संतान सुख देने वाली वसु बारस महत्व पौराणिक कथा और पूजा विधि

Vasu Baras Puja Vidhi
Vasu Baras Puja Vidhi

Vasu Baras Puja Vidhi: दीपावली की आरंभिक उत्सव के रूप में एक महत्वपूर्ण त्यौहार मनाया जाता है जिस  वसु बारस अर्थात बछ बारस अथवा गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार धनतेरस से पहले आता है। द्वादशी तिथि पर मनाया जाने वाला यह त्यौहार गौ सेवा और संतान सुख का प्रतीक माना जाता है। यह दिन केवल पूजा अर्चना का नहीं परंतु सभी देवताओं के आह्वान का दिन भी होता है क्योंकि गौ माता में सभी देवी देवताओं का वास होता है और गौ माता की सच्चे मन से सेवा करने पर सभी साधकों को समृद्धि शांति और सुख की प्राप्ति होती है। 

वर्ष 2025 में वसुबारस अर्थात को गोवत्स द्वादशी 17 अक्टूबर 2025 को मनाए जाने वाली है।  इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा कर उन्हें हरा चारा खिलाने की परंपरा निभाई जाती है ताकि गौ माता और बछड़ा आशीर्वाद दे सके और आज की इस लेख में हम आपको इसी से जुड़ा संपूर्ण विवरण उपाय और विधि बताएंगे।

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क्या है वसु बारस की कथा

वसु बरस के त्यौहार के साथ पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। पुराणों के अनुसार देवताओं ने जब दानव के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था तब 14 रतन के साथ कामधेनु गाय भी प्रकट हुई थी। कामधेनु एक दिव्य गाय है जो सभी प्रकार की इच्छा पूरी करती है। कामधेनु गाय को देवताओं ने स्वर्ग में स्थान दिया। कामधेनु की पुत्री का नाम नंदिनी था। नंदिनी गाय को वशिष्ठ ऋषि ने अपने आश्रम में रखा। 

नंदिनी गाय वशिष्ठ ऋषि की सभी आवश्यकताओं को पूरी करती थी। यहां तक कि यज्ञ में उपयोग लाई जाने वाली सारी वस्तुएं भी नंदिनी गाय ही उपलब्ध कराती थी। इसीलिए गाय को धरती पर धन और सुख का स्रोत माना गया और इसी की महत्वता को सम्मान देने हेतु गोवत्स द्वादशी तिथि मनाने का विधान रखा गया। 

Vasu Baras Ki Katha
Vasu Baras Ki Katha

कहा जाता है कि एक समय एक राजा जो निसंतान थे वह भटकते हुए वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे और उन्होंने वशिष्ठ कृषि से प्रार्थना की। वशिष्ठ ऋषि ने राजा से कहा कि यदि उसे संतान सुख की प्राप्ति चाहिए तो वह नंदिनी गाय की पूजा करें और यह पूजा धनतेरस की तिथि से पहले अर्थात द्वादशी के दिन करें।

राजा ने नंदिनी गाय की पूजा द्वादशी तिथि पर की और नियम और श्रद्धा से व्रत किया और कुछ ही सालों के बाद राजा के घर पुत्र रत्न का जन्म हुआ। इसीलिए नंदिनी गाय रूपी सभी गौ माता और उनके वचनों का पूजा करने का विधान गोवत्स द्वादशी के दिन बताया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन निसंतान व्यक्ति यदि गौ माता की पूजा करते हैं तो उन्हें निश्चित रूप से संतान प्राप्ति होती है।

गोवत्स द्वादशी अर्थात वसु बरस पर पूजा करने की विधि (Vasu Baras Puja Vidhi)

गोवत्स द्वादशी के दिन पारंपरिक पूजा विधि का पालन करना अनिवार्य है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान इत्यादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद अपने पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ करें और वहां कलश दीपक इत्यादि सामग्री व्यवस्थित रूप से रखें। इसके पश्चात यदि आपके पास गाय या बछड़ा है तो उसे तैयार करें। 

यदि घर में गाय या बछड़ा नहीं है तो उनकी मूर्ति या चित्र लगाया जा सकता है। इसके पश्चात मूर्ति अथवा चित्र को शुद्ध जल से स्नान कराएं। उसके बाद मूर्ति पर हल्दी, चंदन, गुलाल इत्यादि लगाकर श्रृंगार करें, उसे फूलों की माला पहनाएँ और पैरों पर अक्षत हल्दी से पूजा करें। इसके बाद मूर्ति के आगे एक ताजा केले का पत्ता रखें। उसमें सभी प्रसाद नैवेद्य अर्पित करें। खास कर गन्ना, जौ, मूंग उड़द के अंकुर, हल्दी चावल गुड़ चावल इत्यादि।

Vasu Baras Puja Vidhi
Vasu Baras Puja Vidhi

यदि संभव हो तो साधक नजदीकी गौशाला में जाकर भी यह सारी पूजा कर सकता है और गाय को संपूर्ण नैवेद्य अर्पित कर उनके चरणों में बैठकर विष्णु स्तुति का सकता है।

गोवत्स द्वादशी पर व्रत और अनुष्ठान के नियम 

यदि साधक ने गोवत्स द्वादशी के दिन व्रत रखा है तो निम्नलिखित नियम का पालन करना अनिवार्य है। व्रत में दिनभर निराहार रहा जा सकता है अथवा एक बार भोजन किया जा सकता है। हालांकि व्रत में गेहूं दूध दही इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। शाम को 5:00 से लेकर 7:00 बजे तक के बीच में गौ माता की पूजा अर्चना करनी चाहिए।

गाय को प्रसाद अर्पित कर हाथ जोड़ देवी कृपा मांगनी चाहिए। इसके बाद बाद अगले दिन व्रत का पारण करना चाहिए। यदि जातक को इस व्रत का फल तुरंत प्राप्त करना है तो कोशिश करें कि गाय और बछड़े की पूरे दिन भर सेवा करें और व्रत का प्रभाव बढ़ाने हेतु दिनभर मन को पवित्र रखें मन में किसी प्रकार की नकारात्मकता ना लाएं।

Vasu Baras Vrat ke Niyam
Vasu Baras Vrat ke Niyam

कुल मिलाकर गोवत्स द्वादशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है जो दिवाली का प्रारंभिक उत्सव माना जाता है। गाय की पूजा से आरंभ होने वाले इस उत्सव के विधान समृद्धि संतोष संतान प्राप्ति हेतु किया जाता है। वर्ष 2025 के में यह पर्वत 17 अक्टूबर 2025 के दिन मनाया जाएगा और इस दिन पूजा का शुभ समय शाम 17:50 से 20:20 के बीच माना जा रहा है।

FAQ- Vasu Baras Puja Vidhi

क्या वसु बारस दिवाली का हिस्सा है?

वसु बरस दिवाली का आरंभ माना जाता है। इसके अगले दिन धनतेरस का त्यौहार पड़ता है। वसुबारस के दिन गाय की पूजा की जाती है क्योंकि गाय को लक्ष्मी का एक स्वरूप माना जाता है जो धन और संपदा का आशीष देती है।

Anu Pal

मैं अनु पाल, Wisdom Hindi ब्लॉग की फाउंडर हूँ। मैं इंदौर मध्य प्रदेश की रहने वाली हूं। मैं एक ब्लॉगर और Content Writer के साथ-साथ Copy Editor हूं और 5 साल से यह काम कर रही हूं। पढ़ने में मेरी विशेष रूचि है और मैं धर्म, आध्यात्म, Manifestation आदि विषयों पर आर्टिकल्स लिखती हूं।

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