दोस्तो! 12 ज्योतिर्लिंगों का हमारा ये सफ़र आ पहुँचा है मध्यप्रदेश में जहाँ Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple स्थित है। 12 ज्योतिर्लिंग में यह तीसरा ज्योतिर्लिंग है जो कहलाता है महाकाल यानी समय का देवता। करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र Mahakaleshwar Ujjain Mandir अपनी पौराणिक कथाओं, मान्यताओं और रहस्य के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहां होने वाली Ujjain Mahakal Bhasm Aarti.
अपने आज के इस आर्टिकल में हम Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple के बारे में विस्तार से जानेंगे और समझेंगे कि क्यों है यह मंदिर इतना खास तो हमारे इस आर्टिकल को आखिर तक पढ़ना ना भूलें।
महाकालेश्वर उज्जैन मंदिर | Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित महाकाल मंदिर या उज्जैन कालेश्वर मन्दिर (Ujjain Kaleshwar Mandir) 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा है। यहाँ भगवान शिव महाकाल के रूप में विराजमान हैं। यह मंदिर शिप्रा नदी के किनारे स्थित है जिसे मोक्षदायिनी भी कहा जाता है। इस नदी पर हर 12 साल में सिंहस्थ मेला (कुंभ) आयोजित किया जाता है। भगवान शिव यहाँ स्वयंभू शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं। माना जाता है कि यह ज्योतिर्लिंग दूसरी सदी से ही अस्तित्व में है। यहाँ विराजित ज्योतिर्लिंग ऐसा एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो कि दक्षिण मुखी है।
Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple में भगवान शिव अपने उग्र रूप में विराजित हैं और समय के स्वामी कहलाते हैं। भगवान महाकाल को धरती का राजा माना जाता है। इस जगह दो शक्तिपीठ भी हैं। महाकालेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण अलग-अलग सदी में अलग-अलग राजाओं द्वारा किया गया व आक्रमणकारियों के समय इसे कई राजाओं द्वारा संरक्षण भी प्राप्त हुआ। इस मंदिर के समीप ही प्रसिद्ध मंगलनाथ मंदिर स्थित है। साथ ही यहाँ सांदीपनि आश्रम भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि श्री कृष्ण की शिक्षा इसी आश्रम में हुई थी।
महाकालेश्वर मंदिर की मुख्य जानकारी
मंदिर का नाम | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple) |
प्रमुख देवता | भगवान शिव |
स्थापना | दूसरी शताब्दी में |
मन्दिर का निर्माण | महाराजा चंद्रसेन व बालक श्रीखर |
प्रमुख त्योहार | महा शिवरात्रि और सावन |
आरती का समय | हर दिन सुबह |
महाकाल मंदिर का इतिहास | Mahakaleshwar Temple History in Hindi
यदि हम Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple के इतिहास की बात करें तो यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण के पालक नंद बाबा की आठवीं पीढ़ी के समय का है। शिव पुराण में इस तथ्य का उल्लेख मिलता है। हम आपको बता दें कि महाकाल मंदिर का उल्लेख महाकवि कालिदास, पदमगुप्त, राजशेखर, बाणभट्ट, हर्षवर्धन, तुलसीदास और रविंद्र नाथ टैगोर जैसे महान कवियों की रचनाओं में भी मिलता है। इस मंदिर में दूसरी शताब्दी के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे यह साबित होता है कि यह मंदिर द्वापर युग के समय से अस्तित्व में है।
12वीं शताब्दी में इल्तुतमिश ने Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple पर आक्रमण किया और इसे ध्वस्त कर दिया। उसने मंदिर के शिवलिंग को उखाड़ कर कोटि तीर्थ कुंड में फिंकवा दिया। उसके कई वर्षों बाद मुगल शासक औरंगजेब ने उस ध्वस्त मंदिर के टुकड़ों से मस्जिद बनवा दी। हालाँकि महाकाल के भक्त फिर भी उसी जगह पर भगवान के आराधना करते रहे।
लेकिन लगभग 500 वर्ष बाद मराठा शासक राणोजी राव सिंधिया ने मुगलों को परास्त करके जब उज्जैन में अपना शासन शुरू किया तब उन्होंने फिर से Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple का जीर्णोद्धार करवाया और 500 वर्ष से कोटि तीर्थ कुंड में पड़े हुए शिवलिंग को बाहर निकलवा कर उसकी पुनर्स्थापना की। राणोजी राव सिंधिया ने ही 500 वर्षों से बंद पड़े सिंहस्थ मेले का पुनः आयोजन शुरू करवाया।
महाकाल मंदिर की वास्तु कला | Ujjain Mandir Mahakal Architecture
अगर हम Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple की वास्तुकला की बात करें तो यह मंदिर मराठा और चालुक्य शैली में स्थापित है। मन्दिर पाँच स्तरों में विभाजित है। मंदिर का प्रांगण विशाल दीवारों से घिरा हुआ है। गर्भ ग्रह भूमिगत है। गर्भ ग्रह के पश्चिम, उत्तर व पूर्व दिशा में गणेश पार्वती और कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित की गई है। दक्षिण दिशा में ही शिव के प्रमुख गण नंदी की प्रतिमा स्थापित है। दूसरी मंजिल पर ओंकारेश्वर लिंग स्थापित है।
मंदिर की तीसरी मंजिल पर नाग चंदेश्वर की प्रतिमा स्थापित है जिस पर भगवान शिव और माता पार्वती दस फन वाले साँप पर बैठे हुए दर्शाए गए हैं। यह मन्दिर केवल नाग पंचमी के दिन ही दर्शन हेतु खोला जाता है। भूमिगत गर्भ ग्रह के रास्ते को रोशन करने के लिए पीतल के दीपक स्थापित किए गए हैं।
मंदिर का शीर्ष मूर्ति कला का उत्कृष्ट उदाहरण है जिसपर सुंदर नक्काशियां की गई हैं। Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple के शिखर के ऊपर से कर्क रेखा गुजरती है। इस मंदिर की प्रांगण में एक विशाल कुंड है जो कोटि तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
महाकाल मंदिर की कहानी| mahakaleshwar jyotirlinga story in hindi
Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple की उत्पत्ति से जुड़ी एक कहानी शिव पुराण में वर्णित है। इस कहानी को सूत जी द्वारा शिवपुराण की कोटि रूद्र संहिता के 16 में अध्याय में बताया गया है। जो कि काफी प्रसिद्ध है यह कहानी इस प्रकार है –
सालों पहले अवंती नगरी में वेदप्रिय नाम के एक बहुत ही बड़े शिव भक्त ब्राह्मण निवास करते थे। वे रोज ही शिवलिंग का निर्माण करते और हवन की अग्नि प्रज्वलित कर शास्त्र विधि के द्वारा भगवान शिव की पूजा किया करते थे। भगवान शिव की कृपा से वेद प्रिय जी के चार पुत्र देवप्रिय, प्रियमेधा, संस्कृत और सुवृत्त पैदा हुए। वे चारों पुत्र भी अपने पिता की तरह है भगवान शिव की भक्ति में लीन रहने लगे।
एक दिन रत्न माल पर्वत पर रहने वाले दूषण नामक राक्षस ने सभी धर्म कर्म का पालन करने वालों पर आक्रमण कर दिया। उस राक्षस को ब्रह्मा जी से अदृश्य होने का वरदान प्राप्त था। उस राक्षस ने उज्जैन नगरी पर भी आक्रमण किया और वहाँ बसने वाले सभी धर्म जनों को नुकसान पहुंचाने लगा जिससे वहाँ की जनता में हाहाकार मच गया। मगर फिर भी वेद प्रिय ब्राह्मण और उनके चारों पुत्र उसे डरे नहीं। उन लोगों ने जनता से कहा कि भगवान शिव पर भरोसा रखें।
इतना कह कर चारों भाई फिर से भगवान शिव की आराधना करने लगे। दूषण अपनी राक्षसी सेना लेकर उन चारों भाइयों के पास पहुंचा और अपने सैनिकों को कहा कि इन चारों को बंदी बनाकर मार डालो। उसके ऐसा कहने पर भी वे चारों भाई भयभीत नहीं हुए तब उसने अपनी सेना को चारों को मार डालने का आदेश दिया। असुर के सैनिकों ने जैसे ही उन्हें शिव भक्तों को मारने के लिए हथियार उठाए उसी क्षण उन ब्राह्मण भाइयों द्वारा पूजित शिवलिंग से भगवान शिव अपना भयंकर रूप धारण किए हुए प्रकट हुए।
भगवान शिव ने राक्षस से कहा, “दुष्ट तुझ जैसे हत्यारों के लिए ही मैं महाकाल प्रकट हुआ हूँ। उसके बाद महाकाल रूपी भगवान शिव ने अपनी हुंकार से उन सभी राक्षसों को भस्म कर दिया। राक्षस दूषण का वध करने के बाद भगवान शिव ने उन चारों भाइयों से कहा कि मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं, तुम मुझसे वरदान मांगो। चारों भाइयों ने भगवान शिव से कहा कि भक्तों की रक्षा के लिए आप इसी जगह विराजमान हो जाइए। भगवान शिव उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए इसी जगह महाकाल के रूप में स्थापित हो गए।
Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple की स्थापना की कथा
शिव पुराण के अनुसार उज्जैनी में राजा चंद्रसेन का शासन था जो कि एक बहुत बड़े शिव भक्त थे। राजा की मित्रता भगवान शिव के एक गण मणिभद्र से थी। एक दिन मणिभद्र ने राजा को एक अमूल्य चिंतामणि उपहार में दी। इस मणि को धारण करके राजा के यश और कीर्ति का चारों ओर प्रसार होने लगा। जब दूसरे राज्य के राजाओं को इस बात का पता लगा तो उनके मन में भी उसे मणि को पाने की इच्छा जागी और वे उस मणि को पाने के लिए चंद्रसेन के राज्य पर आक्रमण करने की योजना बनाने लगे।
तब राजा चंद्रसेन ने भगवान महाकाल का आह्वान करते हुए उनकी आराधना शुरू की। तभी वहाँ पर एक विधवा गोपी अपने 5 साल के बेटे श्रीखर के साथ आई। उस बालक ने जब राजा को तपस्या करते देखा तो उसके मन में भी भगवान की तपस्या करने की इच्छा जागी और वह भी शिवलिंग के सामने हाथ जोड़कर ध्यान करने लगा। वह बालक शिव के ध्यान में इतना लीन हो गया कि उसे अपनी मां की आवाज भी सुनाई नहीं दे रही थी।
उसकी मां उसे बार-बार पुकार रही थी मगर उसने अपनी मां की आवाज को अनसुना कर दिया जिससे उसकी मां क्रोधित हुई और उसने पूजा की सामग्री को उठाकर ठीक दिया और बच्चे को पीटने लगी। बालक अपनी मां के इस व्यवहार से बहुत दुखी हुआ।
तभी वहाँ पर एक चमत्कार घटित हुआ और शिवलिंग के आसपास एक सुंदर मंदिर निर्मित हो गया। यह देखकर राजा चंद्रसेन आश्चर्य चकित हो गए जब उनके दुश्मनों को इस बात का पता लगे तो वे भी राजा चंद्र सेन पर हमले का विचार त्याग कर भगवान महाकाल के अनुयाई हो गए। इस तरह महाकाल ज्योतिर्लिंग मंदिर की स्थापना हुई। कहा जाता है कि इन्हीं बालक श्रीखर की आठवीं पीढ़ी नन्द बाबा थे जिनके घर भगवान कृष्ण का पालन पोषण हुआ।
महाकाल मंदिर का रहस्य | Ujjain Mandir Mahakal Secrets
Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple आध्यात्मिक आस्था का केंद्र तो है ही साथ ही यह मंदिर अपने अनूठे रहस्यों के कारण भी लोगों के लिए उत्सुकता का विषय बना रहता है। मंदिर तो ऐसे कई रहस्य और विशेषताएं हैं जो भक्तों के साथ साथ दुनिया भर के रहस्य प्रेमियों को अपनी ओर खींचते हैं। आइये इस मंदिर जुड़े कुछ रहस्यों को विस्तार से समझते हैं –
तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र
उज्जैन स्थित Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple 12 ज्योतिर्लिंग में एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिण मुखी है। ऐसी मान्यता है कि तंत्र साधना के लिए ज्योतिर्लिंग का दक्षिण मुखी होना अति आवश्यक है। Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र है। पौराणिक ग्रन्थों में इस ज्योतिर्लिंग के विषय में कहा गया है कि महाकाल मंदिर (Mahakal Temple) के दर्शन करने से अकाल मृत्यु का डर ख़त्म हो जाता है।
शमशान की राख से की जाती है Ujjain Mahakal Bhasm Aarti
भस्म आरती Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple की एक बहुत ही प्रसिद्ध परंपरा है। इसमें हर सुबह शमशान की ताजी राख से भगवान महाकाल का अभिषेक किया जाता है। यह क्षण बहुत ही अलौकिक होता है जिसे देखने के लिए भक्तगण दूर-दूर से आते हैं। हम आपको बता दें कि जब भगवान शिव ने उज्जैनी के शिव भक्तों को दूषण राक्षस के अत्याचारों से बचाने के लिए उसका वध किया था। तब उसकी भस्म से भगवान शिव का श्रृंगार किया गया था तभी से यह भस्म आरती की परंपरा आज तक जारी है।
हम आपको बता दें कि भस्म आरती में महिलाओं को भाग लेने की अनुमति नहीं है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि भस्म आरती एक तांत्रिक क्रिया है जिसमें तपस्वी या योगी हिंदू कब्रिस्तान में से मानव शव की राख लाते हैं और शिवलिंग पर मलते हैं। इस दौरान वह राख भक्त जनों पर भी गिरती है। हिंदू धर्म में महिलाओं को शक्ति स्वरुप माना गया है जो कि सृजन करती है वह नए जीवन को जन्म देती है इसलिए उन्हें शमशान में जाने की भी अनुमति नहीं है।
यही कारण है कि उन्हें महाकाल की भस्म आरती को देखने का उसमें भाग लेने की अनुमति नहीं है क्योंकि शमशान की राख उन पर पड़ने से गलत तरीके से उत्तेजित हो सकती है। आपको बता दें कि mahakaleshwar bhasma aarti time प्रतिदिन सुबह 4:00 बजे का होता है जिसके लिए ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा भी दी गई है। जिसका शुल्क 250 प्रति व्यक्ति है।
धरती की नाभि स्थल
खगोल वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि मध्य प्रदेश का उज्जैन शहर धरती और आकाश की मध्य में स्थित है, अतः यह धरती का केंद्र है। हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रन्थों में भी उज्जैन को पृथ्वी की नाभि की संज्ञा दी गई है और भगवान महाकालेश्वर को इसका देवता बताया गया है। इतना ही नहीं उज्जैन शहर समय की गणना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उज्जैन शहर भारत के मानचित्र में उज्जैन 23.9° उत्तरी अक्षांश और 74.75° पूर्वी देशांतर पर स्थित है। उज्जैन शहर से कर्क रेखा होकर गुजरती है और यहीं पर कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक दूसरे को काटती हैं। इन्हीं के आधार पर काल की गणना और पंचांग आदि का निर्माण किया जाता है। काल की गणना के कारण ही भगवान शिव को यहाँ महाकाल के नाम से पुकारा जाता है।
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उज्जैन में रात में नहीं ठहरता कोई नेता
उज्जैन के बारे में यह प्रसिद्ध है कि यहाँ कोई भी नेता या वीआईपी रात को नहीं ठहर सकता। यदि कोई ऐसा करता है तो उसके साथ कोई ना कोई अनहोनी अवश्य घटित होती है। इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि भगवान शिव ही यहाँ के राजा हैं और उनके रहते कोई और राजा की तरह शहर में नहीं रह सकता। उज्जैन शहर में भगवान महाकाल को ही गॉड ऑफ ऑनर दिया जाता है।
उज्जैन शहर की इस अनोखी मान्यता के ऐतिहासिक प्रमाण भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि उज्जैन शहर में जो भी राजा बना वह केवल एक दिन ही राज कर पाता था, अगले दिन उसकी मृत्यु हो जाती थी। इस बात को ध्यान में रखते हुए राजा विक्रमादित्य ने यह परंपरा शुरू की कि उज्जैन में जो भी राजा होगा वह भगवान महाकाल के अधीन होकर उनके प्रतिनिधि की तरह काम करेगा।
समय में भी ऐसे कई प्रमाण रहे हैं जब किसी भी नेता ने उज्जैन शहर में रात बिताई है उसके हाथों से सत्ता की बागडोर छिन गई है। देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई उज्जैन में ठहरे थे और उसके अगले ही दिन उनकी सरकार गिर गई थी। तरह कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा ने भी उज्जैन में विश्राम किया था और उसके 20 दिन बाद उनकी कुर्सी छिन गई थी। हम आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के जितने भी मुख्यमंत्री हुए हैं वह कभी भी उज्जैन शहर में नहीं ठहरे हैं।
उज्जैन महाकाल मंदिर के दर्शन | Mahakaleshwar Temple Ujjain Timings
अगर हम Mahakaleshwar Temple Timings की बात करें तो यह मंदिर रोज सुबह 4:00 बजे से 7:00 तक खुलता है इस दौरान मंदिर में विश्व प्रसिद्ध Bhasm Aarti की जाती है जिसे देखने के लिए लोग देश-दुनिया के कई कोने से यहां आते हैं।
इसके बाद भक्त लोग Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple में सुबह 10:30 से दोपहर 1:00 तक शाम 4:00 बजे से 7:00 तक और रात में 8:00 से 10:00 तक उज्जैन महाकाल मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।
Dharamshala Near Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple
यदि आप Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple के दर्शन करने की योजना बना रहे हैं तो हम आपको मन्दिर के पास की धर्मशाला के बारे में बताते हैं जहाँ आप ठहर सकते हैं।
- महाकालेश्वर अतिथि ग्रह उज्जैन, त्रिवेणी संग्रहालय के पास
- श्री सूर्य नारायण व्यास, धर्मशाला, रामघाट
- महाकाल धर्मशाला उज्जैन, जय सिंह पुरा
- श्री जाट धर्मशाला उज्जैन मंगलनाथ मार्ग
- अंजना समाज धर्मशाला रामघाट उज्जैन
निष्कर्ष| Conclusion
तो दोस्तों आज हमने बात की Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple के बारे में और जाना कि इस मंदिर का इतिहास क्या है इससे जुड़ी मान्यताएं और जानी mahakaleshwar jyotirlinga story in hindi. साथ ही हमने Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple से जुड़े रहस्यों को भी जाना।
आगे आने वाले आर्टिकल्स में हम बाकी के 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में भी चर्चा करेंगे अतः हमसे जुड़े रहें।
Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple: यहाँ देखें वीडियो
Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple-FAQ
महाकाल मंदिर कितना पुराना है?
महाकाल मंदिर दूसरी शताब्दी से अस्तित्व में है।
महाकाल मंदिर की स्थापना किसने की थी?
महाकाल मंदिर की स्थापना महाराज चंद्रसेन ने की थी।
महाकाल मंदिर की विशेषता क्या है?
Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple की विशेषता है यहाँ होने वाली भस्म आरती।
धरती की नाभि किसे कहा जाता है?
उज्जैन शहर को धरती की नाभि कहा जाता है।
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव ने किस राक्षस का वध किया था?
पुराण के अनुसार भगवान शिव ने दूषण नामक राक्षस का वध किया था।