
Baikunth Chaturdashi ke Upay: हिंदू धर्म में कार्तिक नहीं है तो वह पवित्र माना जाता है और इस महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक है। पद्म पुराण में कार्तिक महीने की महिमा का विस्तार से विवरण किया गया है जहां इस तिथि को खास महत्व दिया गया है।
इस साल बैकुंठ चतुर्दशी 4 तारीख को मनाई जाएगी यह त्यौहार न केवल भक्ति और उत्साह का प्रतीक है बल्कि विभिन्न पूजा विधियों और नियमों से भी जुड़ा हुआ है जो भक्तों के बैकुंठ धाम की प्राप्ति का मार्ग पक्का करता है। आईए इस त्यौहार के महत्व पूजा विधि और से जुड़े एक खास उपाय के बारे में चर्चा करें।
बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व और हरि-हर मिलन
बैकुंठ चतुर्दशी वह अनुपम तिथि है जब स्वयं महादेव भगवान नारायण को बेलपत्र चढ़ाते हैं। यह हरि-हर मिलन का प्रथम अवसर माना जाता है जो शिव विष्णु की एकता को दर्शाता है। एक कथा के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु राजा बलि के यहां से प्रयाग की त्रिवेणी पर प्रकट हुए बद्रीनाथ गए और चतुर्दशी को अपने धाम बैकुंठ पहुंचे। कार्तिक पूर्णिमा को देवस्थानों पर विराजमान हुए जहां देवताओं ने भगवान नारायण और माता तुलसी का पूजन किया। यह त्यौहार कार्तिक उद्यापन का हिस्सा है जहां भक्त रात्रि जागरण करते हैं और भगवान के नाम की ज्योत जलाते हैं।
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पूजन विधि और सामग्री(Baikunth Chaturdashi ke Upay)
बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा में तुलसी मैया की खास भूमिका होती है। मंडप के नीचे तुलसी और शालिग्राम भगवान को विराजित किया जाता है। पूरी रात कीर्तन, हरि जागरण और तुलसी के चरणों में पत्र चढ़ाने की परंपरा है। बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा में निम्नलिखित सामग्री को शामिल किया जाता है:
- कदंब के फूल: भगवान को चढ़ाए जाते हैं, जो उनकी प्रिय वस्तु हैं।
- आम की कोपलें: यदि उपलब्ध हों, तो इनकी माला बनाकर लक्ष्मी-नारायण को पहनाई जाती है।
- चंदन अभिषेक: ठाकुर जी को पंचामृत स्नान कराया जाता है, फिर पूरे शरीर पर चंदन का लेप लगाया जाता है। केवल आंखें खुली रहती हैं, जो भक्ति की गहराई दर्शाता है।
- बेलपत्रियां: भगवान को चढ़ाई जाती हैं, जो शिव-विष्णु मिलन का प्रतीक हैं।
इसके अलावा तुलसी के पत्ते चढ़ाना अनिवार्य है लेकिन पत्ते तोड़ने के नियमों का पालन करना जरूरी है।
कार्तिक उद्यापन और रात्रि जागरण
जो भक्त कार्तिक महीने का उद्यापन करते हैं वह चतुर्दशी की रात जागरण करते हैं। इस दौरान तुलसी के चरणों में पत्र अर्पित किए जाते हैं। कीर्तन और भजन से वातावरण भक्ति में हो जाता है भगवान की नाम की अखंड ज्योति जालना शुभ फलदाई है यह जागरण बैकुंठ पाने का साधन माना जाता है।
तुलसी पत्र तोड़ने के महत्वपूर्ण नियम
तुलसी को माता का रूप माना जाता है इसलिए इसके पत्ते तोड़ने में सावधानी बरतनी चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित है। जो व्यक्तित्व द्वादशी को तुलसी के पत्ते तोड़ता है वह नरक में जाता है।
इस दिन तुलसी से भगवान की पूजा की जाती है और तुलसी के पत्ते खाने का महत्व है लेकिन पत्ते तोड़ना नहीं चाहिए। पहले से तोड़े हुए यहां अपने आप गिरे हुए ही इस्तेमाल करना चाहिए।
ये नियम तुलसी मैया के प्रति श्रद्धा और पवित्रता बनाए रखते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी पर तुलसी पूजन से भक्तों को विशेष कृपा मिलती है।
निष्कर्ष
बैकुंठ चतुर्दशी का त्यौहार सत्य को स्थापित करता है कि शिव और विष्णु एक ही परम तत्व के रूप हैं पद्म पुराण में वर्णित इस पूजन विधि और नियम का पालन करने से पाप नष्ट होते हैं और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस दिन रात्रि जागरण चंदन अभिषेक फूलमाला अर्पण और तुलसी के नियमों का ध्यान रखें।
FAQ- Baikunth Chaturdashi ke Upay
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन क्या करना चाहिए?
बैकुंठ चतुर्दशी शिव और विष्णु के मिलन का दिन है इसलिए इस दिन शिव और विष्णु की मूर्ति स्थापना करके पूजा करें रात्रि जागरण करें और ओम नमः शिवाय तथा ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्रों का जाप करें।
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