
Chhath Puja History in Hindi: भारतीय संस्कृति में स्त्री शक्ति हमेशा से ही धैर्य और तपस्या की प्रतिमूर्ति रही है। युग बदलते गए परंतु नारी और उसकी साधना सदैव तटस्थ रही। नारियों ने हमेशा से ही सत्य, शक्ति और संतान कल्याण के लिए स्वयं को समर्पित किया है। इसी के दिव्य उदाहरण हमें द्वापर युग में भी मिलते हैं।
द्वापर युग में कुंती और द्रौपदी ऐसे दो उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने महाभारत काल में छठ व्रत किया था। माता कुंती ने मातृत्व सुख पाने के लिए छठ का व्रत किया था। तो वही द्रौपदी ने धर्म और परिवार के लिए सूर्य उपासना की थी। और दोनों की सूर्य उपासना ने संपूर्ण मानव जीवन को नए अध्याय की तरफ प्रशस्त किया।
जी हां जिस प्रकार मान्यता है कि त्रेता युग में छठ पूजा का महत्व जन-जन तक माता सीता ने पहुंचाया था वही द्वापर युग में छठ पूजा की शुरुआत माता कुंती और द्रौपदी ने की थी। इन दोनों ने ही स्त्री शक्ति का जागृत स्वरूप दुनिया को बताया। माता कुंती और देवी द्रौपदी द्वारा किया गया छठ व्रत केवल पौराणिक महत्व ही नहीं रखता बल्कि यह भक्ति और त्याग की झलक भी दिखलाता है। यह बताता है कि जब स्त्री सूर्य को अर्घ देती है तो वह देवता को नहीं परंतु भीतर के तेज को जाग्रत करती है।
माता कुंती द्वारा किया गया छठ व्रत
माता कुंती, राजा कुंतीभोज की दत्तक कन्या थी। कुंती अत्यंत तेजस्विनी और धार्मिक प्रवृत्ति की थी। कहा जाता है कि एक बार महर्षि दुर्वासा राजा कुंतीभोज के राज्य में आए और उनके महल में ठहरे। माता कुंती ने महर्षि दुर्वासा की सच्ची सेवा की। महर्षि दुर्वासा माता कुंती के समर्पण से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने माता कुंती को एक दिव्य मंत्र वरदान स्वरूप दिया और कहा कि वे इस मंत्र का जाप कर जिस भी देवता का ध्यान करेंगी वह देवता उन्हें तत्काल पुत्र का वरदान देंगे। माता कुंती ने यह वरदान सहर्ष स्वीकार किया।
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महाभारत काल के पुराणों में वर्णन है कि एक दिन माता कुंती कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्टी तिथि की बेला में सूर्योदय के समय पवित्र नदी में स्नान कर रही थी। इसके बाद उन्होंने स्वच्छ वस्त्र पहने और सूर्य की दिशा में मुख कर तपस्या आरंभ की। उन्होंने महर्षि दुर्वासा द्वारा दिए गए मंत्र का जाप किया और सूर्य का ध्यान किया जिसके बाद सूर्य देवता ने प्रसन्न होकर उन्हें तेजस्वी पुत्र प्रदान किया।
यह बालक कालांतर में कर्ण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कर्ण के शरीर पर सूर्य के कवच कुंडल उपस्थित थे इसीलिए कर्ण को सूर्यपुत्र कर्ण भी कहा जाता है। कालांतर में माता कुंती द्वारा की गई यह षष्टि पूजा ही छठ व्रत के रूप में प्रसिद्ध हुई। कहा जाता है कि इस दिन यदि कोई नारी सूर्य देव की आराधना करें और उन्हें उनसे मातृत्व का वरदान देने की प्रार्थना करें तो सूर्य देव उन्हें संतान रत्न देते हैं।
द्रौपदी द्वारा किया गया छठ व्रत
द्रौपदी ने भी सूर्य साधना की और इसी से उनके जीवन में प्रकाश वापस लौटा। द्रौपदी जिन्हें पांचाल कन्या कहा जाता है वह यज्ञ से प्रकट हुई थी, उन्हें याज्ञसैनी भी कहा जाता है। द्रौपदी पांचाल नरेश की पुत्री थी जिन्हें अलौकिक सिद्धियां और वरदान मिले थे। द्रौपदी कृष्ण की सखी भी कही जाती है। वह अत्यंत रूपवान, बुद्धिमान और धर्म परायण थी। उनके जीवन में अनेक दुख आए परंतु उन्होंने कभी भी भक्ति और साधना का दामन नहीं छोड़ा।
कहा जाता है कि एक बार पांडवों के वनवास काल में महर्षि लोमश द्रौपदी से मिले और उन्होंने छठ व्रत की महिमा सुनाई। उन्होंने द्रोपती से कहा कि छठ का व्रत करने से और षष्ठी देवी की उपासना करने से जीवन के संकट मिट जाते हैं और परिवार का कल्याण होता है। यह सुनकर द्रौपदी ने भी संकल्प लिया कि वे माता षष्टि और सूर्य देव का ध्यान करेंगे और निर्जल रहकर सूर्य देव को सूर्योदय के समय और सूर्यास्त के समय अर्घ्य देगी।
और उन्होंने अपने संकल्प के अनुसार ऐसा ही किया। माता द्रौपदी ने छठ व्रत रखा और निर्जल रहकर पानी में खड़े होकर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जिसके बाद धीरे-धीरे पांडवों के जीवन में सुख लौटने लगा राज्य में धर्म की स्थापना हुई और द्रोपती का सम्मान पुन स्थापित हुआ।
माता कुंती और द्रौपदी द्वारा जपे गए सूर्य मंत्र का रहस्य
कुंती द्वारा सूर्य मंत्र आदित्य स्तुति मंत्र
महाभारत के आदि पर्व में वर्णन आता है कि जब दुर्वासा ऋषि ने कुंती माता को वरदान दिया तब उन्होंने उन्हें देव आवाहन मंत्र सिखाया। यह मंत्र इतना शक्तिशाली था कि देव तत्काल प्रकट हो जाते थे। जब माता कुंती ने सूर्य देव का ध्यान किया तब उन्होंने इस मंत्र का जाप किया
ॐ नमो भगवते दिवाकराय।
सहस्रकिरणाय नमः।
तेजसां पतये नमः।
लोकसाक्षिणे नमः।”
इसके बाद सूर्य देव स्वयं उनके सम्मुख प्रकट हुए और इसी के बाद सूर्य षष्ठी व्रत आरंभ हुआ जो आगे चलकर छठ व्रत के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
द्रौपदी द्वारा सूर्य उपासना के वैदिक स्रोत
महर्षि लोमश ने जब द्रोपदी को षष्ठी व्रत का महत्व बताया तब द्रौपदी ने सूर्य देव और छठ मैया का संयुक्त ध्यान करने का संकल्प लिया। द्रौपदी ने इस दौरान पांडवों के सभी संकटों के निवारण के लिए सूर्य षष्ठी व्रत किया जब उन्होंने यह व्रत किया तो निम्नलिखित मंत्र का जाप किया।
ॐ आदित्याय नमः।
सहस्रांशो, विश्वभर्ता नमोऽस्तु ते।
संकटान्मे विमोक्षाय छठ्ठी देवि नमोऽस्तुते॥”
माता कुंती और द्रौपदी द्वारा की गई सूर्य उपासना हमें यह बताती है कि जीवन कितना भी अंधकारमय क्यों ना हो सूर्य की ओर देखना ना छोड़े। सूर्य ही शक्ति का केंद्र है और इसी से पृथ्वी और सृजन शक्ति का विस्तार होता है। माता कुंती और द्रौपदी द्वारा जपे गए मंत्र केवल शब्द मात्र नहीं बल्कि आत्म शक्ति, संयम और श्रद्धा का स्वरूप है। इसीलिए त्रेता युग में माता सीता, द्वापर युग में माता कुंती और द्रौपदी द्वारा किया गया यह छठ व्रत आज भी अमर है और सदा से संदेश देता आया है कि प्रकाश की और लौटना ही साधना का स्वरूप है।
FAQ– Chhath Puja History in Hindi
क्या द्रोपती ने छठ पूजा की थी?
हां द्रौपदी ने छठ पूजा की थी। द्रौपदी ने छठ व्रत रखा और निर्जल रहकर पानी में खड़े होकर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जिसके बाद धीरे-धीरे पांडवों के जीवन में सुख लौटने लगा राज्य में धर्म की स्थापना हुई और द्रोपती का सम्मान पुन स्थापित हुआ।
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