नमस्कार दोस्तों! हम फिर लेकर आये हैं 12 ज्योतिर्लिंगों की सीरीज का अगला भाग जिसमें आज बात होगी shri omkareshwar jyotirlinga की। मध्य प्रदेश के खंडवा में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर नर्मदा नदी के मांधाता दीप पर स्थित है जो कि ॐ के आकार का है।
इस Omkareshwar Temple Khandwa में एक ऐसी परंपरा प्रचलित रही है इसके बारे में सुनकर मैं हैरान रह गई। उस परंपरा के बारे में भी हम आज के इस आर्टिकल में चर्चा करेंगे और साथ में हम जानेंगे shri omkareshwar jyotirlinga के इतिहास इसकी वास्तुकला और इससे जुड़ी रोचक कहानी के बारे में तो हमारे इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ें।
ओंकारेश्वर मन्दिर खंडवा| shri omkareshwar jyotirlinga
मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के बीच बसे मांधाता द्वीप को कहीं-कहीं शिवपुरी द्वीप कहा जाता है। इस द्वीप की खासियत यह है कि यह हिंदू धर्म के पौराणिक चिन्ह ॐ के आकार में बना हुआ है। ‘ॐ’ वर्ण में जिस स्थान पर चंद्रबिंदु है उसी जगह पर ओंकार पर्वत पर shri omkareshwar jyotirlinga स्थित है।
इस जगह भगवान शिव के मुख्यतः दो मंदिर स्थित हैं जो Shri Omkareshwar Jyotirlinga और Mamleshwar Jyotirlinga के नाम से जाने जाते हैं। mamleshwar jyotirlinga मंदिर नर्मदा के दक्षिणी तट पर स्थित है। इन दोनों ही ज्योतिर्लिंगों को एक माना गया है। ओंकारेश्वर का निर्माण नर्मदा नदी से स्वत ही हुआ है। नर्मदा नदी को पौराणिक ग्रन्थों में बहुत पवित्र नदी माना गया है।
ॐ शब्द का प्रयोग सबसे पहले सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था। इसी ॐ शब्द का भौतिक विग्रह ही ओंकारेश्वर क्षेत्र है। इस जगह 68 तीर्थ स्थान हैं, ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव यहां 33 कोटि देवताओं के साथ निवास करते हैं।
Shri Omkareshwar Jyotirlinga की मुख्य जानकारी
मंदिर का नाम | ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Shri Omkareshwar Jyotirlinga Temple) |
प्रमुख देवता | भगवान शिव |
स्थापना | 1063 इस्वी में |
मन्दिर का निर्माण | महाराजा उदयादित्य |
प्रमुख त्योहार | महा शिवरात्रि और सावन |
आरती का समय | हर दिन सुबह, दोपहर , रात |
ओंकारेश्वर मंदिर का इतिहास| Omkareshwar Temple History in Hindi
अगर हम shri omkareshwar jyotirlinga के इतिहास की बात करें तो इसके संबंध में ऐतिहासिक तथ्य ज्यादा उपलब्ध नहीं है। हालांकि इस मंदिर का निर्माण काल लगभग 5500 वर्ष पुराना बताया जाता है। पुराणों में भी इसकी उपस्थिति की चर्चा मिलती है। ज्ञात तथ्यों के अनुसार ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण राजा उदयादित्य ने सन 1063 में करवाया था जिसके लिए उन्होंने चार बड़े पत्थर स्थापित करवाए थे। पत्थरों पर संस्कृत भाषा में स्रोत खुदे हुए थे।
उसके बाद सन 1195 में राजा भरत सिंह चौहान ने इस जगह पर पुनर्निर्माण शुरू किया। इस जगह पर भील, परमार, सिंधिया, और होलकर राजवंशों ने बहुत लंबा शासन किया। होलकर महारानी अहिल्याबाई द्वारा यहां पर मिट्टी के 18000 शिवलिंग बनाकर मां नर्मदा को समर्पित करने का तथ्य काफी विख्यात है। 1824 में यहां ब्रिटिश सरकार का आधिपत्य स्थापित हो गया।
ओंकारेश्वर मंदिर की वास्तुकला| shri omkareshwar jyotirlinga Architecture in Hindi
इस स्थान पर नर्मदा नदी ॐ के आकार में बहती है। ओंकारेश्वर मंदिर में नाव या पुल के द्वारा पहुँचा जा सकता है। घाट के पास कोटि तीर्थ है जहां पर श्रद्धालु स्नान करके मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं।
अगर हम shri omkareshwar jyotirlinga की वास्तुकला की बात करें तो यह मंदिर पांच तलों में बना हुआ है। इसमें से पहले तल पर ओंकारेश्वर लिंग स्थित है जो कि चारों ओर से जलमग्न है। यह मंदिर शिखर के बीचो-बीच न होकर थोड़ा दूर हटकर स्थित है। इसके समीप ही पार्वती जी की मूर्ति स्थापित है। दूसरी मंजिल पर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव मंदिर स्थित है, वहीं चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और पांचवी मंज़िल पर ध्वजेश्वर महादेव विराजमान है।
तीसरी, चौथी व पांचवीं मंजिल के मंदिरों की छत पर अष्टभुजाकार आकृतियां बनाई गई हैं। ओंकारेश्वर मंदिर में 60 खम्भे हैं जो लगभग 15 फिट ऊँचे हैं। ओंकारेश्वर मंदिर के अहाते में पंचमुखी गणेश की मूर्ति स्थापित है। ओंकारेश्वर के संपूर्ण तीर्थ क्षेत्र में कई छोटे बड़े मंदिर स्थापित है जिनमें सीता वाटिका, मार्कंडेय शिला, 24 अवतार, मार्कंडेय सन्यास आश्रम, अन्नपूर्णा आश्रम खेड़ापति हनुमान, ओमकार मठ, गायत्री माता मंदिर, ऋण मुक्तेश्वर महादेव, सिद्धनाथ गौरी सोमनाथ, आदि हनुमान, वैष्णो देवी मंदिर इत्यादि प्रमुख है।
ओंकारेश्वर मंदिर के चारों ओर ॐ के आकार का 7 किलोमीटर लंबा एक रास्ता है जिसे परिक्रमा पथ कहते हैं। यह पथ सीमेंट का बना हुआ है। जब श्रद्धालु इस पथ की परिक्रमा करते हैं तो रास्ते में उन्हें कई सुंदर मंदिर व मनोरम दृश्य दिखाई पड़ते हैं।
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ओंकारेश्वर मंदिर खंडवा की कहानी | shri omkareshwar jyotirlinga Story
ओंकारेश्वर मंदिर की उत्पत्ति को लेकर एक बहुत ही प्रचलित कहानी है जिसके अनुसार एक बार विंध्याचल पर्वत ने मेरु पर्वत से ईर्ष्यावश स्पर्धा की और वह अपना आकार दिन पर दिन बढ़ाने लगा। इस कारण सूर्य का प्रकाश भी पृथ्वी पर पहुंचना मुश्किल हो रहा था। चारों ओर हाहाकार मचने लगा। तब सभी देवताओं ने मिलकर अगस्त ऋषि से प्रार्थना की कि वे इस समस्या का कोई उपाय निकालें और विंध्याचल पर्वत को समझाएं कि वह अपना आकार कम करें ताकि पृथ्वी पर जीवन संभव हो सके।
अगस्त्य ऋषि विंध्याचल पर्वत के गुरु थे और विंध्याचल उनका बहुत ही आदर और सम्मान करता था। देवताओं की प्रार्थना सुनकर अगस्त्य ऋषि विंध्याचल पर्वत के पास पहुंचे। अपने गुरु को देखते ही विंध्याचल ने उन्हें प्रणाम किया और उनसे पूछा कि वह उनकी किस तरह सेवा कर सकता है। तब अगस्त्य ऋषि ने विंध्याचल से कहा कि वत्स मुझे दक्षिण दिशा में जाना है लेकिन तुम्हारा आकार इतना विशाल है कि मैं उस पार नहीं जा सकता। अतः मेरा निवेदन है कि तुम अपना आकार कम कर लो।
तब विंध्याचल पर्वत ने अपने गुरु की आज्ञा मानते हुए अपना आकार कम कर लिया। अगस्त्य ऋषि ने दक्षिण दिशा की ओर जाते हुए विंध्याचल को निर्देश दिया कि जब तक मैं वापस लौट कर ना आऊं तुम इसी तरह झुके रहना। ऐसा कहकर अगस्त्य ऋषि चले गए और दोबारा वापस नहीं लौटे। विंध्याचल पर्वत इस तरह हमेशा के लिए झुका रहा। विंध्याचल की गुरु भक्ति देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उसे वरदान देने के लिए वहां उपस्थित हुए तब विंध्याचल ने भगवान शिव से अपार बुद्धि के साथ-साथ वहीं पर निवास करने का वरदान मांगा। जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया।
Mamleshwar Jyotirlinga स्थापना कथा
जब भगवान शिव ने विंध्याचल को वरदान दिया तब वहां पर कुछ ऋषि मुनि पधारे और उनके ही प्रार्थना पर भगवान शिव ने अपने शिवलिंग को दो भागों में बांट दिया जिनमें से एक ओंकारेश्वर कहलाया और दूसरा ममलेश्वर। इन दोनों ही शिवलिंग का स्थान अलग-अलग है मगर दोनों की सत्ता एक ही है।
एक अन्य कथा के अनुसार राजा मांधाता ने नर्मदा के तट पर भगवान शिव की तब तक तपस्या की जब तक कि वे स्वयं उपस्थित नहीं हो गए। भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए तो उन्होंने उनसे निवेदन किया कि वह इसी जगह पर अपना स्थान बना लें और भगवान शिव ने उनका निवेदन स्वीकार करते हुए मांधाता द्वीप पर हमेशा के लिए बस गए।
ओंकारेश्वर के कुबेर भंडारी मंदिर की कहानी
पुराणों के अनुसार शिव भक्त कुबेर में शिवलिंग की स्थापना करके भगवान शिव की घोर आराधना की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे देवताओं की संपदा का रक्षक बनाया। कुबेर के स्नान के आग्रह पर भगवान शिव ने अपनी जटा से कावेरी नदी को उत्पन्न किया। यह नदी कुबेर मंदिर के बगल से होती हुई नर्मदा नदी में जाकर मिलती है, जिससे परिक्रमा पर जाते हुए भक्तों में प्रत्यक्ष रूप से देखा है। कावेरी नदी ओमकार पर्वत के चक्कर लगाते हुए नर्मदा नदी में जाकर मिल जाती है। इस स्थान पर नर्मदा नदी की दो धाराएं बहने के कारण बीच में एक द्वीप का निर्माण हुआ जिसे मांधाता द्वीप कहा जाता है।
ओंकारेश्वर मंदिर के रहस्य | shri omkareshwar jyotirlinga Fact and secret in Hindi
भक्तों की आस्था का केंद्र ओंकारेश्वर अपने कई रहस्य के कारण भी बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर से जुड़े कई तथ्य और किंवदंतियां जनमानस में प्रचलित हैं। आइये हम जानते हैं ओंकारेश्वर मंदिर से जुड़े हुए कुछ अद्भुत व अनूठे रहस्यों में मान्यताओं के बारे में –
ओंकारेश्वर दर्शन के बिना अधूरे हैं सभी तीर्थ
शास्त्रों में shri omkareshwar jyotirlinga को लेकर एक बहुत ही सशक्त मान्यता है जिसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति भले ही देश भर के सारे तीर्थ का दर्शन कर ले मगर जब तक वह ओंकारेश्वर का दर्शन करके सभी तीर्थ से लाए हुए जल से भगवान शिव का अभिषेक नहीं करता तब तक उसके सभी तीर्थ अधूरे ही माने जाते हैं। ओंकारेश्वर तीर्थ में में नर्मदा नदी को बहुत महत्व दिया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यमुना जी में 15 दिन का स्नान और गंगा जी में 7 दिन के स्नान करने से व्यक्ति को जो फल मिलता है वही फल नर्मदा नदी के एक स्नान करने से प्राप्त होता है।
ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती खेलते हैं चौसर
shri omkareshwar jyotirlinga की शयन आरती विश्व प्रसिद्ध है यहां भगवान शिव की प्रतिदिन चार आरती की जाती है सुबह, दोपहर, शाम और रात को की जाती है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ओंकारेश्वर मंदिर में रोज शयन करने आते हैं। कहा जाता है इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती साथ में चौसर खेलते हैं। रात में यहां पर चौपड़ बिछाई जाती है और जब सवेरे मंदिर का कपाट खुलता है तो पासे बिखरे हुए मिलते हैं, जबकि इस मंदिर में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता।
ओंकारेश्वर मंदिर की विवादास्पद सद्योमुक्ति परंपरा
ओंकारेश्वर मंदिर में बहुत ही विवादास्पद प्रथा प्रचलित थी जिसे सद्योमुक्ति परंपरा के नाम से जाना जाता है। मांधाता पर्वत पर एक सीधी खड़ी पहाड़ी है। इस परंपरा के अनुसार इस जो भी व्यक्ति इस चोटी से कूद कर नर्मदा नदी में अपने प्राण विसर्जित कर देता है उसे व्यक्ति की इस ऋण मुक्ति हो जाती है।
इस परंपरा के कारण कई लोगों ने पहाड़ की छोटी से कूद कर अपनी जान दे दी थी। जब ब्रिटिश सरकार का भारत पर शासन शुरू हुआ तब सन 1824 में अंग्रेजी सरकार ने इस प्रथा पर रोक लगा दी। इस प्रथा को भृगुपतन के नाम से भी जाना जाता है।
omkareshwar mein kaun si nadi hai
ओंकारेश्वर में सबसे मुख्य नदी नर्मदा है जिसमें स्थित द्वीप पर shri omkareshwar jyotirlinga स्थित है वही यहां पर कावेरी नदी भी बहती है। वास्तव में यह स्थान नर्मदा और कावेरी नदी के संगम के रूप में प्रसिद्ध है।
ओंकारेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे | How to reach Omkareshwar Mandir Khandwa
shri omkareshwar jyotirlinga की यात्रा रेल मार्ग सड़क मार्ग और वायु मार्ग से की जा सकती है। अगर आप ट्रेन के द्वारा ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो आप या तो इंदौर या खंडवा स्टेशन तक ट्रेन से सफर कर सकते हैं। उसके बाद आप बस के द्वारा ओंकारेश्वर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। खंडवा से ओंकारेश्वर मंदिर 72 किलोमीटर दूर है वहीं इंदौर स्टेशन से यह 78 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
वहीं यदि आप प्लेन से ओंकारेश्वर मंदिर तक पहुंचाना चाहते हैं तो आपको पहले इंदौर एयरपोर्ट पहुंचना होगा क्योंकि ओंकारेश्वर का सबसे समीप का एयरपोर्ट इंदौर में ही स्थित है। इसके अलावा यदि आप सड़क मार्ग से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंचाना चाहते हैं तो आप किसी टूरिस्ट पैकेज के द्वारा या फिर अपने निजी वाहन के द्वारा ओंकारेश्वर तक का सफर कर सकते हैं।
Best Time to Visit Omkareshwar
shri omkareshwar jyotirlinga घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी के बीच का होता है क्योंकि इस समय यहाँ का तापमान 15 से 30 सेल्सियस के बीच होता है यानि न ज्यादा गर्मी होती है और न ही सर्दी। ऐसे में यहाँ के बेहतरीन टूरिस्ट प्लेसेस का आप आनन्द उठा सकते हैं।
omkareshwar temple timings
यदि हम shri omkareshwar jyotirlinga के दर्शन समय की बात करें तो यह मंदिर सुबह 5:00 से रात 9:30 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है। भक्त लोग यहां पर काल सर्प दोष जैसी विशेष पूजा करवा सकते हैं जिसके लिए प्री-बुकिंग उपलब्ध है।
omkareshwar temple Aarti timings
shri omkareshwar jyotirlinga में चार तरह की आरती की जाती हैं जो इस प्रकार हैं – मंगल आरती सुबह 5:00 बजे, रुद्राभिषेक दोपहर 12:00, संध्या आरती शाम 6:00 बजे और शयन आरती रात 9:00 बजे।
निष्कर्ष| Conclusion
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर महादेव मंदिर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाला है आप भी इसके दर्शन करके पुण्य फल प्राप्त कर सकते हैं। अगले आर्टिकल में हम 12 ज्योतिर्लिंगों की अगली कड़ी के साथ फिर उपस्थित होंगे इसी तरह के महत्वपूर्ण आर्टिकल्स पढ़ने के लिए हमसे जुड़े रहें।
FAQ
shri omkareshwar jyotirlinga कहां स्थित है?
shri omkareshwar jyotirlinga जिले के मांधाता दीप पर स्थित है।
ओंकारेश्वर मंदिर में प्रतिबंधित विवादास्पद प्रथा का नाम क्या है?
ओंकारेश्वर मंदिर में प्रतिबंधित विवादास्पद प्रथा का नाम सद्योमुक्ति परम्परा है।
ओंकारेश्वर मंदिर की प्रचलित पौराणिक मान्यता क्या है?
ओंकारेश्वर मंदिर की पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव यहां हर रात शयन करने के लिए आते हैं।
ओंकारेश्वर मंदिर में नर्मदा के अलावा और कौन सी नदी बहती है?
ओंकारेश्वर मंदिर में नर्मदा के अलावा कावेरी नदी बहती है।
mamleshwar jyotirlinga नर्मदा के किस तट पर स्थित है?
mamleshwar jyotirlinga नर्मदा के दक्षिणी तट पर स्थित है।
Shri Omkareshwar Jyotirlinga: यहाँ देखें वीडियो
Omkareshwar Temple Khandwa- FAQ
Omkareshwar Temple Khandwa कहां स्थित है?
Omkareshwar Temple Khandwa जिले के मांधाता दीप पर स्थित है।
ओंकारेश्वर मंदिर में प्रतिबंधित विवादास्पद प्रथा का नाम क्या है?
ओंकारेश्वर मंदिर में प्रतिबंधित विवादास्पद प्रथा का नाम सद्योमुक्ति परम्परा है।
ओंकारेश्वर मंदिर की प्रचलित पौराणिक मान्यता क्या है?
ओंकारेश्वर मंदिर की पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव यहां हर रात शयन करने के लिए आते हैं।
ओंकारेश्वर मंदिर में नर्मदा के अलावा और कौन सी नदी बहती है?
ओंकारेश्वर मंदिर में नर्मदा के अलावा कावेरी नदी बहती है।
Mamleshwar jyotirlinga नर्मदा के किस तट पर स्थित है?
Mamleshwar jyotirlinga नर्मदा के दक्षिणी तट पर स्थित है।