जीवन लगता है बेमतलब? ऐसे निकलें इस सोच से बाहर

Existential Crisis Kya Hota Hai
Existential Crisis Kya Hota Hai

Existential Crisis Kya Hota Hai: Existential Crisis यानि अपने अस्तित्व की चिंता। आसान शब्दों में कहें तो खुद को लेकर चिंता करना। आजकल की फास्ट लाइफ में कई बार ऐसा होता है कि हमें अपने ही अस्तित्व की चिंता सताने लगती है। 

यह परेशानी तब होती है जब हम अपने होने का मतलब जानने की कोशिश करते हैं। अपने अल्टीमेट गोल के बारे में समझने की कोशिश करते हैं, हमारा फ्यूचर कैसा होगा? मृत्यु के बाद हमारा क्या होगा ? क्या हमारा कोई वजूद है भी या नहीं है? हम इस दुनिया में जो भी कर रहे हैं, वह क्यों कर रहे हैं? 

ऐसे अनेकों सवाल जो खुद से जुड़े होते हैं, धीरे-धीरे हमें चिंता ग्रस्त करते जाते हैं। इन्हीं सवालों से उपजी चिंता को अस्तित्व की चिंता (Existential Anxiety) कहा जाता है। जहां हमें हमारा वजूद ही, न होने के बराबर लगने लगता है।

क्या कहते हैं साइकोलॉजिस्ट Existential Crisis के बारे में

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अस्तित्व की चिंता (Existential Anxiety) मुख्यत: चार बातों से जुड़ी होती है मौत का डर, जिंदगी में आजादी, अकेलापन और जिंदगी में किसी मकसद का ना होना। उदाहरण के तौर पर अगर कोई व्यक्ति लगातार मृत्यु के बारे में सोचता रहता है तो उसे एक वक्त के बाद मृत्यु होने के भय से इतना डर लगने लगता है कि वह हमेशा तनावग्रस्त रहता है।

मृत्यु के बाद मेरा क्या होगा ? मेरा वजूद क्या है ? मेरा अस्तित्व क्या है ? ऐसे सवाल लगातार उसके मन में चलते रहते हैं और इन सवालों में उलझकर कई बार व्यक्ति डिप्रेशन मानसिक रोग का शिकार भी हो जाता है। ठीक इसी तरह भविष्य के बारे में सोचते हुए या अपने जीवन के बारे में ज्यादा सोचते हुए भी व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो सकता है ।

Existential Crisis के लक्षण और असर| Existential Crisis Symptoms

इसका सबसे सीधा असर हमारी नींद पर पड़ता है, हमें गहरी नींद मिल ही नहीं पाती है। साथ ही हमें बार-बार घबराहट भी होती रहती है। नकारात्मक विचार हमरा पीछे नहीं छोड़ते हैं और ये विचार धीरे-धीरे हमें भविष्य की तरफ ले जाते हैं और फिर मस्तिष्क को ओवरथिंकिंग के चक्रव्यूह में उलझा देते हैं। कई बार तनाव इतना बढ़ जाता है कि खाना पीना भी छूटने लगता है और धीरे-धीरे व्यक्ति ख़ुद से ही डरने लगता है। ऐसे में हमें तुरंत किसी की मदद लेनी चाहिए या किसी प्रोफेशनल से मिलना चाहिए।

Existential Crisis Symptoms

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Existential Anxiety से निपटने के उपाय

अपने इमोशन को स्वीकार करें- अगर आपको खुद की अस्तित्व को लेकर कुछ विचार आ रहे हैं। कुछ भावनाएं उठ रही हैं। तो ऐसे विचारों को नकारात्मक रूप ना दें। अपनी भावनाओं को स्वीकार करना सीखें, चाहे वह जैसी भी भावना हो। यह अस्तित्व की चिंता (existential crisis) से निपटने की तरफ पहला कदम होता है। इसलिए खुद के इमोशन से भागें नहीं उन्हें स्वीकार करें।

ख़ुद को समझाए ये विचार आना सामान्य हैं-हमें जब भी ऐसे विचार आते हैं जिनमें अस्तित्व से जुड़े हुए सवाल होते हैं तो हम इन सवालों से भागने लगते हैं। हम इन भावनाओं को सीधी से खारिज करने की कोशिश करते हैं। ऐसा बिल्कुल ना करें खुद को समझाएं यह विचार आना सामान्य बात है हम सभी कभी ना कभी अपने जीवन में इन विचारों से जूझते हैं। जितनी आसानी से खुद को यह बात समझ लेंगे उतनी आसानी से इस समस्या से निपट पाएंगे।

अपने लिए छोटे छोटे गोल्स बनाएं- अस्तित्व की चिंता (Existential Anxiety) से जूझते लोगों में एक वर्ग ऐसा भी है। जिनके जीवन में कोई बड़ा लक्ष्य नहीं है या यह कह सकते हैं कि अब उन्हें कोई भी लक्ष्य इतना बड़ा नहीं लगता कि वो उसे पा ना सकें। देखने में यह दोनों ही बातें एक दूसरे की विरोधाभासी लगती हैं। लेकिन यकीन मानिए यह दोनों व्यक्ति एक ही नाव में सवार है।

एक तरफ के लोगों को लगता है कि वह अब जीवन में कुछ कर ही नहीं सकते, वहीं दूसरी तरफ के लोगों को लग सकता है कि अब उनके करने के लिए कुछ बाकी ही नहीं बचा है। ऐसे में दोनों ही तरह के लोग एक्जिस्टेंशियल एंजायटी से जूझने लगते हैं। इससे निकलने का सीधा उपाय है कि खुद को यह बताएं कि सिर्फ बड़े लक्ष्य ही लक्ष्य नहीं होते हैं। जीवन का मकसद सिर्फ बड़े लक्ष्य को पाना ही नहीं होता है। असली जीवन छोटे लक्ष्यों को पाने में, छोटी खुशियों को जीने में जाता है। 

Existential Crisis Se kaise bahar nikle

इसलिए खुद के लिए छोटे-मोटे लक्ष्य बनाते रहें। जैसे कोई नई भाषा सीखना, कुछ नया पेंट करना, कुछ नया लिखना, कोई नई जगह जाना, कुछ नए लोगों से बात करना, कुछ नया ट्राई करना। ऐसे छोटे-छोटे लक्ष्य खुद को देंगे तो आप अंदर से बहुत ही ज्यादा खुशी महसूस करेंगे और जीवन को एक नए नजरिए से देख पाएंगे।

ध्यान, शांति और व्यायाम बढ़ाए आपकी शान- ध्यान और व्यायाम को अपने रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बना लें। जैसे-जैसे ध्यान आपके रूटीन का हिस्सा बनेगा वैसे-वैसे आप इन विचारों, इन सवालों से ध्यान हटाते जाएंगे और यूनिवर्स के नजदीक हो जाएंगे। इन सवालों से उपजने वाले डर से भी ख़ुद ही निपट पाएंगे।

प्रोफेशनल मदद लेने से घबराएं नहीं-अस्तित्व की चिंता (Existential Crisis) कई बार उसे लेवल पर पहुंच जाती है जहां पर हमें किसी प्रोफेशनल की मदद लेनी चाहिए। तो यदि आप हफ्तों या महीनों से ढंग की नींद नहीं ले पा रहे हैं, खाना खाने में दिक्कत आ रही है, आप लगातार तनावग्रस्त रहते हैं तो फिर किसी प्रोफेशनल की मदद लेने से बिल्कुल भी ना घबराएं। याद रखें शारीरिक स्वास्थ्य की तरह मानसिक स्वास्थ भी जीवन का अभिन्न अंग है।

FAQ- What is an existential crisis

अस्तित्व का संकट क्या है?

अस्तित्व का संकट उसे स्थिति को कहते हैं जिसमें व्यक्ति को यह महसूस होता है कि उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं है ना ही उसके जीवन का कोई उद्देश्य है। 

अस्तित्व के संकट की चिंता से बचने की क्या उपाय हैं?

अस्तित्व के संकट की चिंता से बचने के लिए छोटे-छोटे लक्ष्य बनाना नियमित ध्यान व व्यायाम करना खुद को स्वीकार करना जैसे काम करने चाहिए।

Anu Pal

मैं अनु पाल, Wisdom Hindi ब्लॉग की फाउंडर हूँ। मैं इंदौर मध्य प्रदेश की रहने वाली हूं। मैं एक ब्लॉगर और Content Writer के साथ-साथ Copy Editor हूं और 5 साल से यह काम कर रही हूं। पढ़ने में मेरी विशेष रूचि है और मैं धर्म, आध्यात्म, Manifestation आदि विषयों पर आर्टिकल्स लिखती हूं।

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