारा जाता है। जब भी इस संसार में सत्य का नाश होता है और बुराई का वर्चस्व बढ़ने लगता है तब-तब विष्णु संसार की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लेते हैं। 

भगवान राम और योगेश्वर कृष्ण विष्णु के प्रमुख अवतारों में गिने जाते हैं। विष्णु का उल्लेख भी ऋग्वेद में किया गया है। ऋग्वेद की कई ऋचाओं में इनका वर्णन आता है। ऋग्वेद की पांचवी ऋचा पूर्ण रूप से विष्णु को समर्पित है। 

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12 आदित्य की उत्पत्ति कथा | 12 Aditya Story

12 आदित्य जितने महत्वपूर्ण है उतनी ही रोचक है इनकी जन्म कथा। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार ऋषि कश्यप देवता और असुर दोनों के ही पिता हैं। ऋषि कश्यप की तेरह पत्नियाँ थीं जिनमें से अदिति देवताओं की माता थी और दिति राक्षसों की। 

अदिति ने 12 आदित्य को जन्म दिया जो आगे चलकर देवता कहलाए वहीं दिति ने हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष को जन्म दिया जो राक्षस कहलाए। राक्षस का अर्थ है रक्षा करने वाला और यही राक्षसों दायित्व भी था। ब्रह्मदेव ने राक्षसों को पाताल की रक्षा की जिम्मेदारी दी थी वहीं देवताओं को आकाश में स्थान दिया। 

देवता लोग आकाश में आनंदपूर्वक जीवन बिताते थे नहीं और राक्षसों को पाताल में कई तरह के कष्ट भोगने पड़ते थे। इस तरह उनके मन में देवताओं के लिए द्वेष उत्पन्न होने लगा।धीरे-धीरे उनमें अपनी शक्ति को लेकर अहंकार उत्पन्न हुआ और वे देवताओं को परेशान करने लगे। 

कथा है कि एक बार देवताओं और राक्षसों में भयंकर युद्ध हुआ जिसमें राक्षसों ने देवताओं को पराजित कर दिया। इसके बाद देवता निराश होकर यहां वहां भटकने लगे जिसे देखकर देवताओं की माता अदिति को बहुत दुख हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु की आराधना  शुरू की। 

उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उपस्थित हुए और अदिति को उन्हें वरदान देते हुए कहा – हे देवी! आप चिंतित ना हों। मैं अपने 1000वें अंश के रूप में आपके गर्भ से जन्म लूंगा और आपके पुत्रों की रक्षा करूंगा।

कुछ समय बाद जब अतिथि गर्भवती हुई तब वह अपनी होने वाली संतान की मंगल कामना के लिए अनेक तरह के व्रत और उपवास करने लगी। यह देखकर उनके पति महर्षि कश्यप ने कहा – देवी! गर्भवती होने की स्थिति में आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए परंतु आप व्रत व उपवास करके अपने गर्भ में पल रहे बच्चे का अहित करने पर तुली है। 

यह सुनकर देवी अदिति ने कहा कि स्वामी आप परेशान ना हो मेरा पुत्र भगवान विष्णु का अंश है इसलिए उसे किसी तरह की कोई हानि नहीं हो सकती।

कुछ समय बाद देवी अदिति के गर्व से भगवान सूर्य का जन्म हुआ और आगे चलकर वे सभी देवताओं के नायक बने और उन्होंने देवताओं के शत्रु कहलाने वाले राक्षसों का संहार किया। अदिति का पुत्र होने के कारण सूर्य का एक नाम आदित्य है और यह 12 आदित्य वास्तव में सूर्य ही हैं। इस प्रकार अदिति ने 12 पुत्रों को जन्म दिया जो आगे चलकर 12 आदित्य कहलाये।

Devi Aditi ki Photo

12 आदित्य हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण क्यों है | Importance of 12 Adityas in Hinduism

जैसा कि हमने आपको बताया कि 12 आदित्य हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और सौर देवों के रूप में जाने जाते हैं। इनका महत्व इस बात से ही साबित होता है कि इन्हें वैदिक धर्म के 33 प्रमुख देवताओं में स्थान मिला है। जीव के जन्म से लेकर उसके भरण पोषण यहाँ तक कि उसकी मृत्यु के बाद तक के सभी महत्वपूर्ण पड़ावों में ये देवता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

कई वैदिक साहित्यों में उनकी व्याख्या की गई है। ऋग्वेद में इन्हें जल की पवित्र धारा के समान छल और धूर्तता से रहित बताया गया है।  यह धर्म की रक्षा करने वाले और सभी जीवो के संरक्षक माने गए हैं। 

12 Adityas and Month

12 आदित्य हर माह की पूर्णिमा को पूजे जाते हैं। हर माह का एक विशेष आदित्य होता है, जो उस महीने का प्रतिनिधि है। इनकी पूजा से इंसान को समृद्धि, स्वास्थ्य और लंबी आयु की प्राप्ति होती है।

बारह आदित्य की पूजा:

  • विवस्वान – चैत्र (मार्च-अप्रैल)
  • अर्यमान – वैशाख (अप्रैल-मई)
  • पूषण – ज्येष्ठ (मई-जून)
  • त्वष्टा- आषाढ़ (जून-जुलाई)
  • सवित्र- श्रावण (जुलाई-अगस्त)
  • भग- भाद्रपद (अगस्त-सितंबर)
  • मित्र- अश्विन (सितंबर-अक्टूबर)
  • वरुण – कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर)
  • अम्शा – मार्गशीर्ष (नवंबर-दिसंबर)
  • धाता- पौष (दिसंबर-जनवरी)
  • इन्द्र – माघ (जनवरी-फरवरी)
  • विष्णु – फाल्गुन (फरवरी-मार्च)

निष्कर्ष | Conclusion

दोस्तों! आज के अपने इस आर्टिकल में हमनें जाना कि 12 आदित्य कौन-कौन से हैं? 12 Aditya Ke Naam क्या हैं, उनके कार्य क्या हैं। साथ ही हमने जाना कि 12 आदित्य का हिन्दू धर्म में क्या महत्व है। आशा करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया होगा।  ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमसे जुड़े रहें।

 

12 Aditya Ke Naam– देखें वीडियो

12 Aditya Ke NaamFAQ

हिंदू धर्म में कितने आदित्यों का उल्लेख किया गया है?

हिंदू धर्म में 12 Aditya Ke Naamका उल्लेख मिलता है।

पुराणों के अनुसार 12 आदित्य किसके पुत्र हैं?

पुराणों के अनुसार 12 आदित्य ऋषि कश्यप और देव माता अदिति के पुत्र हैं।

ऋग्वेद की कितनी ऋचाएं इंद्र को समर्पित हैं?

ऋग्वेद की लगभग 250 ऋचाएं इंद्र को समर्पित है।

12 आदित्य क्यों महत्वपूर्ण है?


12 आदित्य मनुष्य जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में के देवता हैं और भरण पोषण, धन संपदा और संरक्षण प्रदान करते हैं।

12 आदित्यों की क्या विशेषता है?

12 आदित्य हिंदू धर्म के 33 कोटि देवताओं में शामिल हैं।

 
Anu Pal

मैं अनु पाल, Wisdom Hindi ब्लॉग की फाउंडर हूँ। मैं इंदौर मध्य प्रदेश की रहने वाली हूं। मैं एक ब्लॉगर और Content Writer के साथ-साथ Copy Editor हूं और 5 साल से यह काम कर रही हूं। पढ़ने में मेरी विशेष रूचि है और मैं धर्म, आध्यात्म, Manifestation आदि विषयों पर आर्टिकल्स लिखती हूं।

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