
Jagannath Pahandi Bije: भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हर साल पुरी में आयोजित की जाती है इस यात्रा में कई भव्य अनुष्ठान और परंपराएं निभाई जाती हैं। इन्हीं अनुष्ठानों में से एक है जगन्नाथ पहांडी बिजे(Pahandi Bije). यह रस्म भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को मंदिर के गर्भ रहते उनके रथों तक ले जाने की प्रक्रिया है।
यह न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि एक संस्कृति पर आध्यात्मिक उत्सव भी है जो भक्तों के बीच श्रद्धा और एकता को दर्शाता है। आज की चर्चा पहांडी बिजे (Jagannath Pahandi Bije) के महत्व, इसकी प्रक्रिया, इससे जुड़ी भ्रांतियों व अन्य पहलुओं पर आधारित है।
जगन्नाथ पहांडी बिजे का महत्व
पहांडी बिजे का शाब्दिक अर्थ है “पदमुंडनम” (Padamundanam). यह संस्कृत से लिया गया शब्द है जिसका मतलब है संतुलित गति से धीमी चाल चलना। बिजे (Bije) का अर्थ है राजा या देवताओं की शोभायात्रा। यह रस्म भगवान जगन्नाथ की मानवीय विशेषताओं को दर्शाती है जो उन्हें एक आम इंसान के समान बनाती है। इस विश्वास को पक्का करती है कि भगवान अपनी भक्तों के बीच जाकर उनकी भक्ति और प्रेम को स्वीकार करते हैं।
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पहांडी बिजे रथ यात्रा का पहला चरण है, जिसमे भक्तों को अपने आराध्य के दर्शन का अवसर मिलता है यह रस्म बताती है कि भगवान सबको सुलभ है और वह हर जाति धर्म वर्ग और समुदाय के लोगों समान रूप से उपलब्ध होते हैं। वहीं अगर ऐसी प्रथा के आध्यात्मिक पहलू की बात की जाए तो पहांडी बिजे(Jagannath Pahandi Bije) आत्मा की मुक्ति की यात्रा का प्रतीक है।
यह बताती है कि जिस तरह भगवान मंदिर से बाहर निकलकर भक्तों से मिलते हैं, वैसे ही मानव आत्मा को भौतिक बंधनों से मुक्त होकर ईश्वर की ओर बढ़ना चाहिए। यह प्रथा इस बात की प्रतीक है कि भगवान तक पहुंचने का मार्ग श्रद्धा, समर्पण और एकता से भरा होता है।
पहांडी बिजे की प्रक्रिया
पहांडी बिजे (Jagannath Pahandi Bije) एक ऐसी है, जिसमें कई चरण और परंपराएं शामिल हैं। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में संपन्न की जाती है-
देवताओं का श्रृंगार– इस प्रथा की शुरुआत भगवान को सजाने से होती है। पहांडी बिजे से पहले भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन चक्र की मूर्तियों को फूलों, आभूषणों और खास वस्त्रों से सजाया जाता है। मूर्तियों को विशेष रूप से तैयार किया जाता है, ताकि वे रथ यात्रा के लिए उपयुक्त हों।
धडी पहांडी और गोती पहांडी– पहांडी बिजे प्रथा दो तरीकों से होती है- धडी पहांडी और गोती पहांडी। धडी पहांडी रस्म तब की जाती है जब देवताओं को मंदिर से बाहर रथों की ओर लाया जाता है। इस रस्म में चारों देवता (सुदर्शन, बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ) एक साथ एक कतार में चलते हैं। वही गोती पहांडी प्रथा भगवान की मंदिर में वापसी के दौरान की जाती है जिसमें एक-एक करके देवता को ले जाया जाता है। सुदर्शन चक्र सबसे पहले चलता है, उसके बाद बलभद्र, सुभद्रा और अंत में भगवान जगन्नाथ।
सेनापट लगी– भगवान जगन्नाथ और बलभद्र की मूर्तियां भारी होती है इस कारण उनके पीछे एक लकड़ी का खंबा (सेना) लगाया जाता है और सिर व कमर पर मोटी रस्सियां बांधी जाती हैं। यह प्रक्रिया “सेनापट लगी” कहलाती है। सुभद्रा और सुदर्शन की मूर्तियां हल्की होती हैं, इसलिए उन्हें कंधों पर लेटी अवस्था में ले जाया जाता है।
संगीत और नृत्य– पहांडी बिजे (Jagannath Pahandi Bije) के दौरान घंटा (घंटी), कहाली (तुरही) और तेलिंगी बाजा (ढोल) जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं। इसके अलावा इस अवसर पर ओडिसी नृत्य और संकीर्तन (सामूहिक भजन) भी किए जाते हैं, जो उत्सव का माहौल बनाते हैं। इस दौरानभक्त “जय जगन्नाथ” व “हरि बोल” के उद्घोष के साथ उत्साह में झूमते हैं।
तहिया पहनाना– पहांडी बिजे के दौरान भगवान जगन्नाथ सहित सभी देवताओं को विशेष फूलों से बनी तहिया (मुकुट) पहनाई जाती है। यह तहिया राघव दास मठ द्वारा तैयार की जाती है। भगवान जगन्नाथ की तहिया “मयूर चंद्रिका” कहलाती है। यह 7 फीट से अधिक ऊंची होती है। बलभद्र की तहिया भी “मयूर चंद्रिका” होती है, जबकि सुभद्रा की तहिया “पनिया” कहलाती है।
रथों तक यात्रा– इस प्रश्न को करने के लिए भगवान की मूर्तियों को मंदिर के रत्न सिंहासन से 22 सीढ़ियों के माध्यम से नीचे लाया जाता है। इन सीढ़ियों को बाइसी पाहाचा कहा जाता है। मूर्तियों को रथों तक ले जाया जाता है। यह यात्रा धीमी और लाइव होती है जिसमें सेवक मूर्तियों को आगे पीछे हिलाते हैं, जो भगवान की अनिच्छा को दर्शाता है।
परंपराएं और रीति-रिवाज
पहांडी बिजे (Jagannath Pahandi Bije) से कई परंपराएं जुड़ी हुई है जो इसे और भी खास बनाती हैं। एक परंपरा के अनुसार भक्तों को इस दौरान देवताओं को ताना मारने उन्हें हल्के से थप्पड़ मारने और उनकी आलोचना करने का अधिकार दिया जाता है। यह परंपरा भगवान जगन्नाथ की मानवीय छवि को दिखती है जो अपने भक्तों के साथ सामान्य व्यवहार करते हैं
वही एक अन्य परंपरा में रथ यात्रा के दौरान भगवान के रथों को भक्तों द्वारा खींचा जाता है। यह रस्म पापों के नाश और आशीर्वाद की प्राप्ति का प्रतीक है इसके अलावा गजपति राजा द्वारा “छेरा पन्हारा” रस्म की जाती है, जिसमें वे रथों की सफाई करते हैं, जो समानता और विनम्रता का संदेश देता है।
पहांडी बिजे प्रथा से जुड़ी भ्रांतियां और कथानक
पहांडी बिजे और रथ यात्रा से जुड़े कई कथानक और भ्रांतियां प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों से भेंट करने के लिए मंदिर से बाहर आते हैं क्योंकि वह अपने भक्तों के प्रेम को अस्वीकार नहीं कर सकते। वहीं एक अन्य कथा में कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर जाते हैं जो उनकी मातृभूमि की यात्रा का प्रतीक माना गया है
एक अन्य प्रचलित भ्रांति यहां है कि पहांडी बिजे (Jagannath Pahandi Bije) के दौरान भगवान की मूर्तियां स्वयं ही चलती हैं। वास्तव में या सेवकों की मेहनत और गति का परिणाम है। एक अन्य भ्रांति यह कहती है कि रथ यात्रा केवल हिंदुओं के लिए है लेकिन यह सभी धर्म और समुदायों के लिए खुली है।
निष्कर्ष
पहांडी बिजे (Jagannath Pahandi Bije) रथ यात्रा का एक अभिन्न अंग है, यह भक्ति, समर्पण और एकता का प्रतीक है। यह भक्तों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है। संगीत नृत्य और परंपराएं इसे एक यादगार अनुभव बनाते हैं। केवल एक धार्मिक प्रश्न ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी है जो भारत की प्रमुख विरासत को दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है। इसका मूल अर्थ यह है की सच्ची भक्ति में कोई बंधन नहीं है और ईश्वर सभी के लिए उपलब्ध हैं।
FAQ- Jagannath Pahandi Bije
भगवान जगन्नाथ की धड़ी पहांडी क्या है?
पहांडी बिजे प्रथा दो तरीकों से होती है- धडी पहांडी और गोती पहांडी। धडी पहांडी रस्म तब की जाती है जब देवताओं को मंदिर से बाहर रथों की ओर लाया जाता है। इस रस्म में चारों देवता (सुदर्शन, बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ) एक साथ एक कतार में चलते हैं।