
Kanakdhara Strot Path on Diwali: दीपावली केवल एक पर्व नहीं परंतु आत्मा के अंधकार को मिटा कर प्रकाश से भर देने का दिव्य अवसर भी है यह वह पर्व है जब करोड़ों दीपक केवल घरों को नहीं बल्कि हृदय को भी रोशन करते हैं। दीपावली की शुरुआत धन त्रयोदशी से हो जाती है और भाई दूज के पर्व तक चलती है। 5 दिनों का यह विशिष्ट अवसर माता लक्ष्मी की पूजा का उचित समय माना जाता है। कहा जाता है कि इन पांच दिनों के दौरान उचित तरीके से की गई साधन न केवल धन की वृद्धि करती है बल्कि समृद्धि सौभाग्य और शांति भी लेकर आती है।
इन पांच दिनों के विशेष अवसर पर यदि कोई जातक कनकधारा स्त्रोत का पाठ करता है तो उसे न केवल माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है बल्कि सभी देवी देवता उस पर अपनी अलौकिक कृपा बरसाते हैं। जी हां भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में अनेक स्रोत और मंत्र ऐसे हैं जो साधक को आध्यात्मिक अनुभव कराते हैं। ऐसा ही एक स्रोत है कनकधारा स्त्रोत जो माता लक्ष्मी की आराधना का प्रभावशाली स्रोत माना जाता है। इसे अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने केवल 8 वर्ष की आयु में रचा था।
इस स्तोत्र के पाठ से न केवल माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं बल्कि जीवन के सभी प्रकार के अंधकार भी दूर हो जाते हैं व्यक्ति आध्यात्मिकता की ओर प्रशस्त होता है, दुख का अंधकार मिटता है और समृद्धि की स्वर्णिम धारा प्रवाहित होती है। आज के इस लेख में हम आपको कनकधारा स्त्रोत की उत्पत्ति, इसका महत्व, दिवाली के 5 दिनों तक इसके जाप और कनकधारा स्त्रोत का शुद्ध उच्चारण बताने वाले हैं ताकि आप भी इस स्तोत्र का पाठ कर जीवन में सुख समृद्धि और बरकत हासिल कर सकें।
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कनकधारा स्त्रोत की उत्पत्ति की कथा
आदि शंकराचार्य महाराज 8 वर्ष की आयु में ही सन्यास ग्रहण कर चुके थे। वह उसे समय सन्यासी जीवन की कठोर साधना का पालन कर रहे थे और इस दौरान वे जगह-जगह पर भिक्षाटन की परंपरा का पालन करते थे अर्थात् वे गांव गांव जाकर भिक्षा माँगते थे। एक दिन आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगते हुए एक छोटे से गांव में पहुंचे। गांव अत्यंत साधारण था और गांव के सभी लोग बेहद गरीब थे।
आदि शंकराचार्य एक घर के पास रुके। यह घर कच्ची मिट्टी का बना हुआ था। आदि शंकराचार्य ने घर के दरवाजे पर भिक्षा हेतु आवाज लगाई “भिक्षाम देही मां!” आवाज सुनकर उस घर में रहने वाली एक महिला बाहर आई। महिला ब्राह्मणी थी जो देखने में ही भावुक और कष्टों से भरी हुई प्रतीत होती थी। घर की दीवारें भी अत्यंत जर्जर थीं। देखने से पता लगता था कि इस घर में कई दिनों से चूल्हा नहीं जला है और परिवार में किसी ने भोजन नहीं किया है।
परंतु जब उस मां ने अपने दरवाजे पर खड़े संन्यासी बालक को देखा तो उसके मन में विचार आया कि इसे खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। हालांकि माँ के पास देने के लिए कुछ था नहीं परंतु उसने सोचा कि उसके पास जो कुछ भी है उसमें से वह कुछ तो दे ही सकती है। ऐसे में वह घर के अंदर गई और खोजबीन करने लगी। उसे घर में कहीं कुछ नहीं मिला, वह बहुत निराश हो गई। अंततः बहुत खोजबीन के बाद उसे कोने में रखा हुआ एक सूखा हुआ आंवला दिखाई दिया। हालांकि आंवला इतना सूख चुका था कि वह खाने लायक भी नहीं बचा था।
परंतु मां के मन में आया कि खाली हाथ लौटाने से अच्छा है कि वह संन्यासी को निश्चल भाव से कुछ भी दान करें। मां ने कहां पर हाथों से शंकराचार्य को वह सूखा हुआ वाला अर्पित कर दिया। बालक शंकराचार्य ने जब वह आँवला अपने हाथ में लिया तो उन्हें तीव्र करुणा का अनुभव हुआ। वे सोचने लगे कि यह माई खुद भूखी है परंतु यथासंभव दान करने की भावना रखती है और इसी भाव को ध्यान में रखते हुए उनके अंदर आध्यात्मिक शक्ति जागृत हुई और उन्होंने श्री लक्ष्मी स्तुति की एक की स्रोत की रचना आरंभ की।
इस रचना के माध्यम से उन्होंने माता लक्ष्मी का ऐसा आह्वान किया कि माता लक्ष्मी इतनी प्रसन्न हो गई कि संपूर्ण वातावरण में अद्भुत ऊर्जा फैल गई। आकाश से स्वर्णिम आभा प्रकट हुई और महिला के घर में सोने के आंवलों की धारा बहने लगी। छोटी से झोपड़ी में सोने के आंवले गिरने लगे। पूरा घर चमक उठा, जो महिला कुछ समय पहले तक भूख और गरीबी से व्याकुल थी उसके जीवन में अब धन धान्य की कोई कमी नहीं रह गई।
आदि शंकराचार्य द्वारा रचित यह स्रोत कनकधारा स्त्रोत कहा गया। कनक अर्थात सोना धारा अर्थात वर्षा अर्थात ऐसा स्रोत जिसके पाठन मात्र से व्यक्ति के जीवन में सोने की वर्षा होने लगती है।
कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram in Sanskrit)
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
बृह्मेन्द्रगङ्गरमणीयमहः प्रपन्ना ।
लोकास्रयाः सुततनुं पवनेन जातां
धन्यां नमामि दिशतां मम दैवतं ताम् ॥ १ ॥
इन्द्रादिदेवगणवन्दितसेव्यमाना
सौभाग्यदायिनि सभाजितपद्मनेत्रे ।
विष्णुप्रिया मम ददातु धनं शुभं तव
पद्माकरप्रसूत शुभे नमस्ते ॥ २ ॥
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट
स्वर्वाहिनीविमलचारुविलासिनि त्वम् ।
सर्वेश्वरी मम धनं दिश मे करस्थं
सौभाग्यदायिनि गणेशजने नमस्ते ॥ ३ ॥
कुब्जाम्बिकाकुचकुंकुमसंनिविष्ट
कस्तूरिकामृगमदासविलिप्तगात्राम् ।
विश्वेश्वरीं जगदधारिणीं त्वमीड्यां
लक्ष्मीं नमामि मम धन्यतामुपेयम् ॥ ४ ॥
प्रालम्बमौक्तिकसुतामणिचन्द्रलेखा-
विस्तारितं कृतसुभासितमन्दहासाम् ।
पादांबुजं सुमनसां नतविभ्रमाणां
पद्मप्रिये मम धनं कुरु मे प्रसादात् ॥ ५ ॥
आद्यानि ते चरणयुग्ममनीतवृत्तं
दृष्ट्वा मया प्रणतसर्वजगन्मनोज्ञे ।
मङ्गल्यदायिनि मनोहरिणि त्वमीड्ये
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ ६ ॥
मञ्जीरमञ्जुलतरङ्गभुजङ्गनाग-
राजत्सुपादयुगलं नखदीप्तिपुञ्जम् ।
विप्राणमद्भुततमं वितरन्ति भद्रं
लक्ष्मीं नमामि मम सन्निधत्ताम् ॥ ७ ॥
श्रीमन्नितम्बभुवनं स्मरशर्वनेत्र-
निर्माणदीपशिखया च सुवासिताङ्गीम् ।
अभ्यर्च्य भक्तिवशगां नमतोऽहमाद्यां
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ ८ ॥
कमलनायिके कमलमालिनि विश्वमातः
सौरभ्यवाति कमलानि मनोहराणि ।
पादारविन्दयुगलं परिपाट्य सेवां
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ ९ ॥
स्वीयेक्षणे जगदिदं भवतीं प्रसीद
सर्वान्यथासितमसौख्यभयाति धूतम् ।
श्रीकांतिके त्वमसि सर्वजगन्महिष्ठा
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ १० ॥
धन्यां लसन्मकरकुण्डलमन्दहासां
पद्मप्रियां मणिगृहेषु मनोज्ञवर्णाम् ।
श्रीविष्णुवामभुजनीवसितां नमामि
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ ११ ॥
भोग्यं च नित्यसुखदं कल्याणहेतुम्
विभ्राजमानवपुषं करुणार्द्रदृष्टिम् ।
श्रीमन्महेशमनिशं नतवत्सलां तां
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ १२ ॥
सिद्धेश्वरीं सकलसिद्धिनिबन्धनीं ताम्
श्रीं भक्तलोकवशगां स्मरमन्दराङ्गीम् ।
विभ्राजमानमकरालयमध्यस्थां तां
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ १३ ॥
देवीं प्रसन्नमुखपङ्कजमञ्जुलां तां
पद्मप्रियामनुदिनं परिपाट्य सेवे ।
प्राप्त्या सदा मम गृहं प्रविशेत्सुपीता
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ १४ ॥
चन्द्रांशुबिंबवदनां चन्द्रलेखाधरेयं
भालस्थितां नयनयुग्मविभूषिताङ्गीम् ।
चन्द्रारविन्दवदनामनिशं स्मरामि
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ १५ ॥
देवीं सुरेश्वरिगणेश्वरमौलिवन्द्यां
भक्तिप्रियां सकललोकहितैषिणीं ताम् ।
साम्राज्यदायिनि सदाभवतु प्रसन्ना
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ १६ ॥
लक्ष्मीं क्षमां करुणया सह संयुज्यन्तीं
नारायणेन सह सदा भवतीं प्रसीद ।
श्रीमन्महेशगुरुसेवितपादपद्मां
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ १७ ॥
कान्त्याऽतिविशदां लसन्तमौलिं
माणिक्यहारविलसन्मणिमुक्तभूषाम् ।
श्रीमन्महेशमणिमण्डितकौस्तुभाढ्यां
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ १८ ॥
माता मरालविलसत्करपल्लवाढ्यां
मञ्जीरमञ्जुलमनोहरहारभूषाम् ।
श्रीमन्महेशविलसत्पदपद्मभक्तां
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ १९ ॥
सौन्दर्यलावण्यविभूषणाढ्यां
नारायणप्रियसखीं जनतापवित्राम् ।
श्रीकान्तमण्डनविभूषणविभ्रमाढ्यां
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ २० ॥
आद्यां च विश्वजननीं जगतां वरेण्यां
श्रीरङ्गराजमहिषीं करुणार्द्रदृष्टिम् ।
श्रीमन्महेशपदपद्मनिषेविताङ्गीं
लक्ष्मीं नमामि सततं मम सन्निधत्ताम् ॥ २१ ॥
कनकधारा स्त्रोत का पाठ दीपावली के 5 दिन क्यों करें (Kanakdhara Strot Path on Diwali)
कनक धारा स्त्रोत में 21 श्लोक हैं जो महादेवी लक्ष्मी के 21 स्वरूप की स्तुति हैं। इसे पढ़ने से केवल धन नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में समृद्धि आती है। कनकधारा स्त्रोत दीपावली के पांच दिन पढ़ने से न केवल बाहरी अंधकार दूर होता है बल्कि आंतरिक अंधकार भी मिटता है।
दीवाली के पांच दिन कनकधारा स्तोत्र पढ़ने का विधान
धनतेरस : धन की देवी लक्ष्मी और धन्वंतरि पूजा के साथ कनकधारा स्तोत्र पढ़ने से घर में समृद्धि आती है।
नरक चतुर्दशी: यह दिन नकारात्मकता को दूर करने का होता है। ऐसे में इस दिन कनकधारा स्त्रोत का पाठ करने से दरिद्रता दूर होती है और जीवन की बाधाएँ मिटती हैं।
दीपावली: अमावस्या के दिन लक्ष्मी गणेश पूजन के समय कनकधारा स्तोत्र पढ़ने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है और अपनी कृपा की वर्षा करती हैं।
गोवर्धन पूजा: प्रकृति और अन्नकूट महोत्सव में कनकधारा स्तोत्र पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती।
भाई दूज; यम द्वितीया भाई बहन के अद्वितीय प्रेम और यम द्वितीया के पावन पर्व पर कनकधारा स्त्रोत पढ़ा जाए तो परिवार में सुख समृद्धि और संपन्नता बरकरार रहती है।
कनकधारा स्तोत्र पढ़ने के लाभ
- कनकधारा स्त्रोत के पाठ से साधक के आसपास ब्रह्मांड की ऊर्जा का संचार बढ़ता है।
- मंत्रों के उच्चारण से एक विशेष ध्वनि का निर्माण होता है जिससे महादेवी श्री लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
- कनकधारा स्त्रोत के पाठ से व्यक्ति के आसपास एक विशेष कवच का निर्माण होता है जिससे वह जो कुछ भी पाना चाहता है उसे पाना उसके लिए आसान हो जाता है।
- इस स्तोत्र के पाठ से आर्थिक संकट दूर होने लगते हैं मंत्र की ध्वनि से मानसिक शांति मिलती है और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- कनकधारा स्त्रोत केवल धन के लिए नहीं परंतु महादेवी लक्ष्मी के आठ स्वरूपों की सिद्धि के लिए भी लाभकारी माना जाता है जो न केवल धन प्रदान करती है बल्कि संतान, ऐश्वर्य, आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान करती है।
- इस स्तोत्र के पाठ से घर परिवार में प्रेम सहयोग और सौहार्द बनता है
कनकधारा स्तोत्र का पाठ किस प्रकार करें
कनकधारा स्त्रोत का पाठ करने के लिए विशेष विधि का पालन अनिवार्य है, जिसके लिए सबसे पहले स्नान इत्यादि कर साफ वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात पूर्व या उत्तर की दिशा में मुख्य कर बैठे, अपने सामने लक्ष्मी जी की प्रतिमा रखें। इसके सामने घी का दीपक जलाएं। इसके बाद चित्र के सामने पुष्प धूप ने विद्या अर्पित करें। फिर श्रद्धा भाव से 21 श्लोक पढ़ें। यदि आप संस्कृत नहीं पढ़ सकते तो हिंदी भावार्थ पढ़ सकते हैं या ऑडियो सुन सकते हैं। स्रोत पूरा होने के बाद देवी को भोग लगाएँ और जरूरतमंद को यथासंभव दान करें ।
कुल मिलाकर दीपावली के 5 दिन कनकधारा स्त्रोत का पाठ न केवल बाहरी अंधकार को दूर करता है बल्कि आंतरिक अंधकार से निपटने की शक्ति भी प्रदान करता है और इस बार दीपावली पर दीपक जलाने के साथ-साथ कनकधारा स्त्रोत का पाठ भी अवश्य करें ताकि आप भी उस बूढ़ी माई की तरह स्वर्ण वर्षा का लाभ उठा सकें।
FAQ- Kanakdhara Strot Path on Diwali
कनकधारा स्त्रोत के क्या लाभ हैं?
कनकधारा स्त्रोत के पाठ से व्यक्ति के आसपास एक विशेष कवच का निर्माण होता है जिससे वह जो कुछ भी पाना चाहता है उसे पाना उसके लिए आसान हो जाता है।
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