
Papmochani Ekadashi Vrat: पापमोचनी एकादशी हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण व्रतों में गिनी जाती है, इसे सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। पापमोचनी एकादशी व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है, जो होली के बाद और नवरात्रि से पहले आती है।आज के इस आर्टिकल में हम पापमोचनी एकादशी व्रत (Papmochani Ekadashi Vrat) के बारे में चर्चा करते हुए इसके पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व के बारे में जानेंगे। इसके अलावा हम जानेंगे कि इस एकादशी व्रत में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
पापमोचनी एकादशी का पौराणिक महत्व
पापमोचनी एकादशी हिंदू धर्म में एक बेहद महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। यह हिंदी कैलेंडर के चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है और इसे पापों से मुक्ति दिलाने वाली तिथि कहा जाता है। इसका वर्णन भविष्योत्तर पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है, जिसमें बताया गया है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi Vrat) से जुड़ी कुछ प्रचलित पौराणिक कथाएं भी हैं जो इस प्रकार हैं-
ऋषि मेधावी और अप्सरा मंजुघोषा की कथा
भविष्योत्तर पुराण में पापमोचनी एकादशी व्रत से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है। प्राचीन काल में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी कठोर तप कर रहे थे। उनकी तपस्या इतनी प्रबल थी कि उससे देवराज इंद्र को चिंता होने लगी। इंद्र ने उनकी साधना को भंग करने के लिए स्वर्ग की सुंदर अप्सरा मंजुघोषा को भेजा।
अप्सरा ने अपनी मनमोहक सुंदरता और संगीत से ऋषि को मोहित कर लिया। उसके प्रेम में पड़कर ऋषि मेधावी अपनी तपस्या भूल गए और कई वर्षों तक उसके साथ ही समय बिताया। जब अप्सरा ने वापस जाने की इच्छा व्यक्त की, तब ऋषि को अपनी गलती का अहसास हुआ।

क्रोधित होकर उन्होंने मंजुघोषा को श्राप दिया कि वह पिशाचिनी बन जाएगी। डर के कारण मंजुघोषा ने क्षमा मांगी, तब ऋषि ने उसे पापमोचनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। इस व्रत को करने से मंजुघोषा अपने पापों से मुक्त हो गई और उसने फिर से स्वर्ग में स्थान प्राप्त किया ।
राजा हरिश्चंद्र और पापमोचनी एकादशी
एक अन्य कथा के अनुसार, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को जब अपने सत्य और धर्म की परीक्षा देनी पड़ी, तब उन्होंने इस व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से वे अपने सभी दुखों से मुक्त हुए और उन्होंने फिर से अपने राज्य तथा परिवार को प्राप्त किया।
राजा मंदाता और व्रत की महिमा
एक अन्य कथा के अनुसार, राजा मंदाता एक समय बड़े संकट में फंस गए थे। उनके राज्य में अकाल पड़ गया था, जिससे प्रजा दुखी थी। उन्होंने इस संकट से मुक्ति पाने के लिए महर्षि वशिष्ठ से मार्गदर्शन मांगा।
महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें पापमोचनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा ने विधिपूर्वक यह व्रत किया, जिससे उनके सभी संकट दूर हो गए और राज्य में फिर समृद्धि आ गई।
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पापमोचनी एकादशी व्रत का आध्यात्मिक महत्व
- पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला माना जाता है, जिससे आत्मा की शुद्धि होती है।
- इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।
- इस दिन व्रत करने वाले को सात्विक भोजन और शुद्ध विचारों का पालन करना होता है, जिससे मन और आत्मा की शुद्धि होती है। यह व्रत आत्मसंयम को बढ़ाने में मदद करता है और व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
- इस व्रत के दौरान पूजा-पाठ के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मक वातावरण बनता है, जिससे मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है।
- इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सत्य, करुणा, दया और धर्म के गुणों का विकास होता है। यह व्रत व्यक्ति को अधर्म से दूर रखकर धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
पापमोचनी एकादशी पर क्या नहीं करना चाहिए
- वर्जित आहार: इस दिन तामसिक और राजसिक भोजन खाना वर्जित है। लहसुन, प्याज, मांसाहार और मद्यपान से दूर रहें। आप इस दिन साबूदाना, फल व दूध आदि का सेवन कर सकते हैं
- विवाद और क्रोध: व्रत के दौरान मन को शांत रखें और किसी भी प्रकार के विवाद, क्रोध या नकारात्मक विचारों से बचें। किसी को अपशब्द ना बोलें।
- नींद: एकादशी की रात जागरण करने का विशेष महत्व है। इसलिए, रात में सोने से बचें और भगवान के भजन-कीर्तन में समय बिताएं।
पापमोचनी एकादशी पूजा विधि और मुहूर्त
पापमोचनी एकादशी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घर के मंदिर में या पूजा स्थल पर वेदी बनाएं और उस पर उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा जैसे सात अनाज रखें। इस वेदी के ऊपर कलश स्थापित करें, जिसमें आम या अशोक के पांच पत्ते लगाएं।
कलश के पास भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद भगवान को पीले फूल, ऋतु फल, तुलसी के पत्ते, धूप, दीप और चंदन अर्पित करें। पूजा के बाद भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद वितरण करें। दिनभर फलाहार करें और तामसिक भोजन से बचें।
मुहूर्त: वैदिक पंचांग के मुताबिक पापमोचनी एकादशी तिथि का प्रारंभ 25 मार्च को सुबह 5:05 पर होगा और समापन 20 मार्च की रात 3:45 पर होगा।

पापमोचनी एकादशी पारण विधि और मुहूर्त
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है। पापमोचनी एकादशी व्रत (Papmochani Ekadashi Vrat) पारण का समय 26 मार्च को दोपहर 1 बजकर 41 मिनट कर लेकर शाम 4:08 के बीच है। पारण से पहले भूखे और जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएँ और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।
पापमोचनी एकादशी व्रत का पालन श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है और उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत आत्मशुद्धि, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।
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FAQ- Papmochani Ekadashi Vrat
पापमोचनी एकादशी व्रत का क्या महत्व है?
पापमोचनी एकादशी व्रत करने से जाने अनजाने में किए गए सभी को आप खत्म हो जाते हैं।
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा किस ऋषि से जुड़ी हुई है?
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा ऋषि मेधावी से जुड़ी हुई है।
एकादशी व्रत के क्या फल है?
एकादशी व्रत करने से जन्म मरण के चक्कर से मुक्ति मिलती है।
एकादशी के पारण में क्या किया जाना चाहिए?
एकादशी के पारण में भोजन का दान किया जाना चाहिए।
एकादशी के दिन किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
एकादशी के दिन अपनी भाषा पर संयम रखना चाहिए और अपशब्द नहीं बोलना चाहिए।
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