
Jagannath Bahuda Yatra: भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा का अंतिम हिस्सा है बहुदा यात्रा जो भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और वह सुभद्रा के गुंडेचा मंदिर से वापसी की यात्रा है। यह रथ यात्रा के नौवे दिन होती है जिसे उड़िया भाषा में बहुदा अर्थात वापसी के नाम से जाना जाता है। क्या है रथ यात्रा का अंतिम पड़ाव बहुदा यात्रा (Jagannath Bahuda Yatra) और इससे जुड़ी कथाएं व परंपराएं, चलिए जाने इस आर्टिकल के माध्यम से।
बहुदा यात्रा का प्रारंभ
गुंडेचा मंदिर में नौ दिनों के निवास के बाद भगवान जगन्नाथ बालवीर और सुभद्रा की वापसी की यात्रा में दशमी तिथि को शुरू होती है। इस यात्रा की शुरुआत गुंडिचा मंदिर में बहुदा पहंडी नामक एक भव्य जुलूस के साथ होती है। इस जुलूस में तीनों देवताओं को उनके रथों—नंदीघोष (जगन्नाथ), तालध्वज (बलभद्र) और दर्पदलन (सुभद्रा)—में भी विधान के साथ सवार किया जाता है। रथों कोई दक्षिण दिशा की ओर मोड़कर श्री मंदिर के नकाचना द्वार के पास खड़ा करते हैं, जिसे दक्षिणा मोड़ कहा जाता है। इस प्रक्रिया में हजारों भक्त शामिल होते हैं।
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मौसी मां मंदिर में विश्राम
कोई भी यात्रा पड़ावों के बिना अधूरी है, और बहुदा यात्रा भी इसका अपवाद नहीं है। वापसी के मार्ग में तीनों देवता ‘मौसी मां’ मंदिर में रुकते हैं जिसे ‘माँ अर्धासनी’ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। एक मान्यता के अनुसार, मौसी मां ने भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन से अपने मंदिर में रुकने का अनुरोध किया था ताकि वह उन्हें भोजन परोस सकें।
इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए तीनों देवता इस मंदिर में रुकते हैं, जहाँ उन्हें उनका पसंदीदा व्यंजन ‘पोडो पिठा’ परोसा जाता है। यह पारंपरिक ओडिया व्यंजन नारियल, चावल, गुड़ और दाल से बनाया जाता है। इस पड़ाव के बाद, तीनों देवता अपनी यात्रा श्रीमंदिर की ओर जारी रखते हैं।
प्रभु और माता लक्ष्मी का मिलन: लक्ष्मी-नारायण भेटा
बहुदा यात्रा (Jagannath Bahuda Yatra) का एक सबसे भावनात्मक और महत्वपूर्ण क्षण है ‘लक्ष्मी-नारायण भेटा’। जब भगवान जगन्नाथ का रथ गजपति महाराज के महल के सामने रुकता है, तब देवी लक्ष्मी, जो श्रीमंदिर में अपने प्रिय भगवान की प्रतीक्षा कर रही होती हैं, उन्हें देखने के लिए बेचैन हो उठती हैं।
तब सेवक ‘सुवर्ण लक्ष्मी’ की मूर्ति को एक पालकी में बिठाकर ‘भेटा मंडप’ या ‘चहनी मंडप’ लाते हैं, जहां से वह अपने पति भगवान जगन्नाथ की झलक पाती हैं। ‘चहनी’ का अर्थ है दृष्टि या झलक, और ‘मंडप’ का अर्थ है चबूतरा। इस दौरान, भगवान बलभद्र की पालकी के सामने एक परदा रखा जाता है ताकि वे अपने छोटे भाई की पत्नी, देवी लक्ष्मी का चेहरा न देखें, क्योंकि हिन्दू परम्परा में यह अशुभ माना जाता है।
गजपति महाराज देवी लक्ष्मी का स्वागत करते हुए ‘दहिपति मनोही’ का प्रसाद चढ़ाते हैं। इसके बाद, वह लक्ष्मी की मूर्ति को अपने सिर पर रखकर भगवान जगन्नाथ की ओर ले जाते हैं। इस मुलाकात में भगवान जगन्नाथ अपनी पत्नी को ‘अज्ञान माला’ (सहमति की माला) भेंट करते हैं और वापस लौटने का वचन देते हैं। माला प्राप्त करने के बाद, देवी लक्ष्मी नंदीघोष रथ की परिक्रमा करती हैं और फिर श्रीमंदिर लौट जाती हैं। यह दिव्य मिलन ‘लक्ष्मी-नारायण भेट’ के नाम से जाना जाता है।

मंदिर में प्रवेश और रसगुल्ला दिवस
लक्ष्मी नारायण की भेंट के बाद नदी घोष रथ अपनी यात्रा दोबारा शुरू करता है और श्रीमंदिर के सिंह द्वार पर पहुंचता है जहां पहले से ही बलभद्र और सुभद्रा के रथ मौजूद होते हैं। लेकिन यहां एक रोचक नोकझोंक होती है। देवी महालक्ष्मी जो अपने पति के अनुपस्थिति से नाराज होती हैं जय विजया प्रवेश द्वार पर मंदिर के दरवाजे बंद रखती हैं।
इसके बाद भगवान जगन्नाथ और देवी लक्ष्मी के बीच एक संवाद होता है जिसमें भगवान अपनी गलतियां स्वीकार करते हैं और लक्ष्मी जी को मनाने के लिए रसगुल्ला सहित कई भेंट चढ़ते हैं यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक देवी लक्ष्मी शांत नहीं हो जाती और अंततः मंदिर के दरवाजे खोलने का इशारा करती हैं इसके बाद भगवान जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करते हैं जिसके साथ यह समारोह समाप्त होता है। इस दिन को ओडिया समाज ‘रसगुल्ला दिवस’ के रूप में मनाता है, जो इस पवित्र मिलन और भगवान के भक्तों के प्रति प्रेम को दर्शाता है।
सुना बेशा और नीलाद्री बिजे
बहुदा यात्रा (Jagannath Bahuda Yatra) के अगले दिन, देवताओं को ‘सुना बेशा’ अर्थात् स्वर्ण पोशाक पहनाई जाती है, जिसमें उन्हें सोने के आभूषणों से सजाया जाता है। सभी रथों को दो दिनों तक सिंह द्वार पर रखा जाता है। इसके बाद, त्रयोदशी तिथि को देवताओं को मुख्य मंदिर प्रवेश कराया जाता है और उन्हें उनके ‘रत्न सिंहासन’ पर विराजित किया जाता है। यह रस्म को ‘नीलाद्री बिजे’ कही जाती है, जो रथ यात्रा के समापन का प्रतीक है।

निष्कर्ष
बहुदा यात्रा (Jagannath Bahuda Yatra) उड़ीसा की सांस्कृतिक पहचान और भक्ति भावना का प्रतीक है इस दौरान हर गली घर और दुकान सजाई जाती है और भक्त बड़े उत्साह के साथ अपने आराध्य की वापसी का स्वागत करते हैं यह यात्रा भगवान जगन्नाथ के भक्तों के साथ अटूट बंधन को दर्शाती है।
FAQ- Jagannath Bahuda Yatra
बहुदा यात्रा क्या है?
भगवान जगन्नाथ की बहुत यात्रा गुंडिचा मंदिर में 9 दिनों के प्रवास के बाद वापस श्री मंदिर लौटने तक की यात्रा है इस यात्रा के दौरान कई तरह के आयोजन किये जाते हैं और परंपराएं निभाई जाती हैं।