Mallikarjuna Jyotirlinga Temple – दक्षिण का कैलाश, जानिए मंदिर से जुड़ी कहानी वास्तुकला और इतिहास

Mallikarjuna Jyotirlinga Temple: आंध्र प्रदेश के नांदयाल जिले में स्थित मल्लिकार्जुन  या श्रीशैलम मंदिर भक्तों की आस्था का एक बहुत बड़ा केंद्र है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की कथा बहुत ही रोचक है। 12 ज्योतिर्लिंग की हमारी श्रृंखला में आज के इस आर्टिकल में हम Mallikarjuna Jyotirlinga Temple के विषय में बात करेंगे और जानेंगे इसकी स्थापना से जुड़ी कहानी के बारे में और साथ ही बात करेंगे इसके इतिहास, इसके स्थापत्य कला, इससे जुड़ी मान्यताओं और रहस्यों के बारे में। तो हमारे इस आर्टिकल से अंत तक जुड़े रहें।

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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग/श्रीशैलम मंदिर | Mallikarjuna Jyotirlinga Temple/SriSailam Jyotirlinga Temple

जैसा कि हमने आपको बताया Mallikarjuna  Mandir/Srisailam jyotirlinga temple 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि 12 ज्योतिर्लिंगों में यह दूसरा ज्योतिर्लिंग है। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। इस मंदिर के प्रमुख देवता शिव और पार्वती हैं इसलिए यह मंदिर शैव और शक्ति दोनों ही संप्रदायों के आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है।

शिव को यहाँ पर अर्जुन और पार्वती को मल्लिका के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर के समीप ही भ्रामरम्भा शक्ति पीठ भी स्थापित है। यह मंदिर मुख्य मंदिर से दो मिल की दूरी पर स्थापित है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यहाँ देवी सती का ऊपरी होंठ गिरा था। इसके समीप ही कृष्णा नदी बहती है।

मल्लिकार्जुन मंदिर की मुख्य जानकारी

मंदिर का नाम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर (Mallikarjuna Jyotirlinga Temple)
प्रमुख देवता भगवान शिव और माता पार्वती
स्थापना 2000 साल पहले 
मन्दिर के अन्य निर्माण विजयनगर साम्राज्य के राजाओं द्वारा 
प्रमुख त्योहार दशहरा और महा शिवरात्रि 
खुलने का समय प्रातः 04:30 बजे से दोपहर 03:30 बजे तक 

शाम 04:30 बजे से रात 10 बजे तक

आरती का समय सवेरे 06:30 बजे, शाम 05:30 बजे

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास | Mallikarjuna Temple History in Hindi

यदि हम Mallikarjuna Jyotirlinga Temple के संक्षिप्त इतिहास की बात करें तो इस मंदिर के निर्माण से लेकर इसके रखरखाव तक कई शासकों ने अपना-अपना योगदान दिया है। सातवाहन वंश के शासकों ने अपने शिलालेखों में इस मंदिर के बारे में वर्णन किया है जिसके माध्यम से इस मंदिर के वास्तविक निर्माण काल का पता लगता है। 

इसके अलावा रेड्डी, पल्लव, इक्ष्वाकु आदि राजवंशों ने भी इस मंदिर के निर्माण में अपना सहयोग दिया है। विजयनगर साम्राज्य के संस्थापकों ने मंदिर के आसपास के कई निर्माण करवाए और मराठा शासक महाराज शिवाजी ने भी Mallikarjuna Jyotirlinga Temple के पास एक बड़ी सी धर्मशाला का निर्माण करवाया।

हम आपको बता दें कि मुगल शासन के दौरान इस मंदिर में पूजा पर रोक लगा दी गई थी। मगर आजादी के बाद इस मंदिर में फिर से पूजा अनुष्ठान किए जाने लगे।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की वास्तुकला| Mallikarjuna Jyotirlinga Temple Architecture in Hindi

Mallikarjuna Jyotirlinga Temple की वास्तुकला की बात करें तो इसका सबसे महत्वपूर्ण भाग है मुख मंडप। यह मंडप सोने का बना है और विजयनगर काल में बनाया गया था। Mallikarjuna Mandir 2 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है इसमें चार प्रमुख द्वार हैं जो गोपुरम के नाम से जाने जाते हैं। मुख मंडप और गर्भ ग्रह की और जाने वाले हॉल में बेहतरीन नक्काशी वाले स्तंभ हैं। 

Mallikarjuna Jyotirlinga Temple के आसपास कई प्रमुख मंदिर हैं जिनमें से एक है नंदीकेश्वर मंदिर। ऐसा कहा जाता है कि जिस मंदिर में मल्लिकार्जुन स्थित हैं वह सातवीं शताब्दी का सबसे पुराना मंदिर है। इस मंदिर के आसपास 1000 लिंग है जिन्हें भगवान राम ने बनवाया था और इनके अलावा पांच अन्य लिंग भी हैं जिन्हें पांडवों ने बनवाया था।

500 साल पहले विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय द्वारा मल्लिकार्जुन मंदिर में एक मुख मंडल का निर्माण करवाया गया जिसके शिखर को सोने से बनाया गया है। 300 साल पहले शिवाजी महाराज मल्लिकार्जुन मंदिर के दर्शन के लिए पहुँचे थे और उसके पश्चात उन्होंने यहाँ पर एक भव्य धर्मशाला का निर्माण करवाया था।

Mallikarjuna Jyotirlinga Temple के रास्ते में शिखरेश्वरम मंदिर स्थित है। इसके बारे में मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से व्यक्ति जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। मन्दिर के समीप बहने वाली कृष्णा नदी को पातालगंगा कहा जाता है जिसके जल से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। नदी तक पहुँचाने के लिए 852 सीढ़ियों से चलकर जाना पड़ता है।

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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़े रहस्य, तथ्य और मान्यताएं| Fact of Mallikarjuna Jyotirlinga Temple 

अन्य प्राचीन मंदिरों की तरह Mallikarjuna Jyotirlinga Temple से जुड़े कुछ रहस्य तथ्य और मान्यताएं आम लोगों में प्रचलित हैं।  चलिए हम इस मंदिर से जुड़े कुछ मान्यताओं व तथ्यों के बारे में जानते हैं।- 

यहां आदि शंकराचार्य ने रचा था शिवानंद लहरी

अद्वैतवादी संत आदि शंकराचार्य जी ने अपनी पुस्तक शिवानंद लहरी की रचना मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के समीप ही रहते हुए की है यह पुस्तक भगवान शिव पर आधारित है जिसके नाम का अर्थ है शुभ आनंद की लहरी। इस पुस्तक में 100 छंदों का संकलन है, जिसका आरंभ श्रीशैलम के मुख्य देवता मल्लिकार्जुन और भ्रमराम्बा देवी की स्तुति से किया गया है।

हम आपको बता दें कि इसी पुस्तक में आदि शंकराचार्य ने 12 ज्योतिर्लिंगों की स्तुति भी लिखी है। इस पुस्तक का अनुवाद बाली रेपल्ले लक्ष्मीकांत कवि ने सन 1916 में कर के प्रकाशित किया।

2000 साल पुराना है मल्लिकार्जुन मंदिर

स्कंद पुराण में श्रीशैल नामक अध्याय है जिसमें इस मंदिर का वर्णन मिलता है।एक प्रचलित दंतकथा के अनुसार चंद्रगुप्त नामक राजा की राजकुमारी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। पुरातत्व वेत्ताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण काल लगभग 2000 साल पुराना है। 

सातवाहन राजवंश के प्राप्त शिलालेखों के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर का अस्तित्व दूसरी शताब्दी से है। इस मंदिर के ज़्यादातर निर्माण विजयनगर साम्राज्य की संस्थापक हरियाणा प्रथम के काल में हुए थे। पातालगंगा की सीढ़ियों का निर्माण रेड्डी साम्राज्य के शासनकाल में हुआ।

Mallikarjuna Jyotirlinga Temple घने वन क्षेत्र में स्थित है, इसीलिए यहाँ पर पैदल यात्रा की अनुमति नहीं है। यहाँ पर पैदल यात्रा केवल शिवरात्रि के दिन ही की जा सकती है। कुछ पौराणिक ग्रन्थों में यह कहा गया है कि श्री शैल पर्वत शिखर के दर्शन करने पर श्रद्धालुओं के सारे काम सिद्ध होते हैं और उन्हें जन्म मरण के चक्करों से मुक्ति मिल जाती है।

यह भी पढ़े: सोमनाथ मंदिर का रहस्य- जानिए 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे पुराने सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का रहस्य

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कहानी| Mallikarjuna Jyotirlinga Temple Story 

जैसा कि हमने आपको इस आर्टिकल की शुरुआत में बताया था कि Mallikarjuna Jyotirlinga Temple की स्थापना से जुड़ी एक बहुत ही रोचक दंत कथा प्रचलित है। आइये जानते हैं उस रोचक कहानी के बारे में जो इस प्रकार है –

एक बार की बात है भगवान शिव के दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश अपने विवाह को लेकर काफी उत्सुक थे और आपस में बहस करने लगे। कार्तिकेय का मत था कि वह बड़े हैं और इस कारण उनका विवाह पहला होना चाहिए लेकिन गणेश की ज़िद थी कि पहले उनका विवाह होना चाहिए।

दोनों अपनी बात को लेकर भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुँचे। तब उनके माता-पिता ने उन्हें कहा कि तुम दोनों में से जो भी पृथ्वी के सात चक्कर लगाकर पहले लौट आएगा उसका विवाह सबसे पहले होगा।

माता-पिता की बात सुनते ही कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी के चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े। परंतु गणेश वही खड़े होकर विचार करने लगे। तभी उन्हें एक उपाय सूझा और उन्होंने अपने माता-पिता को कैलाश पर्वत के बीचो-बीच एक आसन लगाकर उस पर बैठा दिया।

उसके बाद उन्होंने अपने माता-पिता के चारों ओर सात परिक्रमा लगाई। इस प्रकार उन्होंने शर्त पूरी कर ली। उनकी इस चतुराई से उनके माता-पिता बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उनका विवाह विश्वरूप प्रजापति की दोनों पुत्री रिद्धि और सिद्धि से करवा दिया। 

जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा लगाकर वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि गणेश का विवाह हो चुका है और उन्हें अपनी पत्नी सिद्धि से क्षेम और रिद्धि से लाभ नामक पुत्र भी प्राप्त हो चुका है। यह देखकर कार्तिकेय को ईर्ष्या हुई और वे अपने माता-पिता के चरण छूकर कैलाश पर्वत छोड़कर क्रौंच पर्वत पर रहने के लिए चले गए। 

माता पार्वती अपने पुत्र के वियोग में व्याकुल हो गईं और भगवान शिव के साथ क्रंच पर्वत पर पहुँच गईं। कार्तिकेय को जैसे ही अपने माता-पिता के क्रौंच पर्वत पर पहुँचने की सूचना मिली वे वहाँ से तीन योजन (36 किलोमीटर) दूर चले गए।

कार्तिकेय के वहाँ से चले जाने पर भगवान शिव उसी क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए और तभी से उस ज्योतिर्लिंग को मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। माता पार्वती को यहाँ मल्लिका कहा जाता है और भगवान शिव यहाँ अर्जुन के रूप में विराजमान है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग किस तरह पहुँचे | how to reach Mallikarjuna Jyotirlinga Temple

यदि आप Mallikarjuna Jyotirlinga Temple की यात्रा करना चाहते हैं तो आप सड़क मार्ग, रेल मार्ग या वायु मार्ग का रास्ता चुनकर इस मंदिर तक पहुँच सकते हैं। इन सभी तरीकों से इस मंदिर तक पहुँचने का विवरण हम आपको आगे बता रहे हैं।

सड़क मार्ग से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कैसे पहुँचें

यदि आप सड़क मार्ग के द्वारा मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की यात्रा करना चाहते हैं तो आपको नांदयाल जिले तक पहुँचना होगा। हम आपको बता दें कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग पूरी तरह से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है और इसके आसपास के सभी क्षेत्रों से मंदिर तक पहुँचाने के लिए बस या टैक्सी सेवा उपलब्ध है।

रेल मार्ग से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कैसे पहुँचें

यदि आप रेल मार्ग से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर की यात्रा करने का मन बना रहे हैं तो हम आपको बता दें कि इस मंदिर की सबसे समीप का रेलवे स्टेशन मर्कापुर रोड है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर से इस रेलवे स्टेशन की दूरी 62 किलोमीटर के आसपास है। आप इस रेलवे स्टेशन पर पहुँचकर वहाँ से बस या टैक्सी के माध्यम से सरलता से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।

हवाई मार्ग से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कैसे पहुँचे

Mallikarjuna Jyotirlinga Temple से 137 किलोमीटर की दूरी पर हैदराबाद का राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मौजूद है। यदि आप हवाई माध्यम से मल्लिकार्जुन मंदिर की यात्रा करना चाहते हैं तो आपको अपने शहर से इस हवाई अड्डे तक की यात्रा करनी होगी उसके बाद आप बस या टैक्सी के माध्यम से सरलता से मल्लिकार्जुन मंदिर तक पहुँच सकते हैं।

श्रीशैलम स्पर्श दर्शन| srisailam sparsha darshan timings

Mallikarjuna Jyotirlinga Temple के दर्शन समय की बात करें तो यह मंदिर सुबह 6:00 से दोपहर 3:30 बजे तक और शाम को 6:00 बजे से रात 10:00 बजे तक खुला रहता है जिसमें आप  निशुल्क प्रवेश कर सकते हैं। हालांकि यहां स्पर्श दर्शन यानी Mallikarjun Shivling को छूकर भी दर्शन करने की आज्ञा प्रशासन की तरफ से है जिसके लिए भक्तों को ₹500 का शुल्क देना होता है।

निष्कर्ष| Conclusion

दोस्तों आज के अपने इस आर्टिकल में हमने Mallikarjuna Jyotirlinga Temple के बारे में जाना साथ में हमने इस मंदिर के इतिहास इससे जुड़ी कहानी और रहस्यों के बारे में चर्चा की। इसी तरह की मंदिर ऑन और ऐतिहासिक इमारत के बारे में हम महत्वपूर्ण जानकारियां लाते रहेंगे आप हमसे यूं ही जुड़े रहे

FAQ

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का अन्य नाम क्या है

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का अन्य नाम श्रीशैलम मन्दिर है।

मल्लिकार्जुन मंदिर में भगवान शिव और पार्वती के रूप में पूजे जाते हैं

मल्लिकार्जुन मंदिर में भगवान शिव और पार्वती मल्लिका और अर्जुन के रूप में पूजे जाते हैं

पातालगंगा में पहुँचने के लिए कितनी सीढ़ियाँ हैं।

पातालगंगा में पहुंचने के लिए 852 सीढ़ियां है

मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास कितना पुराना है

मल्लिकार्जुन मंदिर का इतिहास दो शताब्दी पुराना है

मल्लिकार्जुन मंदिर के मुख मंडप का निर्माण किसने करवाया था

विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर ने मल्लिकार्जुन मंदिर के मुख मंडप का निर्माण करवाया था

Anu Pal

मैं अनु पाल, Wisdom Hindi ब्लॉग की फाउंडर हूँ। मैं इंदौर मध्य प्रदेश की रहने वाली हूं। मैं एक ब्लॉगर और Content Writer के साथ-साथ Copy Editor हूं और 5 साल से यह काम कर रही हूं। पढ़ने में मेरी विशेष रूचि है और मैं धर्म, आध्यात्म, Manifestation आदि विषयों पर आर्टिकल्स लिखती हूं।

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