Emotional Agility: ऐसी आदत जो जीवन बदल कर रख दे

Emotional Agility Kaise Badhaye
Emotional Agility Kaise Badhaye

भावनात्मक लचीलापन (Emotional Agility) एक ऐसा शब्द है जिसे प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ. सुसन डेविड ने अपनी किताब “Emotional Agility” के माध्यम से पहली बार दुनिया के सामने प्रस्तुत किया था। डॉ सुसन कहती हैं, भावनात्मक लचीलापन एक ऐसी क्षमता  है जिसके द्वारा इंसान अपनी भावनाओं को पहचानकर उन्हें नाम देता है। उन्हें स्वीकार कर के उन पर विचार करता है फिर सोच-समझ के जवाब देता है, न कि उन भावनाओं के प्रभाव में आकर रिएक्ट करता है।

आसान शब्दों में Emotional Agility को समझें

Emotional Agility यानि भावनात्मक लचीलापन। इसके नाम से ही जाहिर है कि यह इंसान की भावनाओं में लचीलापन लाने की बात करता है। आसान शब्दों में कहें तो इंसान को आज के दौर में सिर्फ बाहरी दुनिया से नहीं बल्कि अपने अंदर की दुनिया से भी जूझना पड़ता है, लड़ना पड़ता है। देखा जाए तो इंसान बाहरी चुनौतियों से कैसे भी निकल जाता है, लेकिन उसके अंदर जो चीज चल रही होती है, उनसे पार पाना आसान नहीं होता है।

गुस्सा, दुख, दर्द, पीड़ा, डर, सुरक्षा, आत्मविश्वास में कमी जैसी जाने कितनी भावनाओं से इंसान दो चार होता रहता है। यह भावनाएं हमारे अंदर रोज उठती हैं इनसे बचना मुमकिन नहीं है। यह भावनाएं तो हमारे अंदर आएंगी ही, लेकिन इन भावनाओं को स्वीकार करके बिना रियेक्ट किये इन्हें अपने हिसाब से ढालना ही भावनात्मक लचीलापन (Emotional Agility) कहलाती है।

Emotional Ego और Emotional Agility में अंतर

कई बार हम अपने अंदर उठती हुई भावनाओं को स्वीकार करने से ही इनकार कर देते हैं। उदाहरण के तौर पर कुछ लोग ये कभी मानने को तैयार ही नहीं होते हैं कि वे रो सकते हैं या उन्हें दुख महसूस हो रहा है। कोई कहता है कि वो कभी गुस्सा नहीं करता तो कोई कहता है कि उसे कभी डर नहीं लगता। 

ये सारे उदाहरण emotional ego के उदाहरण है जिसमें लोग अपनी भावनाओं को स्वीकार ही नहीं करते जो बहुत गलत बात है। आपको अपनी भावनाओं को स्वीकार करना चाहिए। Emotional Agility में यही सिखाया जाता है कि अपनी भावनाओं को स्वीकार करें उसके बाद उन पर विचार करें और फिर कोई भी निर्णय लें। किसी भी भावना को खुद पर हावी होने ना दे।

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Emotional Agility बढ़ाने के उपाय

भावनाओं के बारे में खुलकर बात करें- अपनी भावनाओं को खुलकर रखना भावनात्मक लचीलेपन (Emotional Agility) की तरफ बढ़ने का पहला कदम है। आप जो भी महसूस कर रहे हों उसे शब्दों में जरूर बयान करें। जैसे मैं गुस्सा हूं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है या आज मैं बहुत खुश हूं। इन सारी भावनाओं का प्रदर्शन आप जरूर करें।

ख़ुद की भावनाओं को हावी न होने दें- जब आप अपने अंदर उठती भावना को स्वीकार कर लेते हैं तो उसे खुद पर हावी न होने दें। किसी भी भावना में आकर कोई भी निर्णय न लें। भावनाओं को खुद से अलग करके चलें और जब भी ऐसी स्थिति आए जहां आपको निर्णय लेना है तो भावनाओं को साइड में रखकर लॉजिकल थिंकिंग के बेस पर ही कोई निर्णय ले।

समस्या नहीं समाधान की तरफ ध्यान दें- भावनाओं में लचीलापन (Emotional Agility) बढ़ाने के लिए इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी “क्यों” को इतना महत्व नहीं देना है, जितना ज़ोर आपको “क्या” पर देना है। कहने का मतलब है कि कोई समस्या क्यों हो रही है से ज्यादा जरूरी यह जानना है कि उस समस्या को हल कैसे किया जाएगा। हमें प्रॉब्लम की तरफ नहीं बल्कि सॉल्यूशन की तरफ ध्यान देना है।

Emotional Agility Kya Hai

ध्यान-योग को दिनचर्या में शामिल करें- अपनी भावनाओं को लचीला Agility) बनाने के लिए ध्यान-योग व माइंडफुलनेस जैसी महत्वपूर्ण एक्टिविटी को अपनाएँ। यह क्रियाएं हमारे अंदर ठहराव लाती हैं और हमारी भावनाओं को काबू करने में बहुत मदद करती हैं। इन्हें अपने जीवन का हिस्सा जरूर बनाएं।

भावना की पहचान- अगर आपके अंदर कोई भी भावना उठ रही हो तो उसे पहचान लें और यह स्वीकार करें कि हां मुझे इस समय ऐसी भावना उठ रही है। कुछ दिन बाद यह भावना खत्म हो जाएगी इसलिए मुझे इसके बारे में नहीं सोचना है। भावनात्मक लचीलेपन (Emotional Agility) की वास्तव में तभी सफल होता है जब हम खुद को नियंत्रित कर लें।

निर्णय को सामूहिक समारोह न बनाएँ, स्वयं ले निर्णय- अक्सर देखा गया है लोग भावना के आवेश में कुछ भी निर्णय ले लेते हैं। वह निर्णय लेते समय इतने लोगों को उसमें इंवॉल्व कर लेते हैं कि वह एक व्यक्तिगत निर्णय न होकर सामाजिक निर्णय हो जाता है। इसलिए किसी भी निर्णय को लेने से पहले सामूहिक समारोह ना बनाएं बल्कि अपने अत्यंत खास लोगों से बात करें और उसके बाद स्वयं निर्णय ले वह भी बिना किसी भावना की।

निष्कर्ष 

भावनाओं के लचीलेपन (Emotional Agility) को बढ़ाने के इन सभी तरीकों को अपनाने से हमें अपनी जीवन में सकारात्मक बदलाव दिखाई देते हैं। हालांकि ये बदलाव बहुत धीमी गति से होते हैं लेकिन इसके फायदे दूरगामी होते हैं।

यह एक प्रैक्टिस है जो रोजाना लिए छोटे-छोटे फैसलों से बनती है। इसलिए अपनी भावनाओं को समझें, उन्हें स्वीकार करें और उन्हें खुद पर हावी न होने दें। क्योंकि जिंदगी में स्थिर वही है जिसके अंदर लचीलापन है। भावनाएं आती जाती रहेंगी। अगर आप भावनाओं पर कंट्रोल रखते हैं तो इसमें सबसे ज्यादा भला आपका ही होगा और भावनात्मक लचीलेपन (Emotional Agility) का भी यही उद्देश्य होता है।

FAQ- What Is Emotional Agility

भावनात्मक लचीलापन क्या है?

भावनाओं को स्वीकार करके, फिर इन्हें अपने हिसाब से ढालना बिना रिएक्ट किए। यही क्षमता भावनात्मक लचीलापन कहलाती है।

Anu Pal

मैं अनु पाल, Wisdom Hindi ब्लॉग की फाउंडर हूँ। मैं इंदौर मध्य प्रदेश की रहने वाली हूं। मैं एक ब्लॉगर और Content Writer के साथ-साथ Copy Editor हूं और 5 साल से यह काम कर रही हूं। पढ़ने में मेरी विशेष रूचि है और मैं धर्म, आध्यात्म, Manifestation आदि विषयों पर आर्टिकल्स लिखती हूं।

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