
Hera Panchami: उड़ीसा के पुरी में आयोजित भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का एक खास और अद्वितीय पहलू है हेरा पंचमी (Hera Panchami). यह रथ यात्रा के पांचवें दिन यानी आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। रथ यात्रा छेरा पहरा(Chhera Pahara) अनुष्ठान से प्रारंभ होती है जिसमें पुरी के गजपति राजा सोने से निर्मित झाड़ू से रथों को साफ करते हैं। इसके बाद भक्त तीनों रथों को गुंडिचा मंदिर तक ले जाते हैं जहां भगवान 9 दिनों तक विश्राम करते हैं। इस अवधि में कई अनुष्ठान और परंपराएं आयोजित होती हैं जिनमें से एक है हेरा पंचमी।
यह विशेष दिन भगवान जगन्नाथ की पत्नी, माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। हेरा पंचमी (Hera Panchami) क्या है, इसके पीछे की कथा क्या है, और इससे जुड़ी आध्यात्मिक मान्यताएं कौन-सी हैं? इन सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे आज के इस आर्टिकल में। तो इसे आखिर तक पढ़े।
हेरा पंचमी का दिन और इसका महत्व
जगन्नाथ रथ यात्रा के पांचवें दिन मनाया जाने वाला हीरा पंचमी भगवान जगन्नाथ की पत्नी महालक्ष्मी को समर्पित है। इस दिन माता लक्ष्मी सुवर्णा महालक्ष्मी के रूप में श्री मंदिर से गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करती हैं। यह उत्सव माता लक्ष्मी और भगवान जगन्नाथ के बीच के प्रेम और हल्की-फुल्की नोक झोक को दर्शाता है।
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हेरा पंचमी (Hera Panchami) दो शब्दों से मिलकर बना है हेरा=देखना और पंचमी=पांचवा दिन। इस शब्द का का शाब्दिक अर्थ है लक्ष्मी का दर्शन। यह माता लक्ष्मी की अपने पति से मिलने की उत्कंठा को व्यक्त करता है। यह दिन भगवान के मानवी स्वरूप और उनकी पारिवारिक जीवन की भावनाओं को जीवंत करता है।
हेरा पंचमी की कथा
हीरा पंचमी की कथा भगवान जगन्नाथ और माता लक्ष्मी के बीच प्रेम और नाराजगी की एक रोचक कहानी है। जब भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ रथ यात्रा पर निकले तो उन्होंने माता लक्ष्मी को श्री मंदिर में ही छोड़ दिया। जब भगवान अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर (Gundicha Mandir) में विश्राम करने के लिए 9 दिनों तक रुके तो माता लक्ष्मी को उनके के साथ समय बिताने का मौका नहीं मिला, जिससे वे उदास और क्रोधित हो गईं।
भगवान के जाने की पांचवें दिन माता लक्ष्मी अपने क्रोध और प्रेम को व्यक्त करने के लिए स्वर्ण दूसरों के रूप में सज धज कर एक भव्य पालकी में गुंडिचा मंदिर गईं। वहां पहुंचकर उन्होंने भगवान जगन्नाथ से मिलने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन कुछ परंपराओं के कारण मंदिर का द्वार बंद होने पर उन्हें भगवान से मिलने का अवसर नहीं मिला।

इस बात से एक क्रोधित होकर माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ के रथ नन्दीघोष का एक पहिया तोड़ देती हैं इसके बाद वह श्री मंदिर नहीं लौटी और पुरी के हेरा गोहरी साही में स्थित अपने मंदिर में चली गईं। भगवान जगन्नाथ को माता लक्ष्मी के नाराजगी का पता लगा तो वे उन्हें मनाने उनके पास पहुंचे। भगवान जगन्नाथ द्वारा माता लक्ष्मी को मनाने की प्रक्रिया रथ यात्रा का अंतिम दिन यानी बहुदा यात्रा कहलाती है, क्योंकि इसी दिन भगवान जगन्नाथ श्री मंदिर लौटते हैं और माता लक्ष्मी के साथ उनका पुनर्मिलन होता है।
यह कथा (Hera Panchami Story) पुरी की वैष्णव परंपराओं और स्थानीय लोक मान्यताओं में गहराई से समाई हुई है, जो भगवान और उनकी पत्नी के बीच की मानवीय भावनाओं और संबंधों को सुंदर रूप में प्रस्तुत करती है। यह भक्तों को संदेश देती है कि ईश्वर भी मानव की तरह ही प्रेम, क्रोध और सुलह के भाव का अनुभव करते हैं।
हेरा पंचमी के दिन किया जाने वाला अनुष्ठान
हेरा पंचमी के दिन, माता लक्ष्मी की मूर्ति को सुवर्ण महालक्ष्मी के रूप में सजाया जाता है। उन्हें सोने के आभूषण और रेशमी वस्त्र पहनाए जाते हैं, फिर एक भव्य पालकी में उन्हें श्री मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक लाया जाता है। भक्ति बहुत उत्साह पूर्वक इस यात्रा में भाग लेते हैं और ढोल नगाड़े बजाए जाते हैं।
गुंडिचा मंदिर में पुजारी विशेष पूजा अर्चना करते हैं। कुछ परंपराओं में माता लक्ष्मी को भगवान जगन्नाथ के दर्शन कराए जाते हैं जबकि अन्य में उनके क्रोध को दर्शाने की प्रतीकात्मक अनुष्ठान किए जाते हैं, जैसे गुंडीचा मंदिर के सामने भगवान जगन्नाथ के रथ नदी घोष का पहिया तोड़ दिया जाता है। इसके बाद, माता लक्ष्मी हेरा गोहिरी साही के लक्ष्मी मंदिर लौटती हैं।

हेरा पंचमी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
हीरा पंचमी (Hera Panchami) सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। यह पर्व वैवाहिक जीवन में प्रेम, मनमुटाव और आपसी समझौते के महत्व को उजागर करता है। माता लक्ष्मी का स्वयं गुंडिचा मंदिर जाना नारी शक्ति और आत्मसम्मान का प्रतीक है। यह उत्सव पुरी की ओड़िया संस्कृति को जीवंत करता है।
निष्कर्ष
इस तरह हेरा पंचमी (Hera Panchami) भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का बहुत खास हिस्सा है जिसके बिना रथ यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है। यह भगवान जगन्नाथ और माता लक्ष्मी के प्रेम का प्रतीक है जो भक्तों को आनंद से सराबोर करता है। यह उत्सव भारतीय संस्कृति की समृद्धि और भक्ति को उजागर करता है।
FAQ- Hera Panchami
हेरा पंचमी में क्या होता है?
हीरा पंचमी जगन्नाथ रथ यात्रा के पांचवें दिन मनाया जाता है, जिसमें माता लक्ष्मी को सजाकर उन्हें भगवान जगन्नाथ से मिलने के लिए गुंडीचा मंदिर ले जाया जाता है। जहां उनका क्रोध दर्शाने के लिए भगवान जगन्नाथ के रथ का एक पहिया तोड़ दिया जाता है।
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