
Chhath Puja Kosi Bharne ki Vidhi: भारत में मनाया जाने वाला प्रत्येक पर्व एक विशेष मान्यता के साथ मनाया जाता है। भारत की परंपराएं केवल कर्मकांड तक सीमित नहीं रहती बल्कि यह भावनाओं से जुड़ी होती हैं। इनमें श्रद्धा और आस्था की लौ का प्रकाश होता है। इन्हीं में से एक है छठ महापर्व। छठ महापर्व के दौरान विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान किए जाते हैं और इस दौरान किया जाता है एक विशेष संकल्प जिसे कोसी भरना कहा जाता है।
कोसी भरना छठ पूजा का केवल एक भाग नहीं बल्कि यह मनोकामना पूर्ति की अभिव्यक्ति है। भगवान की तरफ दिखाया जाने वाला कृतज्ञता का भाव है। छठ पूजा में जब किसी व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है तब वह छठ मैया के प्रति धन्यवाद प्रकट करते हुए कोसी भरते हैं।
यह मनोकामना किसी भी प्रकार की हो सकती है चाहे संतान से जुड़ी हो, परिवार की सुख समृद्धि या किसी बड़ी बाधा से मुक्ति की। मान्यता है कि छठ मैया से मांगी गई मुराद साल भर के भीतर पूरी हो जाती है और इसके बाद वृत्ति को कोसी भरनी पड़ती है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी नई सभ्यता के लोग उसे उतनी ही आस्था के साथ निभाते हैं।
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क्या होती है कोसी
कोसी छठ पूजा का एक विशेष अनुष्ठान होता है जिसमें व्रत की सिद्धि के बाद व्रती को आभार प्रकट करना होता है। इस दौरान व्रत करने वाला जिसकी मनोकामना पूरी हुई है उसे गन्ने के मंडप के नीचे एक विशेष कलश और दीप मलिक स्थापित करनी होती है। यह कलश ही कोसी कहलाता है। इसमें मौसमी फल, सब्जियां, ठेकुआ, बताशे, खस्ता चावल के लड्डू इत्यादि रखे जाते हैं। इसके चारों ओर दीप जलाए जाते हैं। यह छठ मैया की तरफ प्रकट किया जाने वाला कृतज्ञ का भाव होता है जो छठ मैया को धन्यवाद देने के लिए किया जाता है।
कोसी के आसपास जलने वाले दीपों की रोशनी सुख समृद्धि और संपन्नता का प्रतीक मानी जाती है और कोसी में भरे हुए सामान छठ मैया के आशीर्वाद का प्रतीक होते हैं। मन्नत पूरी होने का उत्सव ही कोसी भरना कहा जाता है। छठ के पर्व पर यह दिखाता है कि किस प्रकार यदि छठी मां से कुछ मांगा जाए तो वह निराश नहीं करती।
छठ पर्व पर कोसी किस प्रकार भरी जाती है
कोसी छठ तिथि की संध्या भरी जाती है। कोसी भरने वाले व्यक्ति को घाट पर जाना पड़ता है। यदि आसपास घाट उपलब्ध नहीं है तो घर के आंगन में भी कोसी भरी जा सकती है। कोसी भरने के लिए वातावरण को अत्यंत शुद्ध पवित्र रखना होता है। दिल में भक्ति भाव भरकर मनोकामना पूर्ण होने वाले व्यक्ति को कोसी भरनी पड़ती है। संभव हो सके तो इस दौरान छठ गीत गुनगुनाएँ जिससे मन के सारे भाव शुद्ध होने लगते हैं। और जितने ज्यादा हो सके दीप जलाएं ताकि छठ मैया को धन्यवाद कहा जा सके।
कोसी भरने की प्रक्रिया
कोसी कोई भी व्यक्ति भर सकता है फिर वह चाहे स्त्री हो या पुरुष जिस भी व्यक्ति की मन्नत पूरी हुई थी उसे कोसी भरनी पड़ती है। कहा जाता है कि जिस वर्ष मन्नत पूरी हुई उसी वर्ष कोसी भरनी चाहिए। यदि आपने एक मन्नत मांगी तो एक कोसी भरे यदि दोहरी मन्नत मांगी है और दोनों मन्नते पूरी हुई है तो दो कोसी भरे। कोसी भरने के लिए गन्ने का मंडप तैयार किया जाता है। इसके लिए सात या 14 गन्नों की आवश्यकता होती है और लाल कपड़ा अनिवार्य होता है। 7 या 14 गन्नों से मंडप तैयार करें। इसे लाल कपड़े से बाँधें।
इसके नीचे चावल के आटे और हल्दी से चौक सजा नीचे की जमीन को गोबर से लीपकर फूल से सजाएँ। इसके बाद कोसी अर्थात एक कलश रखें इसके चारों ओर दीप जलाएं। कोसी में खील, बताशे, मौसमी फल, सिंघाड़ा, शकरकंद, ठेकुआ, खस्ता चावल के लड्डू भर दे। इसके ऊपर ढक्कन रख दे। अब उसे पर चार मुखी दिया जलाएं। चार मुखी दिया चारों दिशाओं को प्रकाशित करने का प्रतीक होता है। इसके बाद 12 या 24 सराई अर्थात मिट्टी के पात्र रखें हर सराई में एक फल एक सब्ज़ी और एक दिया रखे, दो मन्नत पूरी हुई है तो 2 कोसी बनाएं और 24 सराई सजाएं
कोसी सजाने के बाद पूजा विधि
कोसी सजाने के बाद सराई लगाई जाती है अपनी श्रद्धा अनुसार 12 या 24 सारी लगाने के बाद एक कलश लें। उसमें जल भरकर उसमें आम के पत्ते रखें अब हल्दी और चावल के आटे से गन्ने, कलश और मंडप का टीका करें। इसके बाद गणेश जी का आवाहन करें और उनकी पूजा करें। सभी दियों पर अक्षत रोली मौली और चंदन समर्पित करें और पूजा करें इसके बाद छठ मैया का पारंपरिक पारंपरिक गीत हो सके तो इस दिन रात भर भक्ति में लीन रही और छठ मैया का धन्यवाद करें।
कोसी विसर्जन और प्रसाद
छठ के दिन कौन सी पूजन करने के बाद सप्तमी के दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद कोसी विसर्जन की प्रक्रिया पूरी की जाती है। सभी फल सब्जियां गन्ने को प्रसाद के रूप में बांटें और कलश को बहते जल स्रोत में विसर्जित कर दे। यदि आपके आसपास बहते जल का स्रोत नहीं है तो घर में ही कृत्रिम टब बनाएं और इसमें कौन सी विसर्जित करें और सभी आत्मीय जनों में प्रसाद वितरित करें। इस प्रसाद को ग्रहण करने से जीवन में सुख सौभाग्य और निरोग्यता आती है।
कुल मिलाकर कोसी भरने की परंपरा केवल आस्था और कृतज्ञता का उत्सव नहीं बल्कि यह सिखाता है कि हर व्यक्ति की हर मनोकामना जरुर पूरी होती है और मनोकामना पूरी होने के बाद ईश्वर को धन्यवाद जरूर देना चाहिए ताकि अन्य लोगों को भी प्रेरणा और प्रोत्साहन मिले। कोसी केवल मिट्टी के दिए और कलश मात्रा नहीं होते यह मानव जीवन की आंतरिक ज्योति का प्रतीक है जो बताता है कि किस प्रकार इस प्रज्वलित रखना चाहिए।
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FAQ- chhath puja kosi bharne ki vidhi
कोसी भरने की विधि क्या है?
कोसी भरने के लिए 7 या 14 गन्ने का मंडप तैयार करें। इसे लाल कपड़े से बाँधें। इसके नीचे चावल के आटे और हल्दी से चौक सजा नीचे की जमीन को गोबर से लीपकर फूल से सजाएँ। इसके बाद कोसी अर्थात एक कलश रखें इसके चारों ओर दीप जलाएं। कोसी में खील, बताशे, मौसमी फल, सिंघाड़ा, शकरकंद, ठेकुआ, खस्ता चावल के लड्डू भर दे। इसके ऊपर ढक्कन रख दे। अब उसे पर चार मुखी दिया जलाएं।
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