
Tulsi Vivah ki Katha: तुलसी विवाह की तिथि नजदीक आ रही है। 2 नवंबर 2025 को तुलसी विवाह किया जाने वाला है। हालांकि तुलसी विवाह एकादशी अथवा द्वादशी दोनों ही तिथियों पर पूरा किया जाता है परंतु एकादशी तिथि पर विष्णु भगवान योग निद्रा से जाते हैं और उसी के बाद विवाह संस्कार आरंभ होते हैं। इसीलिए द्वादशी तिथि पर तुलसी विवाह किया जाता है वर्ष 2025 में 2 नवंबर 2025 को प्रातः 7:31 से द्वादशी तिथि आरंभ हो रही है और इसी वजह से 8:00 बजे से लेकर 10:30 बजे और साइन कल 4:30 बजे से 7:00 बजे तक तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त बताया जा रहा है।
क्या है तुलसी विवाह की कथा(Tulsi Vivah ki Katha)
तुलसी माता का विवाह शालिग्राम से करवाया जाता है परंतु क्या आप जानते हैं कि तुलसी माता असल में शिव जी के एक अवतार की पत्नी थी। जी हां तुलसी माता का वास्तविक नाम वृंदा था वह कलंधनु जालंधर की पत्नी थी। जालंधर समुद्र के तेज से उत्पन्न हुए थे। जालंधर को भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न एक शक्तिशाली असुर माना जाता है।
जालंधर के शरीर में समृद्ध समुद्र का तेज था इसीलिए उसे कोई भी देवता छू नहीं पाते थे। उन्हें शिव जी का अवतार माना जाता है क्योंकि वे शिव के क्रोध से उत्पन्न हुए थे। जालंधर की पत्नी वृंदा अटल पतिव्रता और तप शक्ति से परिपूर्ण स्त्री थी। वृंदा को वरदान मिला था कि जब तक वह पतिव्रता रहेगी जालंधर को कोई भी नुकसान नहीं पहुंच पाएगा।
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मान्यता है कि जब जालंधर देवताओं पर अत्याचार करने लगे तब भगवान शिव स्वयं उनसे युद्ध करने के लिए उतरे, परंतु असफल रहे क्योंकि वृंदा का पतिव्रता बल जालंधर की रक्षा कर रहा था। इसीलिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी और भगवान विष्णु ने कूटनीति अपना कर वृंदा की परीक्षा ली इसके पीछे की कहानी इस प्रकार है।

जब जालंधर को कोई देवता परास्त नहीं कर पा रहा था तब सभी देवताओं ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की। विष्णु भगवान ने जालंधर का रूप धरा और वृंदा के सामने प्रकट हो गए। वृंदा ने विष्णु भगवान को जालंधर समझ कर उनकी सेवा की जिसकी वजह से वृद्धा का पतिव्रता व्रत भंग हो गया और इससे जालंधर की शक्ति समाप्त हो गई। जालंधर की शक्ति समाप्त होते ही भगवान शिव ने जालंधर का वध कर दिया। जब वृंदा को यह पता चला तो विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया।
तब से भगवान विष्णु शालिग्राम पत्थर के रूप में अवतरित हुए और वृंदा ने खुद को भस्म कर दिया। जहां वृंदा ने शरीर का त्याग किया वहीं तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ और भगवान विष्णु ने वृंदा को वचन दिया कि तुम्हारे चरित्र पर कभी कोई दाग नहीं उठा पाएगा और तुम्हारा विवाह मेरे शालिग्राम रूप से करवाया जाएगा। तब से अब तक तुलसी का विवाह शालिग्राम से करवाया जाता है और भगवान विष्णु की कोई पूजा तुलसी के बिना पूरी नहीं मानी जाती।
क्या है शालिग्राम
शालिग्राम एक प्रकार का विशेष पत्थर होता है जो नेपाल की काली गंडकी नदी में पाया जाता है। इसे भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है जिस प्रकार नर्मदा नदी में मिलने वाले प्रत्येक कंकर को नर्मदेश्वर कहा जाता है वहीं गण्डकी नदी में मिलने वाले प्रत्येक काले पत्थर को शालिग्राम माना जाता है। शालिग्राम में चक्र और शंकर जैसी आकृतियां बनी होती है। इसीलिए कहा जाता है कि शालिग्राम में स्वयं भगवान विष्णु वास करते हैं और पत्थर का विवाह तुलसी माता से करवाया जाता है।

तुलसी माता विवाह का अध्यात्मिक संदेश
तुलसी मां का जन्म वृंदा के भस्म होने की वजह से हुआ। वृंदा पतिव्रता थी ऐसे में तुलसी माता को भी पतिव्रता का जीवंत स्वरूप कहा जाता है। इनकी पूजा करने से वैवाहिक जीवन सफल हो जाता है। वृंदा भक्ति और सत्य के बल का प्रमाण है। ऐसे में तुलसी माता को भी त्याग की प्रतिमूर्ति कहा जाता है। इसलिए भगवान विष्णु की कोई भी पूजा तुलसी पूजा के बिना संपन्न नहीं होती।
विष्णु के प्रसाद में तुलसी दल चढ़ाना अनिवार्य है। यहां तक की सभी देवी देवताओं को तुलसी अत्यधिक प्रिय है। हालांकि शिवजी की पूजा में तुलसी पत्र नहीं चढ़ाया जाता परंतु शिवजी का ही अवतार जालंधर वृंदा का पति था और यह पूरी कहानी हमें भक्ति और परमात्मा के संगम का सर्वोच्च संदेश देती है।
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