
2nd Principle of Karma in Hindi: आपने अक्सर देखा होगा कई लोग होते हैं जिन्हें तुरंत सफलता मिल जाती है वहीं कई लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवन भर मेहनत करते हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिलती है। इसके पीछे का कारण क्या हो सकता है? क्या वे लोग जो सफल नहीं हुए उनमें कोई कमी थी। जी नहीं…. ऐसा नहीं है। उनमें तो प्रतिभा कूट-कूट कर भरी थी, लेकिन वह कर्म के दूसरे सिद्धांत यानी “सृष्टि का नियम” से अनजान थे। सृष्टि का नियम इतना सीधा सरल है कि इसे हम रोज जीते हैं और रोज महसूस भी करते हैं लेकिन फिर भी उससे अनजान रहते हैं।
क्या है सृष्टि का नियम(2nd Principle of Karma in Hindi)
सृष्टि का यह नियम कहता है कि आप जैसा सोचते हैं जैसा महसूस करते हैं जैसी ऊर्जा अपने भीतर रखते हैं, वैसी ही ऊर्जा वापस आप तक लौट कर आती है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो आपकी सोच ही आपका भविष्य बनती है, जैसा हम अपने अंदर सोचते हैं बाहर वैसे ही दुनिया का निर्माण होना शुरू होता है।
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क्यों यह नियम हर इंसान पर लागू होता है
- ऐसा इसलिए है क्योंकि हम अपने विचारों और भावनाओं के माध्यम से ही से ही यूनिवर्स को सिग्नल भेजते हैं। यही भेजे हुए संकेत ही बाद में हमारे सामने परिस्थिति बनाकर लौटते हैं।
- इस बात को ऐसे समझे कि अगर आपके अंदर डर की भावनाएं आ रही हैं, डर के विचार उत्पन्न हो रहे हैं तो कुछ समय बाद आपके सामने इस डर को उजागर करती हुई परिस्थिति बनती नज़र आएगी।
- अगर आपके अंदर उम्मीद बन रही है, अगर आपके अंदर आशा की किरण दिख रही है तो कुछ समय बाद वैसी ही परिस्थिति आपके सामने बनेगी और संभावनाओं के दरवाजे खुलेंगे।
- इसलिए जो आपके अंदर चलेगा वहीं कुछ समय बाद आपको बाहरी दुनिया में दिखाई देगा।
यह नियम आपके जीवन को कैसे प्रभावित करता है
हर दिन, हर समय, हर मिनट आपकी सोच के तय करती है कि आप कैसा बोलेंगे? आप कैसे लोगों से मिलेंगे? आप कैसे लोगों से अपनी बातें शेयर करेंगे ?आप कैसा जीवन जिएंगे? यह सब बातें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं और जिनकी जान आपके विचारों में मौजूद हैं।
कर्म का यह दूसरा सिद्धांत यानी सृष्टि का नियम यह कहता है कि आप ही अपने जीवन के निर्माता हैं। बाहरी परिस्थितियों के दबाव में आकर अगर आप अपने अंदर की भावनाओं को बदलेंगे तो आप अपने जीवन के साथ खिलवाड़ करेंगे। इसलिए अपने अंदर की दुनिया को जितना व्यवस्थित रखेंगे बाहरी दुनिया भी उतनी ही व्यवस्थित रहेगी।
नकारत्मक ऊर्जा कैसे बिगाड़ देती है खेल
इस नियम की सबसे बड़ी बात यह है जिसे लोग बिल्कुल भी नहीं समझ पाते हैं कि जब हम विचारों और भावनाओं में बह रहे होते हैं तो वह नकारात्मक है या सकारात्मक इससे यूनिवर्स को कोई मतलब नहीं होता है। यूनिवर्स नकारात्मक या सकारात्मक में कोई भेद नहीं करता है। वह उस ऊर्जा को समझेगा जिस ऊर्जा को आपने अपने अंदर बसा लिया है।
जिस चीज के बारे में आप लगातार सोच रहे हैं, यूनिवर्स वही परिस्थिति आपके सामने लाकर खड़ी कर देगा। इसीलिए अक्सर अगर आप सफलता से ज्यादा असफलता के बारे में सोचेंगे तो आपको सफलता मिल ही नहीं सकती। मेनिफेस्टेशन में बार-बार यही बात बताई जाती है और यही कर्म का दूसरा सिद्धांत कहता है।
इसलिए असफलता मिलने के बाद क्या होगा ऐसा सोचने की बजाय हमेशा यह सोचें कि सफलता मिलने के बाद क्या होगा। इसका मतलब यह नहीं है कि आप अंधी उम्मीदें लगा कर बैठ जाएं, लेकिन हर समय जब आप यह सोचेंगे कि सफलता मिलने के बाद क्या होगा तो उसके सकारात्मक परिणाम आपको दिखाई देने लगेंगे।
यह नियम नहीं, शक्ति है इस शक्ति का इस्तेमाल करना सीखें
कर्म का दूसरा सिद्धांत सृष्टि का नियम हम सबके लिए एक शक्ति की तरह है। अब यह हमारे हाथ में है कि हम उस शक्ति का इस्तेमाल अपने भले के लिए कर रहे हैं या बुरे के लिए कर रहे हैं। खुद को जितना सरल रखेंगे उतना अच्छा रहेगा। जितना अच्छा सोचेंगे उतनी अच्छी परिस्थिति आपके सामने बनेगी।
नकारात्मक सोच को खुद से जितना दूर रखेंगे उतना ही आप सकारात्मक माहौल के पास में रहेंगे। याद रखें आध्यात्मिक यात्रा हमें विचारों से दूर ले जाने से ज्यादा विचारों को संयमित करने में लगाती है। कर्म का दूसरा सिद्धांत भी हमें अपने विचारों को संयमित रखने की सीख दे रहा है, इस बात को ध्यान में रखने से हमारा जीवन बेहतर होगा।
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