
Pahla Chhath Kisne Kiya Tha: भारतीय संस्कृति में उपवास केवल धार्मिक अनुष्ठान के लिए नहीं किए जाते बल्कि उनके पीछे गहरे रहस्य छुपे होते हैं। ऐसा ही एक व्रत है छठ व्रत। छठ व्रत सूर्य देव और माता छठी की उपासना को समर्पित है। यह प्रार्थना न केवल शरीर को पवित्र करती है बल्कि आध्यात्मिक तरक्की भी प्रदान करती है। वर्तमान में छठ पर्व बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, नेपाल में धूमधाम से मनाया जाता है।
हालांकि इस व्रत की ऐतिहासिक और धार्मिक जड़ें त्रेता युग में पाई जाती है। जी हां कहा जाता है कि छठ व्रत की मानवीय शुरुआत माता सीता ने की थी। रावण के वध के बाद माता सीता जब अयोध्या वापस लौटी थी तब उन्होंने सूर्य देव की उपासना कर चेतना का संचार किया था और इस पावन परंपरा को जन जन तक पहुंचाया था।
छठ पूजा की त्रेता युग में पृष्ठभूमि
रामायण के अनुसार 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर जब भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे थे तब समूचा नगर दीपों से जगमगाया था। यह दिन दिवाली के रूप में मनाया जाता है। इसके बाद भगवान राम का राज्य अभिषेक छठे दिन पर किया गया था। दिवाली के बाद छठे दिन पर राज्य अभिषेक के दौरान माता सीता ने अयोध्या की पवित्र नदी सरयु में स्नान किया और उसके बाद सूर्य देव की उपासना की।
उन्होंने जन जन तक संदेश पहुंचाया कि सूर्य ही जीवन का ऊर्जा स्रोत है। सूर्य देव कर्म को प्रकाशित करते हैं और धरती तक शक्ति पहुंचाते हैं। जब सूर्य देव की ऊर्जा धरती को मिलती है तब सृष्टि सृजन शक्ति से परिपूर्ण होती है। और इसीलिए माता सीता ने भगवान सूर्य देव की आराधना कर प्रकृति से आवाहन किया था कि वह इस सृष्टि का संचार करें और अयोध्या में सुख शांति और समृद्धि स्थापित करें।
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कहा जाता है कि इसी व्रत के बाद छठ व्रत का संकल्प लिया गया और इसकी मानवीय शुरुआत हुई। वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड के अनुसार श्री राम के राज्य काल के प्रारंभिक वर्षों में ही माता सीता ने गर्भधारण किया। इसीलिए कहा जाता है कि वे सभी महिलाएं जो संतान प्राप्ति चाहती है वह भी छठ मैया की पूजा करें तो उन्हें स्वस्थ और बुद्धिमान संतान का वरदान मिलता है।
छठ व्रत का विधान
माता सीता ने दिवाली के छठवें दिन पर छठ व्रत का विधान ग्रहण किया। उन्होंने व्रत का पालन अत्यंत शुद्धता और संयम से किया। कार्तिक शुक्ल की षष्ठी के दिन प्रात काल स्नान कर सूर्य उदय की दिशा में उन्होंने सूर्य देव को अर्घ्य दिया। इसके बाद सूर्य देव को पवित्र नदी का जल, गुड़, चावल और अन्य प्राकृतिक अन्न समर्पित किया। इस व्रत के दौरान किसी प्रकार का भोग कोई विलास नहीं रखा गया बल्कि प्रकृति से मिले पदार्थ को ही सूर्य को समर्पित किया गया।
मान्यता है कि इस दिन माता सीता ने निर्जल रहकर दिनभर सूर्य की किरणों का ध्यान किया और सायं काल सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया। यह व्रत माता सीता की तरफ से सूर्य को आभार प्रकट भी माना जाता है। क्योंकि वनवास के कठोर दिनों में सूर्य देव के प्रकाश ने ही उनके जीवन की मार्ग को प्रशस्त किया। इसीलिए छठ मैया के व्रत में सूर्य देव की उपासना को महत्वपूर्ण माना जाता है।
छठ पर्व में सीता माता की परंपरा
सीता माता ने इस व्रत के माध्यम से अयोध्या की अन्य स्त्रियों को भी व्रत का मार्ग बताया। कहा जाता है कि शुरुआत के वर्षों में कुछ कुलीन स्त्रियों ने ही उनके साथ व्रत किया। परंतु धीरे-धीरे यह जन जन की परंपरा बन गई। माता सीता की इसी परंपरा की वजह से ही नेपाल में भी इस व्रत को किया जाता है।
सीता माता का इस व्रत को करने का मुख्य उद्देश्य केवल देवता की आराधना करना ही नहीं बल्कि स्त्री शक्ति, मातृत्व गौरव को पुनर्स्थापित करना है। क्योंकि यह व्रत मुख्य रूप से स्त्रियों द्वारा किया जाता है इसीलिए कहा जाता है कि जब स्त्रियां संकल्प लेती है तब सृष्टि में नई ऊर्जा नई चेतना जन्म लेती है और छठ माता भी इसी की अधिष्ठात्री देवी है।
छठ व्रत के दौरान उपासना और आध्यात्मिक अर्थ
त्रेता युग से ही छठ व्रत को केवल सूर्य का अर्घ्य देने का पर्व नहीं माना जाता बल्कि जीवन के प्रकाश का पर्व कहा जाता है। इस दौरान सूर्य की आराधना जल में खड़े होकर की जाती है। जल, सूर्य और अर्घ्य यह तीनों ही एक ऐसा संयोग तैयार करते हैं जो अपने तरह की एक योग साधना है।
- जल : जीवन के स्थिरता और पवित्रता का प्रतीक है।
- सूर्य : सत्य और ज्ञान का प्रतीक है।
- अर्घ्य: और जब व्यक्ति अर्घ्य देता है तब वह अपना अहंकार पाप और अंधकार सब कुछ समर्पित कर देता है।
इस प्रकार के संयोग से शरीर मन और आत्मा पवित्र होते हैं।
इस प्रकार माता सीता द्वारा शुरू किए गए इस छठ व्रत की परंपरा आज भी जन जन द्वारा निभाई जा रही है। वर्तमान में न केवल अयोध्या, नेपाल, परंतु उत्तर भारत के कई हिस्सों में इस व्रत को किया जाता है। समय के साथ इस व्रत की परंपरा अब देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भी निभाई जा रही है। विदेश में रहने वाले लोग भी सृष्टि के संचालक सूर्य देव और सृजन शक्ति की अधिष्टत्री देवी माता छठी की पूजा छठ पर्व के दौरान विधि विधान से करते हैं। यहां तक की सामग्री के अभाव में भी लोग इस पर्व की तैयारी जरूर करते हैं और धर्म और संयम के साथ इस पर्व को मानते हैं।
FAQ- Pahla Chhath Kisne Kiya Tha
सबसे पहले छठ पूजा किसने की थी?
कहा जाता है कि छठ व्रत की मानवीय शुरुआत माता सीता ने की थी। रावण के वध के बाद माता सीता जब अयोध्या वापस लौटी थी तब उन्होंने सूर्य देव की उपासना कर चेतना का संचार किया था और इस पावन परंपरा को जन जन तक पहुंचाया था।
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