
Rath Yatra 2025: भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा की विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा भारत की संस्कृति, आध्यात्मिकता और सामाजिक एकता का प्रतीक है। इस धार्मिक अनुष्ठान का सबसे आकर्षक पहलू है तीन विशाल रथ जिसमें बैठकर तीनों देवता अपने भक्तों के बीच नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।
तीन रथ केवल रथ नहीं है बल्कि इनका अपना एक गहरा आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थ है जो त्रिदेव और त्रिगुण सिद्धांत से ही जुड़ा है। हमारा यह आर्टिकल रथ यात्रा (Rath Yatra 2025) के तीनों रथों के त्रिगुण सिद्धांत से संबंध पर आधारित है। साथ ही इसमें हम इन रथों के निर्माण की परंपरा, इसमें प्रयोग होने वाली लकड़ी इत्यादि के बारे में भी विस्तार से चर्चा करेंगे।
तीनों रथों का आध्यात्मिक रहस्य
जगन्नाथ रथ यात्रा (Rath Yatra 2025) में तीन रथों का प्रयोग केवल एक प्रथा ही नहीं बल्कि हिंदू दर्शन व आध्यात्मिकता का प्रतीक है। ये रथ भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा के लिए बनाए जाते हैं और प्रत्येक रथ की अपनी पहचान, रंग, प्रतीक और आकार होता है। पुराणों के अनुसार यह यात्रा तब शुरू हुई जब सुभद्रा ने पुरी नगर के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। भगवान जगन्नाथ और बलभद्र में अपनी बहन की यह इच्छा पूरी करने के लिए रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण किया और गुंडिचा मंदिर जो उनकी मौसी का घर माना जाता है, वहां कुछ दिन ठहरे।
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तीनों रथों का आध्यात्मिक महत्व हिंदू दर्शन के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ-साथ त्रिगुण सिद्धांत सत्व, रज और तम से जुड़ा है। यह सिद्धांत भारतीय दर्शन का आधार है जो प्रकृति और मानव जीवन के तीन मूलभूत गुणों को दर्शाता है। सत्व गुण शुद्धता, ज्ञान और करुणा का प्रतीक है। रजो गुण गति, कर्म और उत्साह का प्रतीक है, जबकि तमोगुण अज्ञान, स्थिरता और निष्क्रियता को दर्शाता है। रथ यात्रा में तीन रथों के माध्यम से इन गुणों को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाते हैं-

सुभद्रा का रथ दर्पदलन सत्त्व गुण का प्रतीक
रथ यात्रा (Rath Yatra 2025) में सुभद्रा का रथ दर्पदलन या देव दलन कहलाता है जो कि सत्व गुण को दर्शाता है। सत्व गुण में करुणा, शुद्धता और अध्यात्म का समावेश होता है। सुभद्रा भगवान कृष्ण की बहन और अर्जुन की पत्नी है जो अपने सौम्य और करुणामई स्वरूप के लिए जानी जाती हैं।
सुभद्रा का रथ लाल और काले रंग का बना होता है जिस पर कमल का प्रतीक अंकित होता है। कमल शुद्धता और आध्यात्मिक उन्नति को दर्शाता है। यह रथ यात्रा के बीच में चलता है जो संतुलन और सामंजस्य का प्रतीक है। सुभद्रा के रथ में 12 पहिए होते हैं और यह 42.32 फीट ऊंचा होता है जो सत्व गुण की स्थिरता और शांति को दर्शाता है।
बलभद्र का रथ तालध्वज रजो गुण का प्रतीक
भगवान बलभद्र का रथ तालध्वज कहलाता है। यह रजोगुण का प्रतीक है रजोगुण कर्म, गति और सृजनात्मक ऊर्जा से संबंधित है। बलभद्र भगवान कृष्ण के बड़े भाई हैं जो शेषनाग के अवतार माने गए हैं। शक्ति और संरक्षण के प्रतीक बलभद्र का रथ नीले और हरे रंग का होता है जो जीवन और ऊर्जा को दर्शाता है। इस रथ में 14 पहिए हैं और यह 45 फीट ऊंचा होता है जो रजोगुण की गतिशीलता और शक्ति दर्शाता है। तालध्वज रथ यात्रा में सबसे आगे चलता है जो जीवन में कर्म और नेतृत्व का महत्व का प्रतीक है।
जगन्नाथ का रथ नंदीघोष तम गुण का प्रतीक
भगवान जगन्नाथ का रथ नन्दी घोष या गरुड़ध्वज कहलाता है यह तमोगुण का प्रतीक है। वैसे तो तमोगुण स्थिरता, अज्ञान और निष्क्रियता से जुड़ा है लेकिन भगवान जगन्नाथ के संदर्भ में यह गुण उनकी विश्व व्यापी और समावेशी स्वरूप को दर्शाता है। भगवान जगन्नाथ जो भगवान विष्णु के अवतार हैं सभी प्राणियों के पालनहार हैं और बिना किसी भेदभाव के सभी को दर्शन देते हैं।
भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग का होता है जो उत्साह और आध्यात्मिक जागृति दर्शाता है यह रथ 16 पहियों वाला है और 45 फीट की ऊंचा होता है। नंदी घोष रथ यात्रा (Rath Yatra 2025) में सबसे पीछे चलता है जो यह बात बतलाता है कि सभी गुणों का अंतिम लक्ष्य भगवान की शरणस्थली है।

त्रिगुण सिद्धांत और आध्यात्मिक अर्थ
हिंदू दर्शन में त्रिगुण सिद्धांत यह कहता है प्रकृति और मानव जीवन तीन गुणों-सत, रज और तम के संतुलन से संचालित होता है। रथ यात्रा (Rath Yatra 2025) के तीन रथ इन्हीं तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं और मानव के जीवन में इनके महत्व और संतुलन को रेखांकित करते हैं। सुभद्रा का रथ ज्ञान और करुणा (सत्व) की ओर ले जाता है। बलभद्र का रथ कर्म और गति (रज) की प्रेरणा देता है जबकि जगन्नाथ का रथ सभी को एकता और भक्ति (तम) के सूत्र में बाँधता है।
रथ यात्रा (Rath Yatra 2025) आध्यात्मिक रूप से मानव के जीवन की यात्रा का प्रतीक है जिसमें भक्त इन तीनों गुणों का संतुलन बनाकर भगवान तक पहुंचता है। सुभद्रा का रथ बीच में चलता है जो यह बताता है कि सत्व गुण रज और तम के बीच संतुलन बनाता है। यह यात्रा भक्तों को यह संदेश देती है कि जीवन में कर्म (रज) और विश्राम (तम) के साथ-साथ ज्ञान और करुणा (सत्त्व) का संतुलन आवश्यक है।
इसके अलावा रथ यात्रा यह भी दर्शाती है कि भगवान स्वयं अपने भक्तों के पास आते हैं। आमतौर पर मंदिरों में भक्त भगवान की दर्शन के लिए जाते हैं लेकिन रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा स्वयं नगर भ्रमण कर भक्तों को दर्शन देते हैं। यह उनके करुणामयी स्वरूप को दर्शाता है जो तम गुण के माध्यम से सभी प्राणियों को एक सूत्र में बांधता है।
रथों के निर्माण की परंपरा
जगन्नाथ यात्रा (Rath Yatra 2025) के रथों का निर्माण एक परंपरागत और पवित्र प्रक्रिया है जो अक्षय तृतीया के दिन शुरू होती है। इन रथों को बनाने के लिए नीम की लकड़ी जिसे दारू कहा जाता है, का प्रयोग होता है क्योंकि नीम को हिंदू धर्म में पवित्र और शुद्ध माना जाता है। यह लकड़ी औषधि गुणों से युक्त और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है।
रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार की कील, काँटे या धातु का उपयोग नहीं होता, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार आध्यात्मिक कार्यों में धातु का उपयोग अशुभ माना जाता है। लकड़ी के टुकड़ों को रस्सियों और पारंपरिक तकनीकों से जोड़ा जाता है। हर रथ के निर्माण में सैकड़ो लकड़ी के टुकड़े उपयोग में लाये जाते हैं। उनकी संख्या क्रमशः-
- नंदीघोष (जगन्नाथ का रथ)- 832 लकड़ी के टुकड़े, 16 पहिए, 45 फीट ऊँचाई।
- तालध्वज (बलभद्र का रथ)- 763 लकड़ी के टुकड़े, 14 पहिए, 45 फीट ऊँचाई।
- दर्पदलन (सुभद्रा का रथ)- 593 लकड़ी के टुकड़े, 12 पहिए, 42.32 फीट ऊँचाई।

इन रथों को पुरी के कुशल कारीगर बनाते हैं जिन्हें विश्वकर्मा सेवक या रूपकार सेवक कहा जाता है। यह कारीगर कई पीढियों से इस पवित्र काम को कर रहे हैं। रथ निर्माण में दो महीने से अधिक समय लगता है और इस दौरान कारीगर पूरी निष्ठा और भक्ति के साथ काम करते हैं। रथों पर विभिन्न रंगों, फूलों, पक्षियों और संरक्षक देवताओं की आकृति बनाई जाती है जो उन्हें आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी भव्य बनाता है।
यात्रा के बाद रथों की लकड़ी का निस्तारण
रथ यात्रा (Rath Yatra 2025) समाप्त होने के बाद रथों की लकड़ी का निस्तारण भी पवित्र प्रक्रिया का हिस्सा है। इन रथों के कुछ हिस्सों की नीलामी की जाती हैं और कुछ लकड़ी का प्रयोग मंदिर में प्रसाद बनाने और अन्य धार्मिक कामों में किया जाता है। यह परंपरा दर्शाती है कि रथ यात्रा का हर पहलू आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है और इसमें कोई भी चीज व्यर्थ नहीं होती।
निष्कर्ष
इस प्रकार इस आर्टिकल में हमने जाना कि रथ यात्रा के तीन रथ धार्मिक उत्सव का हिस्सा तो हैं ही साथ ही में हिंदू धर्म के तीन गुणों के सिद्धांत और आध्यात्मिकता के गहरे प्रतीक भी हैं। जो यह संदेश देते हैं कि जीवन में सत्व, रज और तम का संतुलन बनाकर भक्त भगवान की शरण में पहुंच सकता है।
FAQ- Rath Yatra 2025
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के तीनों रथ किस चीज के प्रतीक हैं?
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के तीनों रथ मानव जीवन और प्रकृति के तीन गुणों सत, रज व तम गुण के प्रतीक हैं।
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