
Varuthini Ekadashi: वरुथिनी एकादशी हिंदू धर्म का है विशेष व्रत है जो वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को मनाया जाता है। ये व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और सौभाग्य पाप मुक्ति और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। इस आर्टिकल में हम बहुत ही एकादशी के महत्व इसकी कथा, पूजा विधि और मुहूर्त के बारे में भी चर्चा करेंगे। इसलिए इस आर्टिकल को आखिर तक पढ़े।
वरुथिनी एकादशी का महत्व
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत विशेष है। ‘वरुथिनी’ शब्द का मतलब है ‘रक्षक’ या ‘कवच’, इसलिए यह व्रत को करने वालों के सभी कष्टों और पापों को खत्म करता है। यह व्रत न केवल इस लोक में सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्रदान करता है, बल्कि परलोक में भी मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
पद्म पुराण के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से कन्यादान, स्वर्णदान और दस हजार वर्षों की तपस्या के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभदायक है जो जीवन में सुख, शांति और समृद्धि पाना चाहते हैं। इसके अलावा, यह व्रत दुख, दरिद्रता और शारीरिक कष्टों को दूर करने में भी प्रभावी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के पूजन से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पुष्टिमार्गीय वैष्णव समुदाय में यह दिन श्री वल्लभाचार्य की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। आज के समय में लोग इस व्रत को न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति के लिए भी करते हैं।
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
वरुथिनी एकादशी की कथा (Varuthini Ekadashi Katha) भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी, जो इस प्रकार है-
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर राजा मान्धाता का शासन था। वे बहुत दानशील और तपस्वी राजा थे। एक दिन जब वे जंगल में तपस्या कर रहे थे, उसी समय एक जंगली भालू ने उन पर हमला किया और उनका पैर चबाने लगा। राजा फिर भी अपनी तपस्या में लीन रहे और उन्होंने भालू पर क्रोध नहीं किया। भालू उन्हें घसीटकर जंगल में ले गया, जिससे राजा भयभीत हो गए।
उन्होंने करुण भाव से भगवान विष्णु से प्रार्थना की। उनकी पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और अपने सुदर्शन चक्र से भालू का वध कर राजा की रक्षा की। लेकिन तब तक भालू ने राजा का पैर खा लिया था, जिससे वे बहुत दुखी हुए।

राजा के दुख को देखकर भगवान विष्णु ने कहा, “हे राजन! तुम मथुरा जाकर वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत करो और मेरे वराह अवतार का पूजन करो। इस व्रत के फल से तुम्हारा शरीर फिर से सुंदर हो जाएगा। तुम्हारा ये कष्ट पिछले जन्म के पापों का परिणाम है।”
राजा मान्धाता ने भगवान की आज्ञा मानकर मथुरा में श्रद्धापूर्वक वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत किया। व्रत के फल से उनका शरीर फिर स्वस्थ और सुंदर हो गया। मृत्यु के बाद उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत सभी पापों का नाश कर जीवन को सुखमय बनाता है।
वरुथिनी एकादशी की पूजा विधि
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत और पूजा करने से पूर्ण फल प्राप्त होता है। ऐसे करें इस एकादशी की पूजा-
एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठ के स्नान करें और आप करें। घर और पूजा स्थल की साफ सफाई करें और पूजा के स्थान पर गंगाजल का छिड़काव करें। पूजा शुरू करने से पहले भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। संकल्प में व्रत ल का कोई उद्देश्य भी स्पष्ट करें।
पूजा की चौकी पर पीला या लाल कपड़ा बिछाएं और उसे पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। चौकी पर सात प्रकार के अनाज जैसे उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल, बाजरा रखें। अब एक कलश स्थापित करें और उसमें आम या अशोक के पत्ते डालें।
अब भगवान विष्णु को गेंदे के फूल, तुलसी के पत्ते, पीला चंदन, अक्षत, पान, सुपारी और फल अर्पित करें। मां लक्ष्मी को लाल चुनर और कमल का फूल चढ़ाएं। भोग में केसर की खीर, मिठाई और फल अर्पित करें। उसके बाद धूप दीप और कपूर से आरती करें।

अब भगवान विष्णु के मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का 108 बार जाप करें। वरुथिनी एकादशी की कथा पढ़े या सुने। कथा सुनना व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। उसके बाद श्री हरी और माता लक्ष्मी की आरती करें। रात में भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। एकादशी के व्रत में सोना वर्जित है।
अगले दिन द्वादशी तिथि पर सुबह ब्राह्मणों को भोजन कारण और अपने समर्थ के अनुसार दान दक्षिणा देते हुए शुभ मुहूर्त में एकादशी व्रत का पारण करें पारण करने से पहले फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण करें।
नोट– व्रत के दौरान चावल, मांस, मछली, लहसुन, प्याज और तामसिक भोजन का सेवन न करें। मन में शुद्धता और भक्ति बनाए रखें।
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वरुथिनी एकादशी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह तिथि निम्नलिखित है-
तिथि– 23 अप्रैल 2025 (कुछ क्षेत्रों में 24 अप्रैल को भी मनाई जा सकती है)।
एकादशी तिथि प्रारंभ– 23 अप्रैल 2025, रात्रि 10:30 बजे।
एकादशी तिथि समापन– 24 अप्रैल 2025, रात 08:00 बजे।
पारण करने का समय– 25 अप्रैल 2025 की सुबह 05:45 बजे से 08:30 बजे तक।
शुभ योग- 2025 में वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) के दिन इंद्र योग, वैधृति योग या त्रिपुष्कर योग आदि बनने की संभावना है, जो पूजा के फल को और अधिक बढ़ाते हैं।
वरुथिनी एकादशी के लाभ
- यह व्रत पिछले जन्मों के पापों को नष्ट करता है।
- विशेष रूप से महिलाओं के लिए यह व्रत सौभाग्य और वैवाहिक सुख प्रदान करता है।
- यह व्रत करने से बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
- शारीरिक कष्टों, विशेष रूप से पैरों से संबंधित समस्याओं में राहत मिलती है।
- यह व्रत धन, वैभव और पारिवारिक सुख को बढ़ाता है।
निष्कर्ष
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक बेहतरीन अवसर है। यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मकता और शांति लाने का भी माध्यम है। वरुथिनी एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक व्रत, पूजा और कथा पाठ करने से भक्तों को अपार पुण्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
FAQ- Varuthini Ekadashi
वरुथिनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?
वरुथिनी ने एकादशी मनाने का मुख्य कारण है कि यह सुख और समृद्धि प्रदान करती है और पापों से मुक्ति देती है।
वरुथिनी एकादशी व्रत में क्या खाना चाहिए?
वरुथिनी एकादशी व्रत में अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता हालांकि कुछ लोग इसमें फलाहार खा सकते हैं।
वरुथिनी का क्या अर्थ है?
वरुथिनी का अर्थ है रक्षा करने वाला या कवच इसलिए यह व्रत सभी भक्तों को कष्टों और पापों से मुक्त जलता है।
वरुथिनी एकादशी को क्या दान करना चाहिए?
शास्त्रों के अनुसार वरुथिनी एकादशी पर अन्न, जल और तिल का दान करना चाहिए।
वरुथिनी एकादशी को किसकी जयंती मनाई जाती है?
वरुथिनी एकादशी को पुष्टिमार्गीय वैष्णव समुदाय में श्री वल्लभाचार्य की जयंती मनाई जाती है।
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