केदारनाथ का इतिहास: Kedarnath History in Hindi

नमस्कार दोस्तो! 12 ज्योतिर्लिंगों की सीरीज में आज बात होगी केदारनाथ धाम की जिसमें हम जानेंगे Kedarnath History in Hindi. उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंगों में पांचवा है। हिमालय क्षेत्र में होने के कारण यह मंदिर सर्दी के मौसम में में 6 महीने के लिए बंद रहता है और गर्मी के मौसम में भक्तों के लिए खोला जाता है। सदियों पुराना यह मंदिर अपने समृद्धशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध है और इसकी स्थापना की कथा भी बहुत रोचक है।

Kedarnath History in Hindi

आज के इस आर्टिकल में हम इस कथा को तो जानेंगे ही साथ ही इस मंदिर से जुड़े सभी रहस्यों, इसकी वास्तु कला को भी जानेंगे। तो चलिए जानते हैं Kedarnath History in Hindi.

Table of Contents

केदारनाथ धाम| Kedarnath Dham

केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है, जो हिमालय श्रृंखला का एक हिस्सा है। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों का हिस्सा होने के साथ-साथ पंचकेदार और चार धाम यात्रा में भी शामिल है। यह मन्दिर 3562 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों के पोते जन्मेजय ने करवाया था और इस मंदिर का पुनर्निर्माण आदि शंकराचार्य ने किया था। क्योंकि यहां का मौसम स्थिर नहीं रहता इसलिए यह मंदिर अप्रैल से नवंबर के बीच दर्शन के लिए खुला रहता है। 

यह मंदिर तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है जिनमें से एक ओर 22000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी ओर 21600 फीट ऊंची कर्ज कुंड पहाड़ी और तीसरी और 22700 फीट ऊंचा भरत कुंड है।

केदारनाथ धाम की मुख्य जानकारी

मंदिर का नाम केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham)
प्रमुख देवता भगवान शिव 
स्थापना 8वीं शताब्दी में 
मन्दिर का निर्माण पांडवों के पोते जन्मेजय 
मन्दिर का पुनर्निर्माण आदि शंकराचार्य
प्रमुख त्योहार महा शिवरात्रि और सावन

केदारनाथ का इतिहास| Kedarnath History in Hindi

अगर हम Kedarnath History in Hindi की बात करें तो पौराणिक दृष्टि से यह मंदिर बहुत ही ऐतिहासिक है। इसकी स्थापना को लेकर बहुत से बातें जनमानस में प्रचलित हैं। कहा जाता है कि यह मंदिर आठवीं शताब्दी में बना था। 

केदारनाथ मंदिर किसने बनवाया| Who Built Kedarnath Temple

केदारनाथ मंदिर की स्थापना को लेकर कई विरोधाभास प्रचलित हैं। कई जगह कहा गया है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों के पोते जन्मेजय ने करवाया था। एक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में करवाया था। वहीं ग्वालियर से प्राप्त हुई राजा भोज की स्तुति के अनुसार यह मंदिर राजा भोज ने बनवाया था जिनका शासन काल 1076-1099 इस्वी तक था। राहुल सांकृत्यायन के मुताबिक यह मंदिर 12वीं-13वीं शताब्दी में बनाया गया था। इसकी स्थापना को लेकर कुछ पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं।    

मंदिर की स्थापना और पौराणिक कथाएं 

शिव पुराण की कोटि रूद्र संहिता के अनुसार आदिकाल में भगवान विष्णु ने नर-नारायण के रूप में बद्री वन में अवतार लिया था, जहां व रोज पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करके भगवान शिव की पूजा किया करते थे। उनकी भक्ति से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और वरदान मांगने को कहा। 

तब नर-नारायण ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि वे इस क्षेत्र में निवास करें ताकि अन्य भक्त भी उनके दर्शन का लाभ लेकर सुखी हो सकें। तब भगवान शिव ने उनकी बात मानकर कहा कि वे इस क्षेत्र में रहेंगे और यह क्षेत्र केदार क्षेत्र के नाम से जाना जाएगा। 

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केदारनाथ मंदिर की विशेषताएँ

यदि हम केदारनाथ धाम की वास्तु कला की बात करें तो इसकी वास्तुकला और निर्माण शैली बहुत ही सुंदर है। यह मंदिर कत्यूरी शैली में बना हुआ है। लगभग 1000 वर्षों पुराना माना गया है। 

केदारनाथ धाम मंदिर 6 फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बनाया गया है। इसके गर्भ ग्रह और मंडप के चारों ओर परिक्रमा पथ बना हुआ है। और बाहरी प्रांगण में नंदी बैल की मूर्ति स्थापित की गई है।

मंदिर तीन भागों में बंटा हुआ है गर्भ ग्रह, मध्य भाग और सभा मंडप। गर्भ ग्रह के बीचो-बीच श्री केदारेश्वर स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विराजित है। इसके अगले भाग में गणेश जी की आकृति और मां पार्वती यंत्र विद्यमान है।

इस ज्योतिर्लिंग पर प्राकृतिक रूप से निर्मित यज्ञोपवीत और पीछे प्राकृतिक रूप से निर्मित स्फटिक माला है। इसमें नव लिंग आकार विग्रह विद्यमान है इसलिए इसे नवलिंग केदार भी कहते हैं। 

ज्योतिर्लिंग के चारों ओर चार बड़े खम्भे बने हैं जिन्हें चार वेदों का प्रतीक माना जाता है। इन खम्भों के पीछे से ही भगवान की परिक्रमा की जाती है। मंदिर की छत कमल के आकार की बनी हुई है। ज्योतिर्लिंग की पश्चिम तरफ एक अखंड दीप है जो हजारों साल से जल रहा है।

मंदिर के गर्भ ग्रह की दीवारों पर सुंदर फूल और आकृतियां बनी हुई है।

केदारनाथ की कहानी |kedarnath story in hindi

केदारनाथ धाम से जुड़ी प्रमुख कहानी पौराणिक ग्रंथों में और जनमानस में प्रचलित हैं। जिनमें से सबसे प्रमुख है पंच केदार के निर्माण की कथा जिसका संबंध पांडवों से है। आईए जानते हैं यह कहानी 

भगवान शिव और पांडवों की कथा 

महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद पांडव अपने भ्रातृहत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे लेकिन भगवान शिव उन लोगों से क्रोधित थे।

पांडव भगवान शिव के आशीर्वाद के लिए पहले काशी गए लेकिन उन्हें वहां वे नहीं मिले। फिर पांडव भगवान शिव की तलाश में हिमालय पर पहुंचे। तब भगवान शिव वहां से अंतर्ध्यान होकर केदारनाथ चले गए। 

पांडवों ने भी ज़िद ठान रखी थी इसलिए वे भी भगवान शिव के पीछे-पीछे केदारनाथ पहुंच गए। तब भगवान शिव ने बैल का रूप धारण किया और वह अन्य पशुओं के बीच जाकर मिल गए।

पांडवों ने भगवान शिव को इस रूप में भी पहचान लिया तब भीम ने अपना आकार बढ़ाया और अपने दोनों पैरों को दोनों पहाड़ों पर रखकर फैला दिया। अन्य सभी गाय बैल तो उनके पैरों के नीचे से निकल गए मगर भगवान शिव यह करने के लिए तैयार नहीं हुए।

तब भीम पूरी ताकत से बैल रूपी भगवान शिव को पकड़ने के लिए झपटे, लेकिन भगवान भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे। तभी भीम ने उनकी पीठ का तिकोना हिस्सा पकड़ उनको रोक लिया। 

भगवान शिव पांडवों के दृढ़ संकल्प को देखकर बहुत खुश हुए और तुरंत पांडवों को दर्शन देकर उन्हें उनके पापों से मुक्त किया। तभी से भगवान शिव बैल की पीठ की तिकोनी आकृति के रूप में केदारनाथ में पूजे जाते हैं।

कहा जाता है कि जब भगवान शिव बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तब उनके धड़ से ऊपर वाला हिस्सा काठमांडू में प्रकट हुआ, जहां पर आज पशुपतिनाथ महादेव का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। 

उनकी भुजाएं तुंगनाथ में, मुंह रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और उनकी जटाएँ कल्पेश्वर में प्रकट हुई। इसीलिए केदारनाथ सहित इन चारों स्थान को मिलाकर पंच केदार कहा जाता है।

केदारनाथ मंदिर का रहस्य

केदारनाथ धाम मंदिर ऐतिहासिक तो है साथी यह अपने साथ कई रहस्य को समेटे हुए हैं। ऐसे ही कुछ रोचक रहस्य हम आपके साथ साझा करने जा रहे हैं।-

केदारनाथ में स्वर्ग से हवा आती है

केदारनाथ धाम के बारे में आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि यहां पर स्वर्ग से हवा आती है। वास्तव में इसके पीछे कोई चमत्कार या रहस्य नहीं है बल्कि ऐसी अनुभूति केदारनाथ धाम की भौगोलिक स्थिति के कारण होती है। 

केदारनाथ हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच में बसा हुआ है और उसके आसपास बहुत ही घने जंगल हैं, इन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहां चलने वाली हवा बहुत शुद्ध और ऑक्सीजन से भरी होती है जो यात्रियों को सुखद अनुभूति देती है। इसीलिए यात्रियों को महसूस होता है कि केदारनाथ धाम में आने वाली हवा स्वर्ग से आ रही है।

16 जून 2013 केदारनाथ की घटना

सन 2013 में केदारनाथ धाम में एक बहुत ही भयंकर त्रासदी हुई। 16-17 जून 2013 को चौड़बाड़ी झील में बादल फटे जिससे भारी मात्रा में मलबा और बड़े पत्थर बहकर आए। पानी के तेज बहाव के कारण मंदाकिनी नदी ने अपना रास्ता बदल दिया और केदारनाथ धाम क्षेत्र में बाढ़ आ गई। इस बाढ़ में लगभग 5000 के आसपास लोगों की मृत्यु हुई। आज भी कई लोग लापता हैं। इस घटना में 4500 गाँव प्रभावित हुए।

इस बाढ़ में बचाव कार्यों के लिए थलसेना, नौसेना, वायुसेना को 50 से अधिक विमान और 10000 सैनिकों का उपयोग करना पड़ा और उसने 110000 यात्रियों को बचाया। इतनी भीषण बाढ़ के बावजूद भी मंदिर के ढांचे में कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा।

400 साल बर्फ के नीचे दबा था केदारनाथ धाम

देहरादून की वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ जियोलॉजी ने केदारनाथ धाम के पत्थरों पर Lignomatic Dating Experiment किया जो कि पत्थरों की उम्र पता लगाने के लिए किया जाता है। इस परीक्षण के दौरान पता लगा कि केदारनाथ धाम मंदिर 14वीं से 17वीं शताब्दी के बीच बर्फ के नीचे दब गया था।

उसके बाद भी इसके ढांचे में कोई भी परिवर्तन नहीं आया। 400 सालों के इस हिस्से को हिम युग के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है इसके बाद मंदिर का पुनरुद्धार शंकराचार्य ने करवाया था।

केदारनाथ की यात्रा| Kedarnath yatra

केदारनाथ यात्रा का भारतीय जनमानस में बहुत महत्व है। हर साल लाखों तीर्थ यात्री इस पवित्र स्थल पर दर्शन के लिए जाते हैं। यह मंदिर हिंदू धर्म की पवित्र चार धाम यात्रा में शामिल है जो हर साल आयोजित की जाती है। इस यात्रा में केदारनाथ के अलावा बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री भी शामिल है। आइये हम जानते हैं केदारनाथ धाम यात्रा के बारे में-

केदारनाथ यात्रा का समय (kedarnath visit time)

केदारनाथ धाम मंदिर बहुत ही दुर्गम स्थल पर है और अधिकतर बर्फ से ढँका ही रहता है इसलिए इस मंदिर की यात्रा के लिए प्रशासन ने एक निश्चित समय तय किया है। हर साल यह मंदिर अप्रैल को दर्शन के लिए खुलता है और नवंबर मैं दिवाली 2 दिन बाद भाई दूज को बंद कर दिया जाता है। मंदिर के खुलने के दिन की घोषणा हिंदू पंचांग के अनुसार अक्षय तृतीया या महाशिवरात्रि को की जाती है।

केदारनाथ धाम के अन्य दर्शनीय स्थान (Places To Visit Kedarnath)

केदारनाथ धाम के प्रमुख मंदिर के अलावा भी यहां आस-पास में बहुत से ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जिनका आनंद आप उठा सकते हैं लिए आपको कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थलों की जानकारी देते हैं-

शंकराचार्य की समाधि

हिंदू धर्म के महान विचारक आदि शंकराचार्य जिन्होंने आठवीं शताब्दी में केदारनाथ धाम का पुनर्निर्माण करवाया था, उनका समाधि स्थल केदारनाथ में स्थित है जो यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है।

भैरव मंदिर

केदारनाथ मंदिर के दक्षिणी हिस्से में एक प्रसिद्ध भैरवनाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर में स्थित भगवान है भैरव को क्षेत्रपाल के नाम से भी जाना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है क्षेत्र की रक्षा करने वाला। यह मंदिर पहाड़ की ऊंची चोटी पर स्थित है जहां से केदारनाथ घाटी के मनोरम दृश्य दिखाई पड़ते हैं।

गौरीकुंड

केदारनाथ धाम के रास्ते में गौरीकुंड नाम का एक तीर्थ स्थान पड़ता है जो केदारनाथ से 14 किलोमीटर की दूरी पर है। गौरीकुंड में गौरी देवी नामक एक मंदिर है जो की माता पार्वती को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने गौरीकुंड की यात्रा की और भगवान शिव से अपना विवाह करने के लिए यहां पर एक लंबे समय तक ध्यान किया।

सोनप्रयाग

केदारनाथ धाम से 18 किलोमीटर और गौरीकुंड से 5 किलोमीटर की दूरी पर सोन प्रयाग स्थित है जो कि 1829 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस स्थान के बारे में यह मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसी स्थान पर बासुकी नदी और मंदाकिनी नदी का संगम है।

How To Visit Kedarnath Temple

अगर आप केदारनाथ धाम की यात्रा करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले देहरादून ऋषिकेश या हरिद्वार पहुंचना होगा। इन शहरों तक पहुंचने के लिए आपको अपने शहर से रेल, बस या विमान सेवा का उपयोग करना होगा। इन शहरों में पहुंचकर आप बस या टैक्सी के माध्यम से केदारनाथ धाम पहुंच सकते हैं।

केदारनाथ धाम के गौरीकुंड पर पहुंचने के बाद मंदिर तक की दूरी 16 किलोमीटर रह जाती है। जिसे आप पैदल या पालकी से या फिर घोड़े के माध्यम से तय कर सकते हैं।

Kedarnath Darshan Timing

केदारनाथ धाम मंदिर सवेरे 6:00 बजे खुलता है मंदिर में दोपहर 3:00 से 5:00 बजे खास पूजा होती है, उसके बाद मंदिर बंद कर दिया जाता है। शाम को 7:30 से 8:30 के बीच ज्योतिर्लिंग का श्रृंगार करके आरती की जाती है और उसके बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है।

केदारनाथ धाम में महा अभिषेक पूजा, लघु रुद्राभिषेक, पांडव पूजा गणेश पूजा भैरव पूजा षोडशोपचार, शिव सहस्त्रनाम आदि पूजाएं की जाती हैं।

निष्कर्ष|Conclusion

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने  Kedarnath History in Hindi को जाना। साथ ही मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक कहानी, इसके पुनर्निर्माण की कथा,  केदारनाथ धाम के अन्य दर्शनीय स्थलों और सबसे महत्वपूर्ण केदारनाथ में 2013 में हुई वीभस्त त्रासदी के बारे में विस्तार से जाना।

केदारनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में बहुत ही आध्यात्मिक महत्व है यह योग व आस्था का बहुत ही पवित्र केंद्र है। सदियों से यह मंदिर है भारतीय आध्यात्मिक चेतना को प्रभावित करता रहा है। हर व्यक्ति को अपने जीवन काल में एक बार इस मंदिर का दर्शन अवश्य करना चाहिए।

Kedarnath History in Hindi: यहाँ देखें वीडियो

Kedarnath Temple History in Hindi- FAQ

केदारनाथ मंदिर कितने साल पुराना है?

केदारनाथ मंदिर लगभग 1200 साल पुराना है।

केदारनाथ शिवलिंग के पीछे क्या कहानी है?

केदारनाथ मंदिर में हर समय अंधेरा रहता है और एक दीपक की मदद से भगवान शिव के पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए जाते हैं।

पांडवों ने केदारनाथ क्यों बनवाया?

पांडव महाभारत युद्ध के बाद अपने भाइयों की हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे इसलिए भगवान श्री से आशीर्वाद लेने पहुंचे जो कि उन्हें इस स्थान पर मिले और आशीर्वाद प्राप्ति के बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण किया।

केदारनाथ लिंग अलग क्यों है?

केदारनाथ शिवलिंग स्वयंभू है और वह त्रिकोण ने रूप में है जिसके ऊपर एक इंसान का सर उकेरा गया है।

केदारनाथ 6 महीने तक बंद क्यों रहता है?

केदारनाथ में ठंडी के मौसम में भारी बर्फबारी होती है इसीलिए यह मंदिर 6 महीने तक बंद रहता है।

केदारनाथ मंदिर में घी क्यों लगाया जाता है?

हिंदू धर्म में घी को एक पवित्र पदार्थ माना गया है जिसका उपयोग पूजा तथा कर्मकांड में किया जाता है इसलिए केदारनाथ मंदिर में भी भगवान को श्रद्धा स्वरूप घी लगाया जाता है।

केदारनाथ का पुराना नाम क्या है?

केदारनाथ का पुराना नाम केदार खंड है।

केदारनाथ में शिव के शरीर का कौन सा अंग है?

केदारनाथ में भगवान शिव ने पांडवों को बेल के रूप में दर्शन दिए थे और जब वे अंतर ध्यान हुए थे तब बैल रूपी शिव की पीठ का हिस्सा यहां अवतरित हुआ था इसलिए केदारनाथ में बैल रूपी भगवान शिव की पीठ की पूजा की जाती है।

क्या हम केदारनाथ शिवलिंग को छू सकते हैं?

हां केदारनाथ मंदिर में भक्तों को दोपहर 3:00 के पहले पवित्र शिवलिंग को छूने की आज्ञा है।

केदारनाथ की चढ़ाई में कितने घंटे लगते हैं?

केदारनाथ की चढ़ाई पूरी करने में काम से कम 4 से 5 दिन लगते हैं।

 

Anu Pal

मैं अनु पाल, Wisdom Hindi ब्लॉग की फाउंडर हूँ। मैं इंदौर मध्य प्रदेश की रहने वाली हूं। मैं एक ब्लॉगर और Content Writer के साथ-साथ Copy Editor हूं और 5 साल से यह काम कर रही हूं। पढ़ने में मेरी विशेष रूचि है और मैं धर्म, आध्यात्म, Manifestation आदि विषयों पर आर्टिकल्स लिखती हूं।

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